आपन को न सराहिये, पर निंदनीय नहिं कोय।
चढ़ना लम्बा धौहरा, ना जानै क्या होय।
कवी कबीरदास जी कहते हैं कि अपने मूंह से कभी अपनी सराहना मत करो और न ही दूसरे की निंदा न करो । क्योंकि हमारा जीवन लम्बा है उसमे न जाने क्या देखना पड़े |
दोष पराया देखि कर , चले हसत हसत ।
अपन याद न आई , जाकी आदि न अन्त।
कवी कबीरदास जी कहते हैं कि दूसरों के दोष देखकर सभी हंसते हैं पर उनको अपना दोष नहीं दिखाई देता है जिसका कभी अंत ही नहीं है।
अपने मूंह से अपनी बड़ाई करना और दूसरों की निंदा करना मानवीय स्वभाव है। अपने में कोई गुण न हो पर उसे प्रचारित करना और दूसरे के गुण की जगह उसके दुर्गुण की चर्चा करने में सभी को आनंद आता है पर किसी को अपने दोष नहीं दिखते। संत कबीरदास जी कहते हैं कि अपने बारे में अधिक दावे मत करो अगर किसी ने उनका प्रमाण ढूंढना चाहा तो पूरी पोल खुल जायेगी।
उसी तरह दूसरे की निंदा करने की बजाय अपने गुणों की सहायता से भले काम करने का प्रयास करें यही अच्छा रहेगा। आत्मप्रवंचना कभी विकास नहीं करती और परनिंदा कभी पुरस्कार नहीं दिलाती। यह हमेशा याद रखना चाहिये।
शुक्रवार, 13 नवंबर 2009
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