बारह वर्ष पश्चात प्रयाग का कुम्भ मेला एक बार फिर पुरे जोर शोर पर चल रहा है।मुझे तो प्रयाग छोड़े बहुत दिन हो गया किन्तु आज भी बचपन की यादे बनी है।नित्य टी वी में दिखाया जाता है कुम्भ मेले के बारे में एवं वहाँ आये साधू संतों के बारे में।
मैं बचपन से आज तक यही विचार करती रही की ये सब योगी है या फिर भोगी और ढोगी?क्योंकि आप इनका आशियाना तो देखें किस चीज़ की कमी है?लोग कहते है की भारतीय अन्धविश्वासी होते हैं और इन साधुओं के मायाजाल में फंसते है।किन्तु अब आप देखिये इन साधुओं के जमावड़े में कितने विदेशी हैं।क्या ये अन्धविश्वासी नहीं हैं? लोग कहते हैं संतों की अवहेलना हम सब करते हैं किन्तु ये सत्य नहीं है।हम सभी उन संतों का आदर सम्मान आज भी करते हैं जो धर्म सिखाते हैं।आज भी आस्था है धर्म में भी और शंकराचार्य संत में भी।
किन्तु अफ़सोस केवल ढोंगी साधू के लिए है।जो धूनी रमाये चिलम पीते नजर आते हैं।मेरे विचार से संत वही हैं जो दुसरे का सोचे न कि अपने सुख सुविधा का,संत वहीँ हैं जो प्रत्येक धर्म को एक समान माने न कि कोई एक धर्मको,क्योकि ईश्वर तो सर्वव्यापी है।सब धर्म में हैं।मैं ऐसे ही संत को बार बार नमन करना चाहूंगी जो सत्य प्रिय हो,कटु वचन न बोले,और मुखमंडल हमेशा कमल की भांति खिला हो।