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रविवार, 14 अगस्त 2011

भ्रष्टाचार के खिलाफ एक जंग

 आज टी.वी मिडिया सब जगह अन्ना हजारे के मुहीम को दिखाया जा रहा है|देख कर आत्म विश्वास जागृत होता है कि अभी देश कि रक्षा के लिए लोग है, किन्तु ये सोच कर कष्ट होता है कि अपने ही आज़ाद देश में आन्दोलन कि ज़रूरत आ पड़ी है,क्या देश आज़ाद है केवल झंडा फहरा कर लड्डू बाँटने के लिए?अगर कोई भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठता है तो सरकार हमारा धन लूट कर इतनी मजबूत हो गयी है कि वो हमें दबा कर गलत आरोप लगा कर चुप होने पर मजबूर करती है क्योकि हम उन्हें अपना प्रतिनिधित्व चुन कर एक ऐसी ताकत दे चुके है जिसका सरकार पूरा फायदा उठती है.........
 आज़ाद देश में रह कर भी आज आम इन्सान डर कर जी रहा है| किस बात पर कहाँ उसे दबा दिया जायेगा शायद किसी को पता नहीं होता....आज यही कारण है कि हमारी नयी पीढ़ी विदेशों में जा  कर बसने लगी है.....आज अच्छे Doctor, Scientist,Engineer etc.सभी U.S.A., U.K.जैसी जगहों पर जा कर रहना चाहते है|आखिर क्यों?क्योकि हमारे देश में केवल राजनीती रह गयी इसके अतिरिक्त और कुछ भी नहीं....अब देखने कि बात ये है कि हजारे जी का ये अनशन क्या रंग लाता है......क्योकि सत्ता के अधिकारीयों के पास दिल नहीं है...न ही आत्मसम्मान.....नेता पूरी तरह से गिरे हुए है इसी कारण सबके ऊपर ऐसा आरोप लगाते है....क्योकि पुरानी कहावत है कि जो जैसा होता है दुसरे को भी वैसा ही समझता है......
किन्तु अब समय आ गया है जब देश कि जनता जागेगी और भ्रष्टाचार ख़त्म होगा क्योकि पाप का घड़ा भर चुका है.......

बुधवार, 27 अप्रैल 2011

जीवन चक्र

आज मैं  बाबा की महासमाधि को टीवी पर देख रही थी और ये सोचने को मजबूर थी की ये जीवन क्या है?बाबा का जीवन मानवता के लिए समर्पित था,एवम मानव उनकेभक्त  रूप  मेंथे|करोड़ों जनता की भक्ति, राजकीय सम्मान ,क्या मंत्री क्या संत्री सब एक समान बाबा के दरबार में थे|बाबा ने करोड़ों लोगों का उद्धार  किया,जो की एक साधारण व्यक्ति नहीं कर सकता क्योकि मनुष्य स्वार्थी होता है|लेकिन एक ही चीज़ मन में खटकती है की हम मुट्ठी बांध अपनी किस्मत साथ लेकर आते हैं जाते समय हाथ खुला होता है की हम कुछ साथ लेकर नहीं जा रहें हैं |तो हम इस जीवन में हाय हत्या क्यों करते हैं?
अभी बाबा की सम्पति को लेकर वादविवाद क्यों हो रहा है......उसे जैसा चल रहा था वैसा क्यों नहीं चलने देते?अंत के बाद नाम, धन दौलत .प्रसिद्धि सब इसी धरती पर ही रह जाती है|अच्छे कर्म करने से लोग जन्मजन्म  तक याद रखते हैं पूजते है,नेताओं की तरह कर्म करने पर कहीं चौराहे पर मूर्ति बना कर खड़ा कर दिया जाता है की मूर्ति बनने के बाद भी धुप गर्मी सहते रहो......  सत साई बाबा,शिर्डी साई बाबा,मदर टेरेसा जैसे कर्म करने पर ही इश्वर की उपाधि मिलती है और सही मायने में ये ही ईश्वर और इनका हाथ हमारे सर पर हमेशा होना चाहिए......ॐ साई राम.........

रविवार, 24 अप्रैल 2011

सत साई बाबा

सत साई बाबा के चरणों को ध्यान करते हुए ये लिखने की कोशिश कर रहीं हूँ की उन्होंने अपना नश्वर शरीर त्यागा है न की हमारा साथ......वो हमारे बीच हमेशा थे ,हमेशा हैं, एवम हमेशा रहेगे |मुझे हमेशा White field bangluru और पुतापरती याद रहेगा जहाँ मैने दर्शन पाया था.....
एक दिव्य शक्ति थी मुख पर एक तेज था.....अभी लोगों को जरूरत थी उनकी ........लगता है की बाबा तुम क्यों छोड़ गए लकिन आत्मा यही कहती है की बाबा कहीं नहीं छोड़े हैं बाबा हमारे आत्मा में हैं हमारे साथ हैं ......हमें मन की आखोँसे देखना है .....बाबा कहते हैं की गरीबो की सेवा करो हम ये कोशिश करेगे की मुझसे जितना बन पड़े मैं उतना कर सकूँ मैं बाबा का यही ध्यान करुगी की बाबा मुझे इतनी शक्ति दो की मै आपके बताये मार्ग पर चल सकूँ ..............
आज आत्मा दुखी है किन्तु यही समझाने की कोशिश में हूँ की बाबा क़दमों में ही हमारी भलाई है .....बाबा की कही हर  बातो  का अनुसरण करना ही सच्ची याद  है..................

बुधवार, 13 अप्रैल 2011

पापाजी के जन्म दिवस के पावन अवसर पर

आज पापजी का  जन्मदिवस है|इस पावन अवसर पर हम सब हार्दिक शुभ कामनाए देते है...

प्रथम दिवस नववर्ष का  
आपके अवतरित होने से,
आगमन हुआ हर्ष का,
चंद्रमा की कलाओं से युक्त,
चांदनी की शीतलता से प्रयुक्त,
आपका स्वभाव,
 इसीलिए,
लेखनी हमें लिखने को उद्यत करती  है,
जब हृदय में ये झंकार होती है,
नव वर्ष भी प्रकाशमान होता है,
आपके पावन जन्मदिवस पर|
हम सब गौरवान्वित है,
आप जैसे मार्गदर्शक पिता मिलने से,
अभिनंदन करते हैं हम सब मिल कर ,
सुमन वर्षा करते हैं आपके चरण कमलों पर,
आपके वरदहस्त सदैव रहें हम सबके शीश पर,
क्योकि हम सब जीते हैं आपके आशीष पर,
आज हम सब हार्दिक अभिनन्दन करते हैं
आपके पावन जन्मदिवस पर............
आपके जन्म दिवस पर कोटि कोटि अभिनंदन|इस दिन का आगमन हो वर्ष वर्षांतर यही हम सब की अभिलाषा है|

शुक्रवार, 14 जनवरी 2011

सही पहचान

मैं अक्सर गौरव जी महाराज का भागवत सुनती हूँ और उनके द्वारा बताये गए प्रसंग को अपनाना चाहती हूँ ऐसा ही एक प्रसंग कल भी मैने  सुना कि मनुष्य के अंदर सब कुछ है आग हवा पानी मिट्टी, यहाँ तक कि इसको बनाने वाला इश्वर भी|किन्तु हमें आयने के सामने हमारा बाहरी  आवरण दिखाई देता है |हम स्वयं को कभी समझ नहीं पाते कि असल में हम क्या हैं ?हमारी खूबी  बाहरी चमक धमक में छुप जाती है,हम दूसरे को देख कर कदम बढ़ाते हैं हम स्वयं को नहीं समझ  पाते|इश्वर तो सब में है किन्तु हम उसका अपमान करते हैं|दूसरे को नीचा दिखाने कि कोशिश करते हैं|
आयना तो ऊपर का ही आवरण दिखाता हे यदि खुद को देखना है तो हमें अंतरात्मा कि आखें खोलनी होगी स्वयं को पहचानना होगा कि मैं कौन हूँ?सब कुछ तो हमारे अंदर है तो फिर क्या तलाश है?तलाश है तो सही संगत  का जिससे हमें सही ज्ञान हो|हमें बाहरी आवरण उतारना होगा तभी सही दिशा मिलेगी|अन्यथा हमें दवा खा कर ही जीवन चलाना होगा|  
  

दान पुण्य

दान देना एक पुण्य का कार्य है किन्तु लोगों में असमंजसता रहती है  कि दान हमें कब क्यों एवम कैसे देना चाहिए?दूसरा लोगों में ये भी भावना रहती है कि हम परिश्रम से अपने लिए कमा रहें तो हम क्यों दें?
दान एक ऐसा विषय है इस  पर जितना लिखो उतना कम है|दान हमें क्यों करना चाहिए?पहला प्रश्न ये उठता है?दान हमें इसलिए करना चाहिए क्योकि दान करने से मिला हुआ गुप्त आशीर्वाद हमारी धरोहर होती है जो कि हमें और हमारे बच्चों के काम आती है ये एक ऐसी धरोहर है जिसे कोई ना तो चुरा सकता है ना ही बाँट सकता है|
अब प्रश्न उठता है कि दान कब करना चाहिए दान करने का कोई ना तो वक्त होता है और ना ही उम्र होती है जब भी जरूरत हो तो पीछे नहीं हटना चाहिए |
तीसरा प्रश्न होता है कि दान किसे करना चाहिए? दान उसे ही करना चाहिए जो असमर्थ हो, जिसे सच में ज़रूरत हो|जो परिश्रम करने में जी ना चुराता हो|उसे आपकी दी हुयी  चीज़ों की आवश्यकता हो|
दान क्या करना चाहिए?दान कोई ज़रूरी नहीं है कि सोना चाँदी,धन दौलत इत्यादि हो|दान कुछ भी हो सकता है,आपकी सेवा भाव, आपकी मुस्कुराहट,आपका वक्त|यदि सामर्थ्य है तो किसी का जीवन बना कर|दान कभी भी दिखावा में नहीं करना चाहिए क्योंकि वो कभी फलता नहीं|गुप्त दान हमेशा ही अच होता है|

दान कितना करना चाहिए, क्या सब दान करना चाहिए,अपने बच्चों  के लिए कितना  छोड़ना चाहिए? अपने बच्चों के लिए केवल उतना ही छोड़ना चाहिए जितने में उनका भविष्य बन सके इतना नहीं छोड़ना चाहिए कि वो अपने जीवन में कुछ ना कर सकें|
हम राजा हरिश्चंद्र  या कर्ण तो नहीं बन सकते किन्तु शायद इतना तो कर सकते हैं कि किसी का दिल ना दुखाएं यदि हो सके तो मुस्कुराहट एवम वक्त तो थोडा दान कर ही सकते है वो भी निश्छल भाव से|