आजकल नया चर्चा का विषय उत्तर प्रदेश है| ग्रामीण इलाका गरीबी की रेखा पर झूल रहा है वहीं रईसी इस कदर है कि करोड़ों की माला गले की हार बन कर रह गयी है |इसे ही कहते है अधजल गगरी छलकत जाये|मुझे कभी कभी लगता है कि मनुष्य केवल स्वयं का ही क्यों सोचता है?खासतौर पर जब वो ऐसे कुर्सी पर विराजमान हो जहां से केवल जनता की ही सेवा करनी हो |वहाँ से अपने लिए ही सोचना ?अब तो ये सोचना पडेगा की आखिर जनता की सुधि कौन लेगा?
दूसरा, एक ये भी सोचना पड़ता है कि हमारे यहाँ धन की पूजा होती है,लक्ष्मी का स्थान बहुत ऊँचा होता है ,उसे किसी के गले में डालने की अनुमति कैसे हुई ?ये धन एकत्रित कैसे हुआ ;जनता का ही गला काट कर मुख्यमंत्री का गला सजा |वाह भाई वाह क्या नखरे होते है इन मंत्रियों के|देख कर शर्म आती है की आये दिन रुपयों की बर्बादी.....कभी पार्क बनाने में तो कभी पत्थर की मूर्तियों पर रुपयों की बरसात कर के|आखिर इन्हें इतना अधिकार क्यों मिलता है?
इन सब मामलों में फंसती है,बिचारी मध्यम वर्गीय परिवार ,जिन्हें सब तरफ की मार सहनी पड़ती है|किन्तु इन भ्रष्ट नेताओं की आँखें नहीं खुलती|आज हम स्वतंत्र भारत में रहकर भी इन नेताओं की बेरहमी और बेशर्मी को देख रहें हैं, बर्दाश्त कर रहे है| इतिहास फिर दोहरा रहा है जब राजा आपस में झगड़ते थे दिखावा करते थे और राज्य की जनता कुछ नहीं कर सकती थी जिसका राज्य रहता था उसीका बोलबाला होता था ठीक वही दुर्दशा आज भी नज़र आ रही है दूसरे नेता इन मुद्दों पर उछल सकते हें किन्तु जिस जनता का धन बर्बाद हो रहा है वो सिर्फ मुंह ताक रही है|वाह रे स्वतंत्र भारत ,जिसकी आज़ादी के लिए कितने देश भक्त शहीद गए|पर देश आज इस कगार पर है कि जहां सिर्फ और सिर्फ खिंच तान मची है ,कोई रुपयों का हार पहन रहा है तो कोई मंत्री अपने सात पुस्तों के लिए जोड़ कर रख रहा है जिस राज्य को सम्भालने के लिए सत्ता सौपी गयी है उसकी जनता अपने में रो रही है किन्तु उसका आंसू पोछने वाला कोई नहीं है ......आखिर ये कब तक चलेगा ......कब तक जनता अपना धन लुटते हुए देखेगी ......इन सब प्रश्नों का जवाब क्या कोई दे पायेगा??????