जैसी फसल हम बोते हैं ठीक वैसा ही काटते हैं अर्थात जैसा हम कर्म करते है ठीक वैसा ही फल हमें मिलता है| ये मेरी अजमाई हुयी बात है , ऐसा ही मै अपनी सोच नहीं लिख रही हूँ बल्कि मैने अपनी आँख देखी घटनाओं से अनुभव किया कि यदि कोई अपने बड़ों कि सेवा करता है वो भी निःस्वार्थभाव से अपनी जिम्मेदारी के साथ, तो इश्वर भी उसका साथ पल पल देते है|
जब हम स्वयं बड़ों कि अवहेलना करेगे तो बच्चों पर वही असर पड़ेगा और वो वही सीखेगें|ये कहना सरासर गलत होता है कि हम तो अपने माता पिता का खूब करते थे किन्तु हमारे बच्चे तो ऐसा नहीं करते|क्योकि ये मैने अपने घर में ही आजमाया है कि मेरी दोनों माँ ( एक जन्मदाता दूसरी कर्म से अर्थात मेरे पति को जन्म देने वाली माँ,) दोनों ने भरपूर निःस्वार्थभाव से अपने सास ससुर की सेवा की|इसमें मेरे माता पिता नहीं रहे , ये कष्टकारी है मेरे लिए किन्तु मै अपने परिवार के सहयोग से अपना पूरा फ़र्ज़ निर्वाह किया पिता की सेवा का मौका मिला वो किया किन्तु माँ ने इतने फ़र्ज़ किये थे कि इश्वर ने उनकी सेवा करने का वक्त ही नहीं दिया और उनका हार्टफेल हो गया|आज वो हमारे बीच नहीं हैं फिर भी मै यही कहती हूँ कि मेरे माँ और पिता है अलबत्ता उन्होंने जन्म मेरे पति का दिया है किन्तु लाड स्नेह का पूरा अधिकार मेरा भी रहता है इश्वर से यही दुआ मागुंगी कि उनकी सेहत हमेशा अच्छी बनी रहे|
कहने का एक ही मकसद है कि जैसे माँ अपने बच्चे को सीने से लगाती है एवम पूरे ध्यान से पालती है यदि बच्चे उसका 50% भी कर पाए तो वो अपनी जिंदगी बना लेगें|मुझे एक ही चीज़ समझ में नहीं आती यदि कोई महिला ये कहती है कि ये सारी जिम्मेदारी हमारी ही क्यों है?हम किटी पार्टी कर सकते है हम मंदिर जा कर कीर्तन कर सकते है, शाम को कुत्ता घुमा सकते है किन्तु घर में बैठे अपने बड़ों को चाय नहीं पूछ सकते|हमें उनकी सेवा करना भारी लगता है किन्तु समाज सेविका कहलाने में गर्व महसूस होता है|हम अपने ऊपर भरपूर खर्च करते है किन्तु परिवार में देने के समय हाथ क्यों रुकता है?
इसमें मैं एक चीज़ और लिखना चाहुगी जो महिला अपने पति पर गुमान करती है उसे सिर्फ एक बार सोचना चाहिए कि वो पति आया कहाँ से ?उसे जन्म किसने दिया?आप तो तैयार पेड़ पर आई हो , फल खाने के लिए , लेकिन उस माली की भी थोडा परवाह कर लो जिसने इतना बड़ा पेड़ तैयार किया|क्योकि आप अच्छाई बुराई का फसल तैयार कर रहे हो वही आपका बच्चा देख रहा है अब वैसे भी दूरियां ज्यादा बढ़ रही है वो शायद याद करने में भी वक्त लगाये|और दूसरा अब मुझे एक चीज़ और भी लगती है कि आज के युग में यदि हमें वृद्धों कि सेवा का अवसर मिले तो इसे नहीं गवाना चाहिए क्योकि आजकल जिंदगी का क्या ठिकाना????
आप की तरह ही यदि सभी की सोच हो जाए तो जीवन कितना सुखमय हो सकता है...बड़ो के प्रति प्रेम और सेवा भाव अब बहुत कम देखने मे आता है....माँ-बाप बच्चो के लिए जितना मर्जी करें लेकिन जब बच्चे जरूरत पड़ने पर उन की अनदेखी करते हैं तो उन के दिल पर क्या गुजरती है यह वही जानते हैं...यह अपने अनुभव की बात बता रहा हूँ....आप की पोस्ट पढ कर लगता है अभी भी उम्मीद की कुछ किरणे शेष हैं...अच्छी व प्रेरक पोस्ट के लिए धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंबड़ी अच्छी अच्छी बाते कहीं जी आपने
जवाब देंहटाएंaap ki bat sahi hai
जवाब देंहटाएंjo jaisa bota hai waisa hi kat ta hai
सभी जानते है पर मानते नहीं जब अपने ऊपर आती है तब तक बहुत देर हो चुकी होती है. सार्थक और शिक्षाप्रद आलेख के लिए धन्यवाद
जवाब देंहटाएंबिल्कुल सही कहा..अच्छी पोस्ट.
जवाब देंहटाएंएक गभींर विषय को छुआ है आपने
जवाब देंहटाएंआशा करुगा कि ये पोस्ट पढ़कर कुछ बदलाव आये लोगों की सोच में
सुन्दर और सार्थक बात बहुत सुन्दर ढंग से आपने अपने पोस्ट के माध्यम से रखा.
जवाब देंहटाएंनीलमा जी अच्छा आलेख, आज की इस अंधी दौड़ में बहुत कम लोग यह समझ पाते है !
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