दिल्ली का अक्षरधाम मंदिर अनेक शिल्पकारों को लेकर बहुत ही कलात्मक रूप से बनाया गया है, मंदिर बहुत ही भव्य है|इस भव्यता को चार चाँद लगता है वहाँ की प्रदर्शनी जो की जीवंत लगती है|इस की शुरूआत प्रदर्शनी के पहले भाग से होता है, जहाँ ये समझाने की कोशिश की गयी है कि इमारत को बनाने में तो अनेकों शिल्पकारों कि जरूरत होती है किन्तु स्वयं को बनाने के लिए मात्र आत्मविश्वास कि जरूरत होती है हमें स्वयं को बनाना है स्वयं को ही समझाना होगा कि क्या गलत है और क्या सही?स्वामी नारायण ,नीलकंठ महराज जी के व्यक्तित्व के जरिये ये समझाने कि कोशिश कि गयी है कि दूसरों का बुरा मत सोचो ,हो सके तो सहायता करो....इसी में नौका यात्रा के द्वारा ये बताया जाता है कि भारत एक ऐसा देश है जहाँ पुरातन से कोई ना कोई खोज हुआ है|इस अक्षधाम का आखिरी मुकाम नीलकंठ महाराज जी का जीवन यात्रा है जो एक सिनेमा के द्वारा दिखाया गया है |
इसमें सीखने के लिए बहुत कुछ है यदि मनुष्य सीखना चाहे लेकिन दर्द इसी बात का है कि हम इस खुबसूरत जगह को भी बुराई में बदलना चाहते है उसे पिकनिक का स्थान बना लिया है |ख़ैर.... अक्षरधाम मंदिर बहुत ही सुंदर है अंत में यही कहना चाहूंगी कि प्रत्येक मंदिर कुछ कुछ ना कहता है हमें समझना है सीखना है एवम अपने जीवन को सवारना होगा....
मंगलवार, 21 दिसंबर 2010
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