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शुक्रवार, 14 जनवरी 2011

सही पहचान

मैं अक्सर गौरव जी महाराज का भागवत सुनती हूँ और उनके द्वारा बताये गए प्रसंग को अपनाना चाहती हूँ ऐसा ही एक प्रसंग कल भी मैने  सुना कि मनुष्य के अंदर सब कुछ है आग हवा पानी मिट्टी, यहाँ तक कि इसको बनाने वाला इश्वर भी|किन्तु हमें आयने के सामने हमारा बाहरी  आवरण दिखाई देता है |हम स्वयं को कभी समझ नहीं पाते कि असल में हम क्या हैं ?हमारी खूबी  बाहरी चमक धमक में छुप जाती है,हम दूसरे को देख कर कदम बढ़ाते हैं हम स्वयं को नहीं समझ  पाते|इश्वर तो सब में है किन्तु हम उसका अपमान करते हैं|दूसरे को नीचा दिखाने कि कोशिश करते हैं|
आयना तो ऊपर का ही आवरण दिखाता हे यदि खुद को देखना है तो हमें अंतरात्मा कि आखें खोलनी होगी स्वयं को पहचानना होगा कि मैं कौन हूँ?सब कुछ तो हमारे अंदर है तो फिर क्या तलाश है?तलाश है तो सही संगत  का जिससे हमें सही ज्ञान हो|हमें बाहरी आवरण उतारना होगा तभी सही दिशा मिलेगी|अन्यथा हमें दवा खा कर ही जीवन चलाना होगा|  
  

1 टिप्पणी:

  1. सही कहा आपने , लोहड़ी, मकर संक्रान्ति पर हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई

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