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शुक्रवार, 8 फ़रवरी 2013

कुम्भ मेला और साधु संत

बारह वर्ष पश्चात प्रयाग का कुम्भ मेला एक बार फिर पुरे जोर शोर पर चल रहा है।मुझे तो प्रयाग छोड़े बहुत  दिन हो गया किन्तु आज भी बचपन की यादे बनी है।नित्य टी वी में दिखाया जाता है कुम्भ मेले  के बारे में एवं वहाँ आये साधू संतों के बारे में।
                              
                                     मैं  बचपन से आज तक यही विचार करती रही की ये सब योगी है या फिर भोगी और ढोगी?क्योंकि आप इनका आशियाना तो देखें किस चीज़ की कमी है?लोग कहते है की भारतीय अन्धविश्वासी होते हैं और इन साधुओं के मायाजाल में फंसते है।किन्तु अब आप देखिये इन साधुओं के जमावड़े में कितने विदेशी हैं।क्या ये अन्धविश्वासी नहीं हैं? लोग कहते हैं संतों की अवहेलना हम सब करते हैं किन्तु ये सत्य नहीं है।हम सभी उन संतों का आदर सम्मान आज भी करते  हैं जो धर्म सिखाते हैं।आज भी आस्था है धर्म में भी और शंकराचार्य  संत में भी।
                                 
    किन्तु अफ़सोस केवल ढोंगी साधू के लिए है।जो धूनी रमाये चिलम पीते नजर आते हैं।मेरे विचार से संत वही  हैं जो दुसरे का सोचे न कि अपने सुख सुविधा का,संत वहीँ हैं जो प्रत्येक धर्म को एक समान माने  न कि कोई एक धर्मको,क्योकि ईश्वर तो सर्वव्यापी है।सब धर्म में हैं।मैं  ऐसे ही संत को बार बार नमन करना चाहूंगी जो सत्य प्रिय हो,कटु  वचन न बोले,और मुखमंडल हमेशा कमल की भांति खिला  हो।
                   
                      ख़ैर इसका तो अंत नहीं है आज भी कुम्भ की आस्था है,एक पृथक नगर बन जाता है,कुम्भ मेले का नजारा  तो कभी भी नहीं भूलता।हमें स्वयं जागृत होना है एवम सही और गलत का फैसला स्वयम लेना है।बाकि कुम्भ मेला  में भी आस्था है, धर्म में भी पूर्ण विश्वास है।किन्तु भ्रष्ट साधुओं के लिए कोई  स्थान नहीं हैं। 

मंगलवार, 5 फ़रवरी 2013

भार्तिहारी शतक

                                          नीति शतक

1. बुद्धिमान जन ईर्ष्या से ग्रस्त हैं, अधिकारी जन घमंड में चूर हैं, अन्य लोग अज्ञान से पीड़ित हैं,ऐसी दशा में समझदारी की बातें और ज्ञान सूक्तियाँ किनसे कहें?तभी तो उत्तम विचार  मन में ही गल सड़ जाते हैं।

2. अबोध को आसानी से समझाया जा सकता है,ज्ञानी को इशारा ही काफी है।अंशमात्र ज्ञान से ही जो स्वयम को परम ज्ञानी मान  बैठा है उस मनुष्य  को ब्रह्मा भी संतुष्ट नहीं कर सकता।

3. जब में थोडा समझदार हुआ तो हाथी की तरह घमंड में चूर रहने लगा।तब मेरा मन भ्रम से लिप्त हो गया की में तो सर्वज्ञ हूँ।जब बुद्धिमानों की संगती से थोड़ा -थोड़ा जानने के योग्य हुआ तब समझ आया की में निपट मूर्ख हूँ,और मेरा दर्प ज्वर के समान उतर गया।

4.आग को पानी से रोक जा सकता है,सूर्य की धूप  को छाते से ,मदमस्त हाथी को तीखे अंकुश से, रोग को औषधालय या औषध-संग्रह से और विष को भांति भांति के उपायों से रोका जा सकता है,शास्त्रों में वर्णित सभी रोगों का इलाज है परन्तु मूर्खों की कोई दावा नहीं है।

                             

शुक्रवार, 1 फ़रवरी 2013

माटी की कहानी





एक कुम्हार माटी  से चिलम बनाने जा रहा था। उसने चिलम का आकर  दिया।थोड़ी देर में उसने चिलम को बिगाड़ दिया।माटी  ने पुछा ,अरे कुम्हार तुमने चिलम अच्छी  बनाई फिर बिगाड़ क्यों दिया?कुम्हार ने कहा कि अरे माटी पहले मैं चिलम बनाने की सोच रहा था किन्तु मेरी मति बदली और अब मैं सुराही या फिर घड़ा बनाऊंगा।
                    
                              ये सुनकर माटी बोली,रे कुम्हार तेरी तो मति बदली मेरी तो जिंदगी ही बदल गयी।चिलम बनती तो स्वयं भी जलती और दूसरों को भी जलाती,अब सुराही बनूँगी तो स्वयम भी शीतल रहूँगी और दूसरों को भी शीतल रखूंगी।
                               

                                यदि जीवन में हम सभी सही फैसला लें तो हम स्वयम भी खुश रहेंगे एवं दूसरों को भी खुशियाँ दे सकेंगे।

भगवान बुद्ध के अष्टांगिक मार्ग






1.  सम्यक दृष्टि (अन्धविश्वास एवम  भ्रम  से रहित )

2. सम्यक संकल्प (उच्च तथा बुद्धियुक्त )

3. सम्यक वचन (नम्र, उन्मुक्त, सत्यनिष्ठ )

4. सम्यक कर्मान्त (शांतिपूर्ण ,निष्ठापूर्ण,पवित्र )

5.सम्यक आजीव (किसी भी प्राणी को आघात या हनी न पहुँचाना )

6.सम्यक व्यायाम (आत्म-प्रशिक्षण एवम आत्मनिग्रह हेतु )

7. सम्यक स्मृति (सक्रिय सचेत मन )

8.सम्यक समाधि (जीवन की यथार्थता पर गहन ध्यान )

                       बुद्ध की आज्ञाएँ

1.हत्या न कर

2.चोरी न कर

3.व्यभिचार न कर

4.झूठ मत बोल

5.निंदा न कर

6.कर्कश न बोल

7.व्यर्थ बात मत कर

8.दूसरों की सम्पत्ति का लोभ  न  कर

9.घृणा न दिखा

10.सम्यक  रूप से विचार कर


                                 पुण्य कर्म


1.सत्य पात्र को दान कर

2.नैतिकता के नियमों का पालन करें

3.शुभ विचारों का अभ्यास और विकास करें

4.दूसरों की सेवा और देखभाल करें

5.मत पिता और बड़ों का सम्मान करें और उनकी सेवा करें

6.अपने पुन्य का दूसरों को दें

7.दूसरों के द्वारा दिए गये पुण्य को स्वीकार करें

8.सम्यकता के सिद्धांत का श्रवण करें

9.सम्यकता के सिद्धांत का प्रचार करें

 10.अपनी त्रुटियों का सुधार करें