Hmarivani

www.hamarivani.com

Hmarivani

www.hamarivani.com

रविवार, 29 नवंबर 2009

ज्योतिष क्या है ? What is Astrology ?


This is my 100th Post.




ज्योतिष उस विद्या का नाम है , जिसके द्वारा आकाशीय ग्रहों के माध्यम से भूत , भविष्य और वर्तमान का हाल जाना जा सकता है | ज्योतिष शास्त्र  का अपर नाम ज्योति शास्त्र  भी है | ज्योति शास्त्र का अर्थ हुआ - प्रकाश देने वाला शास्त्र | अर्थात वह शास्त्र जो संसार के सुख - दुःख , जीवन मरण एवं ब्रह्मांड जैसे विभिन विषयों पर प्रकाश डालकर उन्हें उजागर करने के क्षमता  रखता है |

सौर मंडल में सूर्य , चन्द्र , मंगल आदि ब्रम्हांडीय पिंडों को ज्योतिष या ज्योतिष्क  कहा जाता है |

ज्योतिष के उत्पत्ति कब हुई , इस विषय में निश्चत  रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता | किन्तु , इसके प्राचीनता इस बात से सिद्ध होती है की संसार के सबसे प्राचीन ग्रन्थ "वेद " मानें जातें हैं ; और ज्योतिष वेदों का अंग है |
वेद के छह अंग हैं - शिक्षा , कल्प , व्याकरण , निरुक्त , छंद   एवं ज्योतिष |

संसार की  प्रत्येक वस्तु तथा प्राणी गृह नक्षत्रों के प्रभाव से पूर्ण  प्रभावित हैं |  ज्योतिष शास्त्र की सहायता से भूत , भविष्य एवं वर्त्तमान का ज्ञान प्राप्त कर अपने प्रयत्नों द्वारा वर्तमान तथा भविष्य के जीवन को प्रभावित एवं परिवर्तित भी किया जा सकता है | अतः यह शास्त्र जो होना है वह होगा ही पर आश्रित केवल भाग्यवादी बने रहने के लिए नहीं कहता , अपितु भविष्य में घटने वाली घटनाओं का पूर्वाभास होने पर उनसे बचने , उन्हें बदलने या मिटने के लिए प्रयत्नशील होने की प्रेरणा भी देता है |

इस प्रकार ज्योतिष  शास्त्र भाग्य और कर्म के समन्वय का सेतु है |
ज्योतिष द्वारा अपना भविष्य जानने के लिए किसी  विद्वान ज्योतिषाचार्य को ही अपनी कुंडली दिखाना चाहिए तथा परामर्ष लेना चाहिए अन्यथा लोग हमेशा भ्रमित रहेगे | 

शनिवार, 28 नवंबर 2009

दक्षिणावर्ती शंख का महत्त्व



एक बार भगवान विष्णु जी ने लक्ष्मीजी से पूछा कि आपका निवास कहाँ कहाँ होता है ? उत्तर में लक्ष्मीजी ने कहा - लाल कमल , नील कमल , शंख , चंद्रमा और शिवजी में मेरा निवास होता है | लक्ष्मीजी और शंख दोनों ही समुद्र से उत्पन्न हुए  हैं | इसलिए शंख को लक्ष्मीप्रिया , लक्ष्मी भ्राता , लक्ष्मी सहोदर आदि  नामों से जाना जाता है | अतः यह दोनों भाई बहिन हैं | शंख बहुत प्रकार के होतें हैं , लेकिन प्रचलन में मुख्य रूप से दो प्रकार के शंख है | प्रथम वामवर्ती शंख , दूसरा दक्षिणावर्ती शंख | वामवर्ती शंख का पेट बांयी ओर को खुला होता है |तंत्र शास्त्र में वामवर्ती शंख की अपेक्षा दक्षिणावर्ती शंख को विशेष महत्त्व दिया गया है | यह शंख वामवर्ती  शंख के विपरीत इनका पेट दायीं ओर खुला होता है | इस प्रकार दायीं ओर की भंवर वाला शंख " दक्षिणावर्ती " कहलाता है |
प्रायः सभी दक्षिणावर्ती शंख मुख बंद किये होते हैं | यह शंख बजाये नहीं जाते हैं , केवल पूजा रूप में ही काम में लिए जाते हैं | शास्त्रों  में दक्षिणावर्ती शंख के कई लाभ बताये गए है :-

  • राज सम्मान की प्राप्ति


  • लक्ष्मी वृद्धि


  • यश और कीर्ति वृद्धि


  • संतान प्राप्ति


  • बाँझपन से मुक्ति


  • आयु की वृद्धि


  • शत्रु भय से मुक्ति


  • सर्प भय से मुक्ति


  • दरिद्रता से मुक्ति

दक्षिणावर्ती शंख में जल भरकर उसे जिसके ऊपर छिड़क दिया जाये . वह व्यक्ति तथा वस्तु पवित्र हो जाता है |

