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रविवार, 31 जनवरी 2010

किशोरावस्था में अनुशासनहीन होते बच्चे ...जिम्मेदार कौन????

आजकल प्रायः सुनाने में आता है कि हमारा बच्चा तो बिलकुल भी मेरा नहीं सुनता|बोर्ड की परीक्षा है किन्तु वो तो अपनी मनमानी करता है|किन्तु ऐसा होने में आखिर दोषी कौन है?

किशोरावस्था  में बच्चे बड़ों की तरह व्यवहार करना शुरू करने लगते है, उन्हें माता पिता की बात,उनकी दखलंदाज़ी अच्छी नहीं लगती|बाहर घूमना, बाहर का खाना,मित्रों के साथ बाहर रहना,स्कूल के बहाने घर से बाहर जाना इत्यादि बातें आम होती जा रहीं हैं|आजकल एक नया तरीका नेट का होगया है, जिसमे बच्चे अपना समय गवाते है|इसके पीछे शायद स्वयं माता पिता ही जिम्मेदार है|सबसे पहले हमें अपने बच्चों को समझना होगा, उनकी आदतें कहाँ से पड़ रही है|साथ ही हमें अपने बच्चों की कमियों को नज़रंदाज़ नहीं करनी चाहिए किन्तु साथ ही ये बात अवश्य ध्यान देनी होगी की हम अपने बच्चों की शिकायत दूसरों  से न करें , दूसरा आदमी आपका अपना नहीं है,वो आपके हटते ही आपका मजाक बनाएगा आपकी कोई मदद नहीं करेगा और दूसरी तरफ आपका बच्चा आपका विश्वास खोता जायेगा| किशोरावस्था के बच्चो का ध्यान बहुत रखना पड़ता है किन्तु उनसे मित्रवत व्यवहार करके|आप स्वयं को उनके स्थान पर रख कर देखो की आपने उस  उम्र में  क्या किया था फिर आप उनसे उम्मीदे लगाये|दूसरे के बच्चों की खूबियाँ अपने बच्चे में न ढूंढे अपने बच्चे की खूबियों को निखार कर लाये|

बच्चे वो फूल होते है जो की जीवन के बगीचे  में सवरतें हैं|फिर वो फूल गुलाब का हो या फिर सूरजमुखी सुंदर तो दोनों दिखते है तो फिर हम अपने बच्चे की तुलना दूसरे बच्चो से क्यों करे? 
 किशोरावस्था एकऐसी अवस्था होती है जहाँ बच्चे न तो छोटे में गिने जाते हैं और न ही बड़े  में|हमें सबसे पहले शुरू से अर्थात बचपन से जब बच्चा घुटनों पर चलना सीखता है तब से ही उसकी छोटी छोटी बातों पर ध्यान रखना चाहिए, बच्चा है तो जिद्द करेगा ही किन्तु हमें सयंम से ध्यान रखकर ही उसकी जिद्द को पूरी करनी चाहिए|

क्योकि आदत कि शुरुआत वहीँ से होती है|फिर बच्चे  के बड़े होने के साथ उन्हें जीवन के हर सही गलत की पहचान करवानी चाहिए| उन्हें जैसे वो बड़े हों तभी उन्हें अनुशासित जीवन का तरीका बताएं, साथ ही स्वयं भी अनुशासन में रहें|यदि हम स्वयं अपने से बड़ों को जवाब देगे तो बच्चा वही सीखेगा एवम बाद में पलट कर  जवाब देगा जो कि हमें अच्छा नहीं लगता और हम शुरू हो जाते है कि बच्चे तो हमारा सुनते ही नहीं|

किशोरावस्था में प्रवेश के पहले ही हमें बच्चों दुनियादारी के बारे में धीरे धीरे बताना चाहिए कि   जीवन में क्या गलत होता है|उनका मस्तिष्क विकार होने से पूर्व  ही हमें उनके मस्तिष्क का विकास करना चाहिए|यदि उनके मस्तिष्क में सकारात्मक सोच शुरू से बैठ गयी तो उनका जीवन दूसरों को भी रौशनी देगा|हमें उनकी भावनाओं को समझना चाहिए|किसी भी चीज़ का निवारण दंड नहीं होता इसे हमेशा ध्यान रखना चहिये|ये किशोरावस्था नदी की तेज़ वेग की लहर के समान होती है जिसमें  बहुत सयंम के साथ तैरना पड़ता है|
अंतमें मैं यही कहूँगी की बढ़ते बच्चों की जिम्मेदारी हम सभी की है जिसमें परिवार,विद्यालय,समाज,सभी जम्मेदारी ले तो बच्चे कभी भी अनुशासनहीन  नहीं बन सकते|

