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सोमवार, 3 सितंबर 2012

जीवन

जीवन एक चुनौती है, सामना करिये .
जीवन एक दुःख है,स्वीकार करिए।
जीवन एक कर्तव्य है, पूरा करिए।
जीवन एक खेल है,आराम से खेलिए।
जीवन  एक रहस्य है, इसे स्वयम सुलझाइए।
जीवन एक सुखद यात्रा है,इसे दिल से पूरा करिये।
जीवन एक सुअवसर है,इसका सदुपयोग कीजिये।
जीवन एक प्रतिज्ञा है,इसे निभाइए।
जीवन एक लक्ष्य है,इसे पूर्ण रूप से प्राप्त करिये।
जीवन एक सुगन्धित फूल है, इसकी खुशबु को विश्व में बिखेरिये।
जीवन आनन्द है,जीवन अनमोल है,जीवन बहुमूल्य मणि है,इसे तनाव,क्रोध,से बचाईये। 

सरल और कठिन

  • उपदेश देना सरल है,अमल करना कठिन है 
  • खर्च करना सरल है,कमाना कठिन है 
  • शत्रु बनाना सरल है, मित्र बनाना कठिन है 
  • विवाह करना सरल है ,निर्वाह करना कठिन है 
  • वचन देना सरल है, पालन करना कठिन है 
  • काम बिगाड़ना सरल है, काम बनाना कठिन है 
  • उधर देना सरल है ,वसूलना कठिन है 

रविवार, 2 सितंबर 2012

आप भी जानें

  • जो बिगड़ी बनाते हैं,उन्हें भगवान कहते हैं
  • जो मुसीबत में  काम आते है,उन्हें इन्सान कहते है
  • जो रिझाता है भगवन को ,उसे गान कहते 
  • जो दिल में रखता है राम को, उन्हें हनुमान कहते है 
  • जो पीता है जहर को , उन्हें शिव भगवान  कहते है 
  • जो निभाता वचन पिता का ,उन्हें श्री राम कहते है 
  • जो दिया उपदेश गीता में ,उन्हें कृष्ण भगवान कहते है 

Life is valuable

Understand it displine in life

Every body knows that any work done by "Discipline" gives success.

'Knows the power of  "DISCIPLINE"

There are 26 alphabets in English Language such as "D" ranks 4th "O" ranks 15th, similarly, if we calculate the sum  of the ranks of all the lrtters of word "DISCIPLINE" we will get 100, which means 100% success.
  • D  4
  • I   9
  • S  19
  • C  3
  • I    9
  • P   16
  • L   12
  • I     9
  • N   14
  • E     5
=100% 

"Nothing is impossible because "IMPOSSIBLE"word is made by " I am possible".

बुधवार, 22 अगस्त 2012

परम महिमामयी अंगारक चतुर्थी

'अंगारक चतुर्थी 'कि महात्म्य -कथा गणेशपुराण के उपासना खंड के ६०वे अध्याय में वर्णित है| वाह कथा संक्षेप में इस प्रकार है -"धरती माँ ने महामुनि भरद्वाज के जपा पुष्प -तुल्य अरुण पुत्र का पालन किया| सात वर्ष के बाद उन्होंने उसे महर्षि के पास पहुँचा दिया| महर्षि ने अत्यंत प्रसन्न होकर अपने पुत्र का आलिगन किया और उसका सविधि उपनयन कराकर उसे वेद- शास्त्रादी का अध्ययन कराया| फिर उन्होंने अपने प्रिय पुत्र को गणपति मन्त्र दे कर उसे गणेश जी को प्रसन्न करने के लिए आराधना करने कि आज्ञा दी|
मुनि पुत्र ने अपने पिता के चरणों में प्रणाम कर के गंगा तट पर जा कर वाह परम प्रभु गणेश जी ध्यान करते हुए भक्तिपूर्वक उनके मन्त्र का जप करने लगा| वह बालक निराहार रहकर एक सहस्त्र वर्ष तक गणेश जी के ध्यान के साथ उनका मन्त्र जपता रहा| माघ कृष्ण चतुर्थी को चन्द्रोदय होने पर दिव्य वस्त्रधारी अष्टभुज चन्द्रभाल प्रसन्न होकर प्रकट हुए|वे विविध अलंकारों से विभूषित अनेक सूर्यों से भी अधिक दीप्तिमान थे|
वरदप्रभु बोले- 'मुनि कुमार!मैं तुम्हारे ताप से बहुत प्रसन्न हूँ| तुम इच्क्षित  वर मांगो|प्रसन्न धरतीपुत्र ने निवेदन किया कि "प्रभु ! आपके दुर्लभ दर्शन से मैं कृतार्थ हुआ, मेरा जीवन सफल हुआ, आप दयामय है आप ऐसा करे कि मैं स्वर्ग मेंदेवतागनकेसाथसुधापान करूं  एवम    मेरा    नाम    मेंकल्याणकरने   वाला  मंगल हो|"हे करुनामुर्ती मुझे आपका दर्शन माघ कृष्ण पक्ष कि चतुर्थी को हुआ  अतएव यह पुण्य देने वाली संकट हरिणी हो |भगवान  ने एवमस्तु कहा और बोला कि मंगल नाम है तुम्हारा इसलिए इस दिन पड़ने वाली चतुर्थी अंगारक चतुर्थी के नाम से जानी जाएगी मंगल के दिन मेरी पूजा अर्चना का फल याचक को पुर्णतः प्राप्त होगा|उनके किसी भी कार्य में बाधा नहीं आएगी|
परम कारुणिक गणेश जी को विशुद्ध प्रीतिअभीष्ट है,श्रद्धा और भक्तिपूर्वक चढ़ाया हुआ मात्र दूर्वा से भी वो प्रसन्न हो जाते है| केवल श्रद्धा हृदय से होनी चाहिए| 