क्यों होती है गणेशजी एवं लक्ष्मी जी कि संयुक्त पूजा


ॐ गणेशाय नमः
 एक समय की  बात है वैकुंठ  धाम में भगवान विष्णु एवं माता लक्ष्मी विराजमान होकर आपस में वार्ता कर रहे थे | माता लक्ष्मी श्री हरी जी से कह रहीं थीं  कि किस प्रकार वे  दुनिया में सब से अधिक पूजनीय एवं श्रेष्ठ हैं |लक्ष्मी जी को इस प्रकार अपनी  प्रशंसा  करते सुन भगवान विष्णु जी को अच्छा नहीं लगा और उनका अहं कम करने के लिए उन्होंने कहा " तुम सर्व संपन होते हुए भी आज तक माँ का  सुख प्राप्त नहीं कर पाई " | इस बात को सुन कर माँ लक्ष्मी को बहुत दुःख हुआ और वो  अपनी  पीड़ा सुनांने अपनी  प्रिय सखी माँ पार्वती के पास गयीं और उनसे विनती की जिससे वो अपने पुत्र कार्तिकेय और गणेशजी में से किसे एक को उनको दत्तक  पुत्र के रूप में प्रदान कर  दें | माँ पार्वती गणेश भगवान को माँ लक्ष्मी को दत्तक पुत्र के रूप में देने का स्वीकार कर लिया | विष्णु प्रिय लक्ष्मी ने माँ पार्वती से कहा की "आज से मेरी सभी सिद्दिधियाँ , सुख संपत्ति मैं अपने पुत्र गणेश  जी को प्रदान करती  हूँ एवं मेरी पुत्री के समान प्रिय रिध्धि और सिध्धि जो के ब्रह्मा जी के पुत्रियाँ हैं , उनसे गणेशजी का विवाह करने का वचन देती हूँ | सम्पूर्ण  त्रिलोकों में जो व्यक्ति , श्री गणेश जी कि पूजा नहीं करेगा और उनकी  निंदा करेगा मैं उनसे कोसों दूर रहूँगी | जब भी मेरी पूजा कि जाएगी उसमे गणेश जी की  पूजा अवश्य होगी | 

ऐसे हुए भगवान गणेश एकदन्त


श्री गणेशाय नमः |

आप जब भी भगवान श्री गणेश जी की कोई प्रतिमा देखेंगे तो उसमे पाएंगे कि उनका एक दन्त खंडित है | उनके एकदंती होने के पीछे एक कथा है | इस कथा के अनुसार तीनों लोकों की क्षत्रिय  विहीन करने के पश्चात परशुराम जी अपने गुरुदेव भगवान शिव जी और गुरु माता से मिलने कैलाश पर्वत पहुंचे | उस समय भगवान शिव जी विश्राम कर रहे थे और भगवान श्री गणेश जी द्वार पर पहरेदार के रूप में बैठे थे | द्वार पर भगवान श्री गणेश को देख कर परशुराम जी ने उन्हें नमस्कार किया और अन्दर के ओर जाने लगे , इस पर भगवान श्री गणेशजी ने उनको अन्दर जाने से रोका | धीरे धीरे  दोनों के मध्य विवाद बढ़ता चला गया | परशुराम जी ने अपने अमोध फरसे को  , जो की उनको श्री शिव भगवान ने दिया था , चला दिया | फरसे के वार से भगवान गणेश जी का एक दन्त खंडित हो गया | तब से भगवान गणेशजी एकदंत के नाम से भी जाने जाते हैं |

OVERCOME EGO TO BE HAPPY

Every one in this world wishes and desires to be happy but they follow wrong path and confuse happiness with money , success , name and fame. There is no point in being successful if happiness is not there. It is like the lemon and spoon race that one plays in childhood - you can win only if you reach the finish line first and have the lemon on the spoon and it should not have fallen down on way . It is better to come 2nd or srd rather than first but one must have the lemon on the spoon. Lemon in this case is like happiness. So one has to strive for success but not at the cost of happiness.

The question is - Can money buy happiness ? Do great achievements bring true happiness ? Riches , success and achievements may bring name , fame and pride but they do not always bring happiness. If lack of money and success creates sorrow , their possession does not give happiness either.The question than is how can one be peaceful and happy , irrespective of whether you are a success or failure ?

In my opinion if you want happiness , unite with god - for this you do not need to abandon the pursuit of riches , success and achievements. If one is without ego one will see god in all beings. One who has ego only sees status , rank , position , wealth in other beings and that is the barier to uniting with god.

So to be happy , be free from ego , see god in every being and love them and thus unite with God and in turn be happy.

जीवन की  असली खुसी अहंकार त्याग कर हर जीव को भगवान  समान समझ कर उसकी  सेवा करने में ही  है |

जीवन की असली सफलता केवल धन संपत्ति में ही  नहीं है , दूसरों   को  दी  गयी  छोटी खुशियाँ भी जीवन को सफल बनाती हैं | 

सोमवार, 23 नवंबर 2009

Bhagavan Shri Sathya Sai Baba

JAI SAI RAM                                    जय साईं राम


    
I am reproducing below two sayings of Bhagavan Shri Sathya Sai Baba which I find of great significance in todays world :-

1)  I have come to light the lamp of Love in your hearts, to see that it shines day by day with added luster. I have not come on behalf of any exclusive religion. I have not come on a mission of publicity for a sect or creed or cause, nor have I come to collect followers for a doctrine. I have no plan to attract disciples or devotees into my fold or any fold. I have come to tell you of this unitary faith, this spiritual principle, this path of Love, this virtue of Love, this duty of Love, this obligation of Love. 4 July 1968, Baba

2) If there is righteousness in the heart, there will be beauty in the character.

If there is beauty in the character, there will be harmony in the home.
If there is harmony in the home, there will be order in the nation.
When there is order in the nation, there will be peace in the world.