शनिवार, 30 जनवरी 2010

बच्चों कि जानलेवा नादानी,माता पिता कि बढती परेशानी

 आजकल समाचारों में सबसे ज्यादा खबर कम उम्र के बच्चों द्वारा आत्महत्या की   होता है,दिल दहल जाता है ऐसा क्या हो गया है कि बच्चों को ऐसा कदम उठाना पड़ रहा है?उनके माता पिता के लिए सोच कर लगता है कि उन पर क्या गुज़र रही होगी ? वो बच्चे के साथ ही ढेरों कल्पनाएँ कर लेते हैं कि मेरा बच्चा उचाईयों पर जायेगा,वो भी नाम कमाएगा ,इत्यादि | किन्तु ऐसे में जब असमय ख़ुदकुशी की खबर  तो  उनकी दुनिया सूनी  कर देती है|
लेकिन  प्रश्न  ये उठता है कि ये आखिर क्यों हो रहा है ?ये आत्मविश्वास कि कमी क्यों हो रही  है ? इसके पीछे किसे दोष दें ? ये हालात ऐसा क्या कर देता है कि इतने कम उम्र या यूँ  कहें कि कच्ची उम्र के ये बच्चे अपना जीवन समाप्त करने का कदम उठा लेते है?
इसका कारण शायद आत्मविश्वास,आत्मनिर्भरता, एवम आत्मसंयमता की कमी है | हमें अपने बच्चों को सीखाना होगा कि बुजदिल बन कर नहीं जीना है|  इसके लिए स्कूल कॉलेज भी जिम्मेदार है क्योकि आज जैसे रैगिंग पूर्णतः बंद हो चुकी है तब कॉलेज में रैगिंग कैसे संभव है | रैगिग चलने का मतलब स्कूल कॉलेज के प्रशासन की बहुत बड़ी लापरवाही है| अब रैगिंग के कारण यदि आत्महत्या जैसे शर्मनाक घटनाएँ होती है तो ऐसे में कॉलेज की तरफ से कड़ा कदम उठाना चाहिए | जिससे दुबारा ऐसी हरकत न हो | ख़ुदकुशी का दूसरा कारण अंक का कम आना है, इसके लिए घर परिवार स्कूल सभी जिम्मेदार हैं|बच्चों के ऊपर इतना दबाव मत दो की वो अपनी जिंदगी को ही अंक बना ले |
बच्चों को शुरू से ऐसी शिक्षा देनी चाहिए की ये जिंदगी इश्वर  की दी हुयी अनमोल चीज़ है | इसे सवांर कर रखना चाहिए| मुसीबत से लड़ना सीखो उससे मुंह मत मोड़ो| जिंदगी खोने के लिए नहीं बनी  है| प्रत्येक परेशानी एक सीख होता है ,एक पाठ होता है, सोना जब आग में तपता है तभी खरा होता है ठीक इसी प्रकार जिंदगी होती है जब परेशानियों को झेल कर आगे निकलती है तो एक चमकता हुआ सितारे  की तरह आती है|
अतः मुझे विश्वास है की लोग इस चीज़ को समझेगे ,परेशानी को दुसरो को बता कर हंस कर झेलेगे कभी भी गलती से भी कमज़ोर नहीं पड़ेंगे |

शुक्रवार, 29 जनवरी 2010

सगाई टूटी सानिया की,पेट दर्द से बुरा हाल मिडिया का.....


कल का सारा दिन मिडिया का बहुत व्यस्त था सानिया मिर्ज़ा की सगाई टूटने के मामले में|बिचारे सारी रात फोन लगाते रहे,किसी ने फोन नहीं उठाया देर रात या फिर बहुत सुबह किसी ने एस.ऍम.एस के जरिये YES लिख  दिया  तो तसल्ली मिली कि चलो आज की ब्रेकिंग न्यूज़  का चटपटा मसला मिला|

जीहाँ ये है हमारी मिडिया, जिसे दूसरों की निजी जिंदगी में ताक झांक करके मिर्चमसाला लगाकर खबर लाने की एक आदत सी हो गयी है|चलो यहाँ तक समझ में आता है की विश्व प्रसिद्ध हस्ती है आपने बता दिया कि आज सगाई है या फिर टूट गयी किन्तु उनके घर में क्या बन रहा है या फिर सेलिब्रेटी के घर कौन आया,वैगरह वैगरह |ठीक इसी प्रकार सगाई टूट जाने पर,अटकलें बताया जाना, यदि परिवार ने स्पष्ट रूप से आकर मिडिया को बुलाकर बताये तो बात समझ में आती है किन्तु अपने मनगढ़ंत तरीके अटकलें निकालकर बताना ये कहाँ तक उचित है?सानिया मिर्ज़ा अपने क्रीडा क्षेत्र में बहुत सफल खिलाडी है,उनका कैरियर है|उनकी अपनी निