ये पुरातन से चला आरहा है, कि सास और बहु का किस्सा, करीब करीब हर घर का रोना होता है|सास बहु कि बुराई करती है तो बहु सास की| समझ नहीं आता कि गलत कौन है?बहु अपना राग अलापती है अपने पति के सामने तो सास अपने बेटे से बहु की शिकायत पहुंचती है\ऐसे में फंसता है बेचारा बेटा ,माँ की ना सुने तो बुरा पत्नी की ज्यादा सुने तो मुसीबत|मुझे इस सास बहु के एपिसोड का एक चीज़ समझ से परे होती है कि ये नखरे एवम गलत सही का फैसला सास बहु बैठ कर स्वयं क्यों नहीं कर लेती?आज का युग तो पढ़े लिखे वर्ग का है फिर भी सास बहु कि मुसीबत क्यों नहीं कम हो रही है?
इसका कारण है कि नारी ही नारी कि दुश्मन होती है|जिसमें सब घर का अलग अलग तरीकें है कहीं सास समझदार होती है तो बहु नहीं होती और कहीं बहु समझदार होती है तो सास समझदार नहीं होती|और बंटाधार तब होता है जब दोनों में नासमझी होती है|हर लड़की शादी के ढेरों सपने बुन कर ससुराल जाती है किन्तु जब उन सपनो को रिश्तों के सिमित दायरे में बांध कर उन सपनों को रौंद दिया जाता है तो उस लड़की का शादी पर से विश्वास हट जाता है|उसका दिल दुखता है आत्मा से हाय निकलती है|उसके आत्मसम्मान पर ठेस लगती है उस समय ससुराल के प्रति उसकी नफरत पनपती है जो कभी भी नहीं खत्म होती |ये मेरी आखों देखी बात है,मैं किस्मत कि धनी हूँ मुझे इसका व्यक्तिगत अनुभव नहीं है किन्तु मैने बहु पर होने वाले अत्याचार को बहुत करीब से देखा था तब मैं छोटी थी मेरे बालमन पर इसका गहरा असर पड़ा था लगता था कि शायद शादी बहुत खराब चीज़ है |कोई भी लड़की जब दूसरे के घर जाती है वो उस पौधे के समान होती है जो एक जगह से निकाल कर दूसरे जगह लगा दिया जाता है उस पौधे को भी मिटटी पकड़ने में थोडा वक्त लगता है एक बार वो मिट्टी पकड़ लेता है तो बहुत जल्दी आगे बढ़ता है किन्तु उस पौधे को यदि कोई हिलाता है तो वो पनप नहीं पाता ,ठीक उसी प्रकार यदि बहु को भी प्यार सम्मान से रखा जाताहै तो वो उस घर में रंग जाती है अन्यथा उसे अपना पीहर ही याद आता है जहाँ वो अपना मान सम्मान छोड़ कर आती है|
अब यदि हम दूसरा पहलू देखे जहाँ सास अच्छी होती है जो कि आजकल बड़े शहरों में अक्सर हो रहा है कि सास बेटी और बहु में फर्क नहीं समझ रही है वहाँ यदि सास कि इक्षाओं का दमन होता है तो वो भी खराब है वहाँ मैने अक्सर देखा है कि माँ को केवल पहले जैसे बेटे से प्यार के दो बोल चाहिए किन्तु विवाह के पश्चात कुछ बहुएं ऐसी भी होती है जिन्हें पति का घर परिवार से लगाव पसंद नहीं आता |मुझे एक बात समझ नहीं आती ऐसा क्यों होता हैआखिर नारी अपने संस्कार कहाँ भूल गयी है उसका प्यार ,बडप्पन कहाँ खो गया है?
ये सास बहु का किस्सा कब तक चलेगा?मै यहाँ केवल कुछ लोगों कही नहीं सोच रही हूँ क्योकि मैं भी उन कम लोगों में हूँ जिसे इसका अनुभव नहीं है|किन्तु यदि हम उन पीड़ित लोगों का सोचे तो उनका जीवन नर्क बन जाता है सुख शांति चली जाती है|ये तनाव ही तरह तरह की बिमारियों को जन्म देता है|मेरा विचार तो ये कहता है या फिर यूँ भी कह सकते है कि मेरा अनुभव ये कहता है कि बड़ों को सम्मान दो छोटों को स्नेह अपने फर्ज़ से कभी भी ना हटो,बहु को चाहिए कि शादी के बाद ससुराल उसका घर है उसे पुरे अधिकार से रहना चाहिए साथ अपने कर्तव्य को निर्वाह करना चाहिए|सास को भी अपना समय याद करना चाहिए जब वो बहु बन कर आई थी अपने अरमानों के साथ ठीक उसी प्रकार बहु भी होती है यदि दोनों समझ लें एक दूसरे को और सास बहु ना होकर एक सहेली कि तरह व्यवहार करे तो शायद समस्या का समाधान हो जाये.......लेकिन दुविधा तो केवल एक है कि नारी नारी की प्रतियोगी होती है, एक दूसरे की तारीफ बर्दाश्त नहीं है तो कहाँ से समस्या का समाधान होगा?
गुरुवार, 18 फ़रवरी 2010
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ये बहुत भारी समस्या है जी ....ये ना होती तो नारी पहले भी इतने कश्ट ना झेल रही होती ना अब....अच्छा लेखन!
जवाब देंहटाएंhttp://kavyamanjusha.blogspot.com/
लेकिन दुविधा तो केवल एक है कि नारी नारी की प्रतियोगी होती है, एक दूसरे की तारीफ बर्दाश्त नहीं है तो कहाँ से समस्या का समाधान होगा?
जवाब देंहटाएं-काश, कोई सरल समाधान होता.
आपकी हर बात सही है लेकिन मुझे लगता है कि बदलाव आ रहा है आज कल कई घरों मे दोनो के रिश्ते बहुत अच्छी भी नही तो उतने बुरे भी नही रहे
जवाब देंहटाएंइतने लम्बे समय से चले आ रहे इस मसले को हल होने मे कुछ वक्त तो लगेगा ही। जैसे जैसे शिक्षा का प्रसार होगा इस मे भी सुधार आयेगा। धन्यवाद्
Bahut Achcha lekh , lekin parivartan to ho raha hai , bhale hi upare tarike se.
जवाब देंहटाएंduniya badal rahi hai
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