रविवार, 22 नवंबर 2009

Bhagwan Shri Satya Sai Baba’s 84th Birthday

Aum Sai Ram


Bhagwan Shree Sathya Sai Baba’s 84 th Birthday Falls tomorrow i.e 23rd November 2009. Baba is Pure Love Walking on Two Feet with his message -Love All , Serve All and as Baba has said :-

There is only one religion ,the religion of Love ;
There is only one caste , the caste of humanity ;
There is only one language , the language of heart ;
There is only one God , he is omnipresent.

“I am God. And you too are God. The only difference between you and Me is that while I am aware of it, you are completely unaware.” This is the answer Bhagawan Sri Sathya Sai Baba gives to people who query Him about His identity and divinity. This fundamental truth of man’s divine nature is at the heart of His message and mission.


Sri Sathya Sai Baba was born on November 23, 1926 in the village of Puttaparthi, in the state of Andhra Pradesh in South India. Even as a child, His spiritual inclination and contemplative nature set Him apart from other children of His age. However, it was not until October 20, 1940, the day He made the historic declaration of His Avatarhood, (Avatar - Divinity Incarnate) that the world at large learnt of this divine phenomenon. Today, millions of devotees from all over the world, professing various faiths, and hailing from various walks of life worship Him as an ‘Avatar’, and an incarnation of the Sai Baba of Shirdi. Thousands gather every day at Prasanthi Nilayam, His ashram established beside the village of Puttaparthi, for His Darshan, when He moves among devotees blessing them and providing spiritual succour and solace.


Revealing the purpose of His Advent, Sai Baba has said that He has come to re-establish the rhythm of righteousness in the world and repair the ancient highway to God, which over the years has systematically deteriorated.


Bhagawan Sri Sathya Sai Baba is an integral manifestation who combines two very significant roles. Firstly, He is a great spiritual Master, famed for His simple and sweet exposition of the greatest and most intricate of spiritual truths which form the fundamental teachings of all the religions of the world. Elucidating on His mission, Bhagawan declares “I have come not to disturb or destroy any faith, but to confirm each in his own faith, so that the Christian becomes a better Christian, the Muslim a better Muslim and the Hindu a better Hindu.” His formula for man to lead a meaningful life is the five-fold path of Sathya (Truth), Dharma (Righteousness), Shanthi (Peace), Prema (Love) and Ahimsa (Non-Violence). Love for God, fear of sin and morality in society – these are His prescriptions for our ailing world.


Secondly, He is an inexhaustible reservoir of pure love. His numerous service projects, be it free hospitals, free schools and colleges, free drinking water supply or free housing projects, all stand testimony to His selfless love and compassion for the needy and less privileged. True to His declaration - “My Life is My Message”, He has inspired and continues to inspire millions of His devotees worldwide by His personal example to live the ideal that service to man is service to God..


Bhagawan Sri Sathya Sai Baba is thus a beacon of hope in a world that is desperately seeking an end to the unrest and sorrow prevalent today.













श्री गणेश भक्तो का परम कर्तव्य


भगवान श्री गणेश भगवान के भक्तों को निम्लिखित बातों पर  अवश्य ध्यान देना चाहिए :-
१. भगवान श्री गणेश जी का नित्य प्रति दिन पूजन करो और प्रातः काल उठकर उनके चित्र का दर्शन करो |
२. किसे कार्य के आरम्भ करने के पूर्व भगवान श्री गणेश जी का स्मरण करना न भूलें |
३. अपना घर , मकान या महल बनाते समय द्वार पर श्री गणेश भगवान जी की सुन्दर से प्रतिमा लगाना न भूलें |
४. समाज के लिए हानिकारक या तामसिक वस्तुवों को बेचने के लिए उनपर कभी भी गणेशजी का मार्क मत लगाओ |
५. तामसिक पदार्थों का सेवन मत करो और सात्त्विक बनो |
६. पूज्य ब्राह्मणों के द्वारा श्री  गणेश पुराण के कथा का श्रवण करो | गणेश जी के मंदिर में जाकर प्रभू के दर्शन पूजन करो | उनके मंत्र का जप करो और उनके नाम का संकीर्तन करो |               

भगवान श्री गणेश जी को कैसे प्रसन्न करें

|| ॐ श्रीपरमात्मने नमः ||


भगवान श्री गणेश जी को कैसे प्रसन्न करें
भगवान श्री गणेश जी को प्रसन्न करने का साधन बड़ा ही सरल और सुगम है |
पीली माटी की डली ले लो | उसपर लाल कलावा ( मोली ) लपेट दो | भगवान श्री गणेश जी साकार रूप में उपस्थित हो गए | रोली का तिलक लगा दें और चावल के दाने डाल दें | पूजन की यही सरल विधि है | कुछ मीठा या चार बताशा चढ़ा दें , यह भोग लग गया और -
गजाननम भूतगणदिसेवितम कपिथ्जम्बुफल्चारुभाक्श्र्म
 उमासुतं    शोकविनाशाकाराक्म  नमामि  विघ्नेश्वार्पाद्पंक्जम
 Gajananam Bhoota Ganaadi Sevitam

 Kapittha Jambu Phala Charu Bhakshitam
Uma Sutam Shoka Vinasha Karakam
Namaami Vighneshwara Pada Pankajam

यह छोटा सा शोल बोल देने से मंत्र  की  प्रक्रिया भी हो जाती है | इतने से ही श्री गणेश भगवान प्रसन्ना हो जाते हैं , कितने दयालु हैं गणेश भगवान ! कुछ भी न बन पड़े तो बस दूब ही चढ़ा देने से कार्य सिद्ध हो जाता है |

ॐ गं  गणपति नमः

शनिवार, 14 नवंबर 2009

गीता सार - Gist of Gita

Bhagwat Gita is one of the very important religious book of Hundu's which has gist of life . The Bhagavad Gita is the essence of the Vedas and Upanishads. It is a universal scripture applicable to people of all temperaments, for all times.This book is compiled basis the counsel or advice ( उपदेश ) given by  Lord krishna to Arjun in the battle field of Kurukshetra . Reproduced below is the gist of Gita which would be useful for all indivuduals.

