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शनिवार, 3 अप्रैल 2010

फूल वाली माई

कभी कभी जीवन में कुछ घटनाएँ ऐसी होती हैं जो की बारबार सोचने पर मजबूर करतीं है कि क्या निर्धन के पास ज्यादा दिल बड़ा होता है जो कि धनि के पास नहीं हो सकता| 
आज मैं एल्लोरा में स्तिथ घ्रिश्नेश्वर ज्योतिर्लिंग में गयी थी |  हर बार की भांति  मैं फूल  वाली माई के पास गयी फूल एवम पर्षद इत्यादि लेने | माई आज भावुक होकर मेरा हाथ  पकड़ कर बोली  आज बहुत  दिन बाद आई बिटिया...आज इतने दिन बाद माँ के याद आई | मुझे उसमें ममता झलकती दिखाई दी|खैर मैंने फूल , फल प्रसाद इत्यादि लिया और पूजा के लिए मंदिर में चली  गयी |  जब पूजा कर के बाहर  निकली  और माई के पैसे और टोकरी  वापस कर के अपने कार की  तरफ जाने लगी तब माई ने मेरी बिटिया को बुलाया और एक प्रसाद का पैकेट दिया और बोली तुम लोग सब मिल कर खा  लेना |और ऐसे ही आते रहना....मेरी आखों से आसूं की धारा निकल पड़ी कि दिन भर दो दो रूपये कमाने वाली का दिल कितना बड़ा है कि वो बच्ची को प्रशाद का बड़ा पैकेट दे रही है वहीँ  बड़े बिजनेसमैन अपने स्वार्थ के लिए तो करोरों  खिला देगें किन्तु निःस्वार्थ भाव से किसी को एक पैसा भी ना पूछेगें | शायद यही अंतर होता है एक धनी और निर्धन के देने के भाव में,एवम नीयत में ......