कबीरदस जी के दोहे
धरती फाटे मेघ मिलै, कपड़ा फाटे डौरतन फाटे को औषधि, मन फाटे नहिं ठौर
कबीरदास जी कहते हैं कि जब पानी बरसता है तो फटी हुई धरती आपस में मिल जाती है और फटा हुआ कपडा डोरे से सिल जाता है और बीमार देह को औषधि से स्वस्थ किया जा सकता है पर अगर कही मन फट गया तो उसके लिये कोई उपाय नहीं होता है।
बिना सीस का मिरग है, चहूं दिस चरने जाय
बांधि लाओ गुरुज्ञान सूं, राखे तत्व लगाय
कबीरदास जी कहते हैं कि यह मन तो बिना सिर के मृग की तरह होता है जो चारों तरफ भागता रहता है। इस पर नियंत्रण करने पर ही जीवन का आनंद लिया जा सकता है।
सब भौतिक चीजों पर हम अपना नियंत्रण कर लेते हैं पर मन पर कोई नियंत्रण नहीं कर पाता। वह चारों तरफ आदमी को दौड़ाता है। भक्ति भाव से दूर रहकर हम अपने आपको बहुत तकलीफ देते हैं। कोई भौतिक चीज मिल जाती है तो उसे पाकर पुलकित हो उठते हैं पर जल्द ही उससे ऊब जाते हैं फिर किसी नयी चीज की तलाश में लग जाते हैं।
हम अपने मन के साथ भागते हैं पर अपने अंदर बैठे जीवात्मा को नहीं देखते जो भगवान भक्ति के लिये ताकता रहता है।
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