" खाली हाथ आये  और खाली हाथ चले। जो आज  तुम्हारा है, कल और   किसी का था, परसों किसी और का होगा। इसीलिए, जो कुछ भी तू करता है, उसे भगवान  को  अर्पण करता चल। "
"You came empty handed, you will leave empty handed. What is yours today, belonged to someone else yesterday, and will belong to someone else the day after tomorrow. So, whatever you do, do it as a dedication to God! "

क्यों व्यर्थ की चिंता करते हो? किससे व्यर्थ डरते हो? कौन तुम्हें मार सकता  है? आत्मा ना पैदा होती है, न मरती है।
जो हुआ , वह अच्छा हुआ , जो हो रहा है, वह अच्छा हो रहा है, जो होगा, वह भी अच्छा ही होगा। तुम भूत का पश्चाताप न करो। भविष्य की चिन्ता न करो। वर्तमान चल रहा है।

तुम्हारा क्या गया, जो तुम रोते हो? तुम क्या लाए थे, जो तुमने खो दिया? तुमने क्या पैदा किया था, जो नाश हो गया? न तुम कुछ लेकर आए, जो लिया यहीं से लिया। जो दिया, यहीं पर दिया। जो लिया, इसी (भगवान) से लिया। जो दिया, इसी को दिया।

परिवर्तन संसार का नियम है। जिसे तुम मृत्यु समझते हो, वही तो जीवन है। एक क्षण में तुम करोड़ों के स्वामी बन जाते हो, दूसरे ही क्षण में तुम दरिद्र हो जाते हो। मेरा-तेरा, छोटा-बड़ा, अपना-पराया, मन से मिटा दो, फिर सब तुम्हारा है, तुम सबके हो।

न यह शरीर तुम्हारा है, न तुम शरीर के हो। यह अग्नि, जल, वायु, पृथ्वी, आकाश से बना है और इसी में मिल जायेगा। परन्तु आत्मा स्थिर है - फिर तुम क्या हो?

तुम अपने आपको  भगवान को  अर्पित करो। यही सबसे उत्तम सहारा है। जो इसके सहारे को जानता है वह भय, चिन्ता, शोक से सर्वदा मुक्त है। 

जो कुछ भी तू करता है, उसे भगवान को  अर्पण करता चल। ऐसा करने से सदा जीवन-मुक्ति  का आनंद अनुभव करेगा।

शरीर एक दिव्य बैंक

तू ही है तेरे जीवन का शिल्पकार |
Every Individual creates himself.

Much like in real world where we put all our savings in a bank account and draw the principal and interest at the time of need even in spiritual world the good deeds that we do get credited into the bank account of our body and mind and at time of need we draw it. It is spiritual duty of all human beings to keep a positive balance of good deeds in our Divya -दिव्य account so that we can drwa the same at time of our own time of need  or our children and dependent can draw it at their time of need or even our country can draw it during its time of need.

मानव शरीर एक दिव्य बैंक है जिसमे हमें निरंतर अच्छे कार्य रुपी खजाना  को जमा कर के रखना चाहिए जिसे हम जरूरत  के समय में उपयोग कर सकें |

शुक्रवार, 13 नवंबर 2009

दूसरों के प्रति अच्छी भावना

 माला फेरत जुग भया , फिरा न मन का फेर |
कर का मन का डार दे , मन का  मनका फेर ||

कबीरदासजी कहते है कि माला जपते जपते एक युग बीत गया किन्तु मन का मैल नहीं धुला, अतः सर्वप्रथम दूसरों के प्रति वैर भावना हटा दें, इर्ष्या हटा दें, तब ही शांती प्राप्त होगी. |

दूसरे की कमी देखकर हंसो नहीं

आपन को न सराहिये, पर निंदनीय नहिं कोय।
चढ़ना लम्बा धौहरा, ना जानै क्या होय।

कवी कबीरदास जी कहते हैं कि अपने मूंह से कभी अपनी सराहना मत करो और न ही दूसरे की निंदा न करो । क्योंकि हमारा जीवन लम्बा है उसमे न जाने क्या देखना पड़े |
दोष पराया देखि कर , चले हसत हसत ।
अपन याद न आई , जाकी  आदि न अन्त।

कवी कबीरदास जी कहते हैं कि दूसरों के दोष देखकर सभी हंसते हैं पर उनको अपना दोष नहीं दिखाई  देता है जिसका  कभी अंत ही नहीं है।

अपने मूंह से अपनी बड़ाई  करना और दूसरों  की निंदा करना मानवीय स्वभाव है। अपने में कोई गुण न हो पर उसे प्रचारित करना और दूसरे के गुण की जगह उसके दुर्गुण की चर्चा करने में सभी को आनंद आता है पर किसी को अपने दोष नहीं दिखते।  संत कबीरदास जी कहते हैं कि अपने बारे में अधिक दावे मत करो अगर किसी ने उनका प्रमाण ढूंढना चाहा तो पूरी पोल खुल जायेगी।

उसी तरह दूसरे की निंदा करने की बजाय अपने गुणों की सहायता से भले काम करने का प्रयास करें यही अच्छा रहेगा। आत्मप्रवंचना कभी विकास नहीं करती और परनिंदा कभी पुरस्कार नहीं दिलाती। यह हमेशा याद रखना चाहिये।

बुधवार, 11 नवंबर 2009

दिल टूटने पर कुछ भी नहीं अच्छा लगता

कबीरदस जी के दोहे 
धरती फाटे मेघ मिलै, कपड़ा फाटे डौर
तन फाटे को औषधि, मन फाटे नहिं ठौर

कबीरदास जी कहते हैं कि जब पानी बरसता है तो फटी हुई धरती आपस में मिल जाती है और फटा हुआ कपडा डोरे से सिल जाता है और बीमार देह को औषधि से स्वस्थ किया जा सकता है पर अगर कही मन  फट गया तो उसके लिये कोई उपाय नहीं  होता है।
बिना सीस का मिरग है, चहूं दिस चरने जाय
बांधि लाओ गुरुज्ञान सूं, राखे तत्व लगाय

कबीरदास जी कहते हैं कि यह मन तो बिना सिर के मृग की तरह होता  है जो चारों तरफ भागता रहता है। इस पर नियंत्रण करने पर ही  जीवन का आनंद लिया जा सकता है।


 सब भौतिक चीजों पर हम अपना नियंत्रण कर लेते हैं पर मन पर कोई नियंत्रण नहीं कर पाता। वह चारों तरफ आदमी को  दौड़ाता है। भक्ति भाव से दूर रहकर हम अपने आपको बहुत तकलीफ देते हैं। कोई भौतिक चीज मिल जाती है तो उसे पाकर पुलकित हो उठते हैं पर जल्द ही उससे ऊब जाते हैं फिर किसी नयी चीज की तलाश में लग जाते हैं।
हम अपने मन के साथ भागते हैं पर अपने अंदर बैठे जीवात्मा को नहीं  देखते जो भगवान भक्ति के लिये ताकता रहता है।

अपने मन की बात दूसरे को न बताएं

रहिमन निज मन की, बिथा, मन ही राखो गोय।
सुनि अठिलैह लोग सब, बाटि न लैहैं न कोय।।

कवी  रहीम जी  कहते हैं कि अपने मन की व्यथा अपने मन में ही रखें , क्योंकि लोग दूसरे का कष्ट सुनकर उसका उपहास उड़ाते हैं। यहां कोई किसी की सहायता करने वाला नहीं है-न ही कोई मार्ग बताने वाला है।

रहिमन ठहरी धूरि की, रही पवन ते पूरि।
गांठ युक्ति की खुलि गई, अंत धूरि को धूरि।

कवी  रहीम जी कहते हैं कि जिस तरह जमीन पर पड़ी धूल हवा लगने के बाद उड़ जाती   है वैसे ही यदि आदमी की योजनाओं का समयपूर्व खुलासा हो जाये तो वह भी धूल हो जाते हैं।


इस संसार में भला कौन कष्ट नहीं उठाता पर अपने दिल को हल्का करने के लिये लोग दूसरों के कष्टों का उपहास उड़ाते हैं। इसलिये जहां तक हो सके अपने मन की व्यथा अपने मन में ही रखना चाहिये। सुनने वाले तो बहुत हैं पर उसका उपाय बताने वाला कोई नहीं होता। अगर सभी दुःख हरने का उपाय जानते तो अपना ही नहीं दुःख कम कर लेते ।
अपने जीवन की योजनाओं को गुप्त रखना चाहिये। जीवन में ऐसे अनेक अवसर आते हैं जब हम अपने रहस्य और योजनायें दूसरों को यह कहते हुए बताते हैं कि ‘इसे गुप्त रखना’। यह हास्यास्पद है। सोचने वाली बात है कि जब हम अपने ही रहस्य और योजनायें गुप्त नहीं रख सकते तो दूसरे से क्या अपेक्षा कर सकते हैं।

रविवार, 8 नवंबर 2009

विनम्रता का गुण ही पहचान है शक्ति का -रहीम

रहिमन करि सम बल नहीं, मानत प्रभू की धाक
दांत दिखावत दी ह्यै, चलत घिसावत नाक



कविवर रहीम जी के मतानुसार हाथी के समान किसी में बल नहीं है पर वह भी भगवान की शक्ति को मानता है और अपनी नाक जमीन पर रगड़ता हुआ चलता है। यहां रहीम जी ने विनम्रता के गुण का बखान किया है।


हाथी जो सभी जीवों में शक्तिशाली है वह जमीन पर सूंढ़ को रगड़ता हुआ चलता है। यह इस बात का प्रमाण है कि शक्तिशाली व्यक्ति को विनम्र होना चाहिये। जिसमें विनम्रता नहीं है वह शक्तिशाली नहीं होता। बरगद का पेड़ झुका है तभी किसी को छाया दे पाता है। यानि शक्तिशाली लोग दूसरों को आसरा देते हैं और दूसरों की भलाई के बारे में सोचते  हैं ।


एक बात और है कि अगर हमारे अंदर कोई विशेष गुण या वस्तु है तो उसका भी अहंकार न कर दूसरों के साथ उसका लाभ बांटना चाहिये। यही होता है आदमी की शक्ति का प्रमाण कि वह दूसरे में हौंसला और विश्वास बढ़ाये न कि उसे गिराये।

CHANAKYA NEETI - SIGNIFICANCE OF GOOD WORK

चाणक्य नीति - अच्छा काम  करके थोड़ा  जीना भी उत्तम होता है 

मुहूर्तमपि जीवेच्च नरः शुक्लेन कर्मणा।
न कल्पमपि कष्टेन लोक़द्वयविरोधिना।।
हिदी में भावार्थ-
अगर अच्छे काम करते हुए मनुष्य एक मुहूर्त भी जीवित रहे तो वह उत्तम है पर दूसरे के संकट खड़ा करने के साथ अनावश्यक विरोध करने वाला लंबे समय तक जीवित रहे तो भी अच्छा नहीं।

गते शोको न कत्र्तव्यो भविष्यं नैव चिन्तयेत्।
वर्तमानेन कालेन प्रवर्तन्ते विचक्षणाः।।
हिंदी में भावार्थ-
भूतकाल में किये गये कार्य का शोक नहीं करते हुए भविष्य की चिंता करना चाहिये। विद्वान लोग वर्तमान के अनुसार अपने कार्य को योजनाबद्ध ढंग से करते हुए भविष्य संवारते हैं।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-मनुष्यों में कुछ देवत्व और राक्षसत्व दोनों भाव रहते हैं। मुख्य बात यह है कि मनुष्य चलना किस राह चाहते हैं और इसी आधार पर उनके द्वारा व्यवहार किया जाता है। जिन लोगों के मस्तिष्क में लोभ, लालच और अहंकार की प्रवृत्ति की प्रधानता है वह सिवाय अपने स्वार्थ की पूर्ति के अलावा कुछ अन्य नहीं देखते। धीरे धीरे वह इतने आत्मकेंद्रित हो जाते हैं कि वह किसी दूसरे का काम बनता देख उनके हृदय में   ईष्र्या और द्वेष के भाव पैदा होने लगते हैं। इतना ही नहीं किसी दूसरे का काम बिगाड़ने में भी उनको मजा आता है। ऐसे लोगों की जिंदगी पशु के समान हो जाती है और वह समाज के लिये कष्टदायी होते हैं। इसके विपरीत कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो पाखंड से परे होकर शांति से परोपकार का कार्य करते हुए प्रचार से दूर रहते हैं। ऐसे लोगों को पूरा समाज आदर भी करता है।
जो बीत गया सो बीत गया। अपने हाथ से कोई अच्छा काम हुआ हो या कोई गलती हो गयी हो तो उसकी चिंता को छोड़ते हुए भविष्य की योजना बनाना चाहिए। अपने वर्तमान में ही ऐसे कार्य करने की सोचना चाहिये जिससे भूतकाल की गल्तियां स्वतः सुधरने के साथ ही भविष्य में भी लाभ होता है।

ISLAMIC PRAYER ( SALAAT )


Muslims observe five formal prayers each day.The timings of these prayers are spaced are paced fairly evenly throughout the day , so that one is constantly reminded of God and given opportunities to seek his guidance and forgiveness.


Muslims observe the formal prayers at the following times :-


Fajr ( Pre-Dwan ) : The prayer starts off the day with the remembrance of God and it is performed before sunsrise.


Dhuhr ( Noon ) : After the day's work has begun , one breaks shortly after noon to again remember God and see his guidance.


Asr ( Afternoon ) : In the late afternoon, people are usually busy wrapping up the day's work , getting kids home from school , etc .It is an important time to take a few minutes to remember God and the greater meaning of our lives.


Maghrib ( Sunset ) : Just after the sun goes down , Muslims remember God again as the day begins to come to a close.


Isha ( Evening ) : Before retiring for the night , Muslims again take time to remember God's presence , guidance , mercy and forgiveness.


शनिवार, 7 नवंबर 2009

ENERGY OF THOUGHTS

हर एक सोच एक प्रार्थना होते है और हर एक प्रार्थना प्रभु तक पहुँचती है और उसका  सफल उत्तर मिलता है | हर एक सोच हमारे आस पास एक कम्पन सा बनाती है जिससे वह अपने आप ही  भगवान तक पहुँच जाती है | ईश्वर हर एक व्यक्ति की पुकार सुनते  है | इस लिए हमारी कोशिश हमेशा  यह होनी चाहिए के हमारी सोच सकरात्मक हो जिससे हमारी सकरात्मक पुकार ही प्रभु तक पहुंचे | इस लिए अगर हमारे सोच में नकारात्मकता  होगी तो वो ही प्रभु तक पहुंचे गी  और उसी  प्रकार का नकारात्मक  प्रभाव होगा | इस लिए अंजान में भी हमें किसे को भी  नकारात्मक  बात नहीं बोलनी चाहिए | ऐसा भी कहा जाता है के हमारे पूर्वज हर दिन तीन बार हमारे द्वारा कही हुए बातों को तथास्तु कह कर हमें आशीर्वाद देते हैं | ऐसा भी कहा जाता है के हर दिन हमारे जुबान पर एक समय  माँ सरस्वती विराजमान होती हैं और हम जो भी कहते हैं उसे सत्य बना देती  हैं , इस लिए अगर हम नकारात्मक बात बोलेंगे तो वह सही भी हो सकती है | इस लिए हम अगर नेगेटिव सोचेंगे  और नेगेटिव कहेंगे तो वैसा हे हो जायेगा | इस लिए गलती से भी कभी अपने किसी  करीबी  को कुछ गलत मत कहिये वरना वैसा ही  हो जायेगा |

POSITIVE THOUGHTS , POSITIVE SPEECH , POSITIVE RESULTS 

BHAGWAN SHRI SATYA SAI BABA’S TEACHINGS

HELP EVER , HURT NEVER

At the age of 14 , in 1940 , Bhagwan Shri Satya Sai Baba , declared to his parents that he had come to this world with a mission to re-establish the principle of Righteousness , to motivate love for God and service to fellow man. Since then , he has always called on mankind to LOVE ALL , SERVE ALL and the essence of all his teachings is HELP EVER , HURT NEVER.

A few drops of the ocean of Bhagwan Shri Satya Sai Baba’s teachings for all human beings are given below :-

  • Believe in God – for there is only one God for all mankind , though he may be called by many names.
  • Follow sincerely their respective religions and live their daily lives in consonance with the teachings of good behaviour and morality.
  • Respect all other religions
  • Perform selfless service to the poor , the sick and the needy without thought of reward or fame.
  • Cultivate in their lives the values of truth , divine love , right conduct , peace and non-violence and also promote these values amongst all.
  • Be patriotic and respect the laws of the country in which they live

HAJ PILGRIMAGE

There are five compulsory acts of worship that are paramount to Islam. They are the Vow of truth, Salat (Prayer), Zakaat (Charity), Fasting and Haj (Pilgrimage).



Every healthy and affluent Muslim should undertake a pilgrimage to Mecca, once in his life time. This pilgrimage is known as Haj. People of different nationalities, languages and colours, gather in millions at Mecca during the month of Haj. The concept of one humanity upheld by Islam is explicit during Haj pilgrimage when the pilgrims have the same thought, carry the same prayer on their lips, and are uniformly dressed (the man using just two pieces of cloth – one to wear and the other to cover and the women covering all the parts of their bodies except their face and hands). A single humanity, where there is no discrimination between master or labourer, black or white, elite or lowly, native or foreigner, is symolized by the multitude of humanity that assemble for this holy pilgrimage.



The Quran says that Haj is an obligation for those who can afford it after taking care of family and fulfilling basic obligations.Personal health should not be constraint.Haj is an obligation only once in life time. Funds intended for performing Haj more than once are better diverted to help the poor and needy.


Through Zakat ( charity ) , one -fortieth of one's net value is to be spent annually to help the needy. 


A wealthy person is only a temporary custodian of funds.He or She has to meet God's expectations for their proper utilisation.The proof of genuine altruism is giving away something that one personally values and cherishes. In addition to material support , one can give ones energy , time , knowledge , skill or moral support.The scriptures warns those who perform religious rites but deny assistance to less privileged fellow thus jeopardising socio-economic balance and integration. 

गुरुवार, 5 नवंबर 2009

PURANAS AND UP-PURANAS


पुराण एवं उप पुराण 


The Puranas are the richest collection of mythology in the world. Most of them attained their final form around 500 A.D. but they were passed on as an oral tradition since the time of Lord Krishna. The aim of Puranas is to impress on the minds of the masses the teachings of the Vedas and to generate in them devotion towards God. The Puranas were meant , not for the scholars , but for the ordinary people who could not understand high philosophy and who could not study the Vedas 


Once, while describing the origin of puranas, Sutji told the sages who had assembled at Naimisharanya- ‘ Lord Shiva had first revealed the contents of Skanda puran to Parvati at Kailash Mountain. Lord Brahma and few other deities were also present there at the time when Shiva was narrating the tale. Subsequently, Parvati narrated this tale to Skanda, Skanda to Nandi and Nandi to sages like Sanak, etc. and finally Sanak narrated it to Vyas. Now I am going to tell you the same tale which Vyas had narrated to me.’
Sutji began by saying-’ During ancient times, Lord Brahma once did a very austere penance resulting into the manifestation of all the four Vedas. Later on, all the eighteen Puranas too appeared from his mouth. These eighteen Puranas were-

  1. Brahmanda Puran
  2. Vishnu Puran
  3. Shiva Puran
  4. Bhagawat Puran
  5. Bhavishya Puran
  6. Narad Puran
  7. Markandeya Puran
  8. Agni Puran
  9. Brahma vaivarta Puran,
  10. Linga Puran,
  11. Padma Puran,
  12. Varah Puran,
  13. Skanda Puran,
  14. Vaman Puran,
  15. Kurma Puran,
  16. Matsya Puran,
  17. Garuda Puran
  18. Vayu Puran.
Apart from these eighteen main Puranas, there are also similar number of secondary Puranas known as Up- Puranas. These Up- Puranas are - Sanat kumar, Narsimha, Skand, Shiva Dharma, Durvasa, Narad, Kapil, Manu, Ushana, Brahmand, Varun, Kalika, Maheshwar, Saamb, Saura, Parashar, Maarich and Bhargava.’
Sutji then went on to describe the other features of each Purana-’ Brahma Puran contains ten thousand shlokas in it whereas Padma Puran contains fifty-five thousand shlokas. Similarly, there are twenty-three thousand shlokas in Vishnu Puran. Vayu Puran contains the tales related with Lord Shiva and it contains twenty-four thousand shlokas in it. Similarly the remaining Puranas like Bhagawat, Narad, Markandeya, Agni, Bhavishya, Brhmavaivarta, Linga, Varah, Skanda, Vaman, Kurma, Matsya, Garuda and Brahmanda Puran contain 18,000, 25,000, 9,000, 16,000, 14,500, 18,000, 11,000, 24,000, 81,100, 10,000, 17,000, 14,000, 18,000 and 12,200 shlokas respectively.’
Sutji told the sages that all the Up-Puranas owe their origin to the main Puranas which are eighteen in number. He also revealed to them that they could be categorized into three main types- Satvik, Rajas and Tamas. Satvik Puranas contain the tales of Lord Vishnu while Rajas Puranas contain the tales of Brahma and Tamas Purans contain the tales of Agni and Rudra. One of the chief characteristics of Puranas is that each of them is divided into five sections- ‘Sarg’ (Description of how creation began), ‘Pratisarga’, ‘Vansh’ (Description of prominent dynasties), ‘Manvantar’ and ‘Vanshanucharit’ (Tales related with the descendants of the famous sages).
Of the 18 major Puranas , the Vishnu Purana is the most complete , in that it conforms more than the others to the definition of a Purana.The Bhagavata Purana is believed to be the most recent and is most popular.




