ये सही है की एक बच्चे के जन्म के बाद माँ को नया जन्म मिलता है, माँ बढ़ते बच्चे को नौ माह तक अपनी कोख में संभाले रहती है फिर होता है बच्चे का जन्म,तमाम तकलीफों के पश्चात एक बच्चे का जन्म होता है और माँ को मिलती है नई जिन्दगी|मैं ये नहीं जानती की सब माँ ऐसा ही सोचती है या फिर मैं कुछ ज्यादा सोचती हूँ कि बच्चों को पालने में ज्यादा जिम्मेदारियों को उठाना पड़ता है मेरे गणित के हिसाब से बच्चों को अच्छी शिक्षा ,अच्छे संस्कार,उनके परिपक्व हो जाने तक उनकी देख रेख, उनके बदलते उम्र के हिसाब से स्वयं को भी ढालना,इत्यादि ऐसी गतिविधियाँ होती है जिनसे एक माँ पूरी तरह परिपक्व हो जाती है|
ऐसा सब माँ के साथ होता है| किन्तु कुछ माँ ऐसी भी होती है जिन्हें कहीं इससे ज्यादा कष्ट उठा कर बच्चों को पालना पड़ता है|जब किसी कारणवश पति का साथ छुट जाता है कभी ये इश्वर का दिया कष्ट होता है और कभी ये उनकी मजबूरी होती है|जो भी है वो बच्चों को पालती है, बच्चे बड़े हो जाते हैं उनकी शादी होती है लड़की है तो अपने ससुराल जाती है और लड़का हुआ तो लड़की घर आती है और उसके पश्चात् यदि लड़की समझदार है तो उस माँ के जीवन से सीख लेगी अन्यथा रोज़ का महाभारत कोई भी नहीं रोक सकता ये आये दिन कि कहानी हो गयी है| यकीन मानिये जब ऐसे वाकये सामने आते हैं तो दिल दहल जाता है कि लोग केवल पति तक ही रिश्ता क्यों रखना चाहते है?
विवाह एक ऐसा पवित्र रिश्ता होता है जो कि पति पत्नी के साथ ही और रिश्तों का भी जन्म देता है| हर रिश्तों कि अपनी अहमियत होती हैऔर जब हम माँ बन जाते है तब तो माँ के दर्द एवम ममता कि लाज रखनी चाहिए | केवल आज़ादी कायम रखने के लिए हम रिश्तों को तोड़ते है ये कहाँ तक उचित है?यदि कुछ गलत लगता है उसे बात से सुलझाया जा सकता है, लेकिन समस्या एक है कि आजकल हम कैरियर बनाने के चक्कर में रिश्तों के अहमियत को भूल गए है, मैने तो यहाँ तक देखा है कि फोन से भी बात करना जरूरी नहीं समझा जाता|मै जब ऐसा माहौल देखती हूँ तो मेरा दम घुटता है,लगता है कि कैरियर बनाओ किन्तु रिश्तों का गला मत घोटो|
माँ ने कष्ट सह कर जन्म दिया है एवम पाला है उसका सम्मान करो यदि कुछ गलत लगता है तो हक़ से बोलो लेकिन रिश्तों को मत टूटने दो...........
बुधवार, 10 फ़रवरी 2010
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माँ ने कष्ट सह कर जन्म दिया है एवम पाला है उसका सम्मान करो यदि कुछ गलत लगता है तो हक़ से बोलो लेकिन रिश्तों को मत टूटने दो...........
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर बातें कही !!
माँ माँ है.. हमेशा सही...
जवाब देंहटाएंआपकी बात बिल्कुल सही है। उपेक्षा पर दुख तो होता ही है
जवाब देंहटाएंसही कह रही हैं आप!
जवाब देंहटाएंघर में आने वाली बहु भी एक दिन माँ बनेगी, वह भी नवीन जीवन प्राप्त करेगी। अक्सर इस उम्र में लोग यह कहते हैं कि जो आपने किया वो हम भी करेंगे। हिसाब बराबर। लेकिन उससे पीड़ित हर युग के माता-पिता होते हैं। पहले ऐसा नहीं था बच्चों को पालना हमारी ममता थी तो बड़ों को पालना हमारा धर्म था। लेकिन आज धर्म तो कोई मानता नहीं।
जवाब देंहटाएंmaa ke kadmon ke niche jannat hoti hay.
जवाब देंहटाएंlog u hin aisa nahi kaht
Rishton ki baat karen to MAA rishton se kahin upar ka darja rakhti hay MAA apnepan ki murat hay na ki rishton ke dunia ka ek rishta.
100 safal logon se aap puchh le MAA ko unhone rishton se uper rakh kar safalta prapt ki hay ya nahi?
jawab ek hin milega YES.
मेरे से अधिक विचारवान लोगो ने आपके लेख की गुणवत्ता को सराहा है, तो मेरे शब्द सूर्य को दिया दिखाने जैसे है
जवाब देंहटाएंबस यही कहूँगा की माँ से बढ़ कर कुछ नहीं