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शुक्रवार, 14 जनवरी 2011

सही पहचान

मैं अक्सर गौरव जी महाराज का भागवत सुनती हूँ और उनके द्वारा बताये गए प्रसंग को अपनाना चाहती हूँ ऐसा ही एक प्रसंग कल भी मैने  सुना कि मनुष्य के अंदर सब कुछ है आग हवा पानी मिट्टी, यहाँ तक कि इसको बनाने वाला इश्वर भी|किन्तु हमें आयने के सामने हमारा बाहरी  आवरण दिखाई देता है |हम स्वयं को कभी समझ नहीं पाते कि असल में हम क्या हैं ?हमारी खूबी  बाहरी चमक धमक में छुप जाती है,हम दूसरे को देख कर कदम बढ़ाते हैं हम स्वयं को नहीं समझ  पाते|इश्वर तो सब में है किन्तु हम उसका अपमान करते हैं|दूसरे को नीचा दिखाने कि कोशिश करते हैं|
आयना तो ऊपर का ही आवरण दिखाता हे यदि खुद को देखना है तो हमें अंतरात्मा कि आखें खोलनी होगी स्वयं को पहचानना होगा कि मैं कौन हूँ?सब कुछ तो हमारे अंदर है तो फिर क्या तलाश है?तलाश है तो सही संगत  का जिससे हमें सही ज्ञान हो|हमें बाहरी आवरण उतारना होगा तभी सही दिशा मिलेगी|अन्यथा हमें दवा खा कर ही जीवन चलाना होगा|  
  

दान पुण्य

दान देना एक पुण्य का कार्य है किन्तु लोगों में असमंजसता रहती है  कि दान हमें कब क्यों एवम कैसे देना चाहिए?दूसरा लोगों में ये भी भावना रहती है कि हम परिश्रम से अपने लिए कमा रहें तो हम क्यों दें?
दान एक ऐसा विषय है इस  पर जितना लिखो उतना कम है|दान हमें क्यों करना चाहिए?पहला प्रश्न ये उठता है?दान हमें इसलिए करना चाहिए क्योकि दान करने से मिला हुआ गुप्त आशीर्वाद हमारी धरोहर होती है जो कि हमें और हमारे बच्चों के काम आती है ये एक ऐसी धरोहर है जिसे कोई ना तो चुरा सकता है ना ही बाँट सकता है|
अब प्रश्न उठता है कि दान कब करना चाहिए दान करने का कोई ना तो वक्त होता है और ना ही उम्र होती है जब भी जरूरत हो तो पीछे नहीं हटना चाहिए |
तीसरा प्रश्न होता है कि दान किसे करना चाहिए? दान उसे ही करना चाहिए जो असमर्थ हो, जिसे सच में ज़रूरत हो|जो परिश्रम करने में जी ना चुराता हो|उसे आपकी दी हुयी  चीज़ों की आवश्यकता हो|
दान क्या करना चाहिए?दान कोई ज़रूरी नहीं है कि सोना चाँदी,धन दौलत इत्यादि हो|दान कुछ भी हो सकता है,आपकी सेवा भाव, आपकी मुस्कुराहट,आपका वक्त|यदि सामर्थ्य है तो किसी का जीवन बना कर|दान कभी भी दिखावा में नहीं करना चाहिए क्योंकि वो कभी फलता नहीं|गुप्त दान हमेशा ही अच होता है|

दान कितना करना चाहिए, क्या सब दान करना चाहिए,अपने बच्चों  के लिए कितना  छोड़ना चाहिए? अपने बच्चों के लिए केवल उतना ही छोड़ना चाहिए जितने में उनका भविष्य बन सके इतना नहीं छोड़ना चाहिए कि वो अपने जीवन में कुछ ना कर सकें|
हम राजा हरिश्चंद्र  या कर्ण तो नहीं बन सकते किन्तु शायद इतना तो कर सकते हैं कि किसी का दिल ना दुखाएं यदि हो सके तो मुस्कुराहट एवम वक्त तो थोडा दान कर ही सकते है वो भी निश्छल भाव से|