शनिवार, 18 अगस्त 2012

श्री शनिदेव का मंदिर,शनिश्चरा ,एती ,मुरैना


जिला मुरैना में शनिचरा पहाड़ी पर स्थित ,श्री शनिदेव मंदिर का देश में बहुत महत्व है /यह देश का सबसे प्राचीन  त्रेता युग का शनि  मंदिर है /यहाँ स्थापित  प्रतिमा भी विशेष  एव  अद्भुत है / ज्योतिषियों के अनुसार यह मूर्ति आसमान से टूट कर गिरे उल्का पिंड से निर्मित हुयी है /एक एनी कथा के अनुसार हनुमान जी ने अपनी बुद्धि चातुर्य से कम लेते हुए शनिदेव को लंकापति रावण के पैरों के नीचे से मुक्त कराया था  और कई वर्षों तक दबे रहने के कारण  शनिदेव दुर्बल हो चुके थे /लंका दहन के लिए शनिदेव ने बताया की जब तक वे वहन रहेगे लंका दहन नहीं हो सकता /तब हनुमानजी ने शनिदेव को मुरैना के इस पर्वत पर पहुंचाया ,जिसे अब शनि पर्वत कहा  जाता है /
शनिदेव  की मूर्ति स्थापना चक्रवर्ती रजा विक्रमादित्य ने की थी/  

श्री शनिदेव का परिचय 

 पिता ---सूर्यदेव 
माता --छाया (सुवर्ण)
भाई --यमराज 
बहन --यमुना 
गुरु --शिवजी 
गोत्र--कश्यप 
रूचि --अध्यात्म ,कानून ,कूटनीति ,राजनीती 
जन्मस्थल --सौराष्ट्र 
रंग --श्याम -कृष्ण 
स्वभाव --गंभीर ,त्यागी हठी ,क्रोधी ,न्यायप्रिय 
प्रिय  सखा --कालभैरव ,हनुमानजी ,बुध ,राहू 
राशि --मकर ,कुम्भ 
अधिपति --रात 
कार्यक्षेत्र --न्यायदाता 
दिन शनिवार, तिथि - अमावस्या 
नक्षत्र --अनुराधा ,पुष्य ,उत्तरभाद्र पक्ष 
रत्न --नीलम 
वस्तुए -कलि वस्तुए ,तेल ,काली उड़द ,चना ,
धातु ---लोहा इस्पात 
रोग ---वातरोग ,कैंसर ,कुष्ठ ,
प्रभाव --साढ़े सात  वर्ष 
महादशा --19 वर्ष 

शुक्रवार, 17 अगस्त 2012

दैनिक जीवन में गणेश जी का स्थान


भारतीय  परम्परा  में  गणेश  पूजन का    बहुत  महत्तव है /गणेश शब्द का विग्रह  है --गण +ईश / गण का अर्थ देवताओं  का समूह और  ईश का अर्थ  उसका स्वामी / अतः  गणेश का अर्थ हुआ  " देवताओं  के समूह का स्वामी "/जो परम पिता परमेश्वर  के अतिरिक्त अन्य  कोई  हो ही नहीं सकता/ अतः  गणेश की पूजा से हम प्रभु  की ही पूजा करते हैं /

श्री  गणेश जी के पिता जगद विख्यात  प्रभु भोले  नाथ श्री शिवजी हैं  /सभी परिवारों में बच्चों  के विद्या आरम्भ  गणपति पूजन से ही करायी जाती है /जिससे  बच्चा श्री गणपति जी के समान विद्वान बने   एवं श्रेष्ठता  में सर्वोपरि हो /विवाह  के समय भी सबसे पहले गणेश पूजन होती है जिससे  सारे  कार्य  बिना किसी विघ्न  के पूर्ण  हों और उनका जीवन मगंलमय  हो/