माला फेरत जुग भया , फिरा न मन का फेर |
कर का मन का डार दे , मन का मनका फेर ||
कबीरदासजी कहते है कि माला जपते जपते एक युग बीत गया किन्तु मन का मैल नहीं धुला, अतः सर्वप्रथम दूसरों के प्रति वैर भावना हटा दें, इर्ष्या हटा दें, तब ही शांती प्राप्त होगी. |
शुक्रवार, 13 नवंबर 2009
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