बुधवार, 4 नवंबर 2009

गृहस्थ आश्रम

१. गृहस्थ  आश्रम ही ऐसा आश्रम है जहाँ पूरे परिवार के साथ प्रभु के प्रार्थना की जाती  है |


२. सुशील माता संतान को अच्छे संस्कार देकर भाग्य का स्तम्भ और सुखों का नींव  डालती  हैं |


३. प्रत्येक माँ को घर को मंदिर बना कर घर का काम काज इस प्रकार करना चाहिए की वही प्रभु की  पूजा बन जाये |


४. पत्नी और पति का सच्चा प्यार तभी होता है जब दोनों का प्रेम परमात्मा की  ओर झुकता है |


५. परिवार ऐसा होना चाहिए जहाँ बड़े छोटों की  रक्षा करें ओर छोटे बड़ों की  सेवा एवं आदर करें |                                                                                


६. वह व्यक्ति धन्य है, जो गृहस्थ आश्रम के कार्य को कर के भी ईश्वर की वंदना करता है |  

रविवार, 1 नवंबर 2009

  • सुमंगल विचार



  • तुम अपने जीवन को इतना अच्छा रखो की कोई तुम्हारी  निंदा करे फिर भी दुनिया उस को सच न माने |                               
  •  
  • प्रेम सबसे करो ,विश्वास थोड़ो से करो ,और हानि किसी का भी न करो |
  •  
  • अपने संतान को ठीक रखना चाहते हो इसलिए  अपने को ठीक रखो |
  •  
  • न नर्म बनो की निचोड़े  जाओ ,न इतने सख्त बनो कि तोडे जाओ |
  •  
  • मानव तू सैकडों हाथों से कमा ,और हजारों हाथों से दान दे |
  •  
  •  जीवन चलाने (run) और बर्बाद (ruin ) में  मात्र "I" का अंतर है अतः मैं अर्थात अभिमान को जीवन से हटाओ |
  •  
  • अपना सुधर जीवन की सबसे बड़ी  सेवा है |
  •  
  • संसार को बदलने से अच्छा है की खुद को बदलो |
  •  
  • भोजन के लिए मत जियो बल्कि जीने के लिए भोजन करो |
  •  
  • नीयत तेरी अच्छी है तब किस्मत तेरी दासी है , नज़र तेरी अच्छी है तब घर में मथुरा कशी है |

HANDLING ANGER

Once a sadhu – a wandering mendicant, was passing through a village, when he received a complaint from the villagers about a cobra that was playing havoc with their lives. The sadhu was known to have the power to communicate with animals, so they begged him to convince the cobra to spare the villagers. So the sadhu spoke to the cobra, and the cobra promised not to bite any of the villagers anymore.

A few months later, the sadhu was passing through the same village when he came upon the cobra, badly bruised and almost dead. "What happened to you? Why are you hurt?" Asked the sadhu. The cobra cried, "O sadhu! It is you who made me promise never to bite the villagers! I have kept my promise to this day. But the villagers, who were earlier in fear of me, took my mildness to be my weakness. Seeing that I don't bite, they started torturing me everyday. See what a state I have been reduced to!"

The sadhu replied, "My poor foolish friend! I only asked you not to bite the people. Did I ask you not to hiss at them?"
You need to use anger in the right way in the right quantities. Anger is a tremendous energy if we know how to use it rightly.

Knowledge about anger reduces anger.

Keep anger in your pocket, take it out when necessary, and then put it away , be angry with an incident or situation not with a person. Do not take position against person but take it against the incident or situation.



अपराध  करने वाले से ज्यादा अपराधी , अपराध सहने वाला होता है 

QUALITIES OF A ROLE MODEL

Every person in some way or the other is a Role model – a leader at work for his team members , parents for their children etc.

To be a good role model one should have ability to inspire others to follow their example, willingly and cheerfully. A good role model will both inspire confidence and give a strong example of what we should aim for. The role models should :-

1. Lead by example: Do what you preach or only preach what you follow. 

 मानव  उपदेश  सुनते  हैं  टन  भर  , देते  हैं  मन भर   और  ग्रहण  करते  हैं  कण  भर 
2. Humility:  People will be much more willing to follow a person who embodies humility.
 3. Appreciate Others: If people get appreciation then it will definitely encourage them to continue doing the right thing. At the same time, our appreciation should be sincere and not flattery.
 4. Avoid arguments: If people criticize your approach, often the best thing to do is not get involved in arguments. You can listen to their criticism politely and thank them for their concern, but often the best approach is just to focus on the new approach; look forward and don't feel the need to defend yourself.
 5. Listen to others: If you listen to others, they will definitely appreciate it. Often you may find that your workers have good ideas that you can incorporate.
 6. Admit your mistakes and shortcomings.

 7. Love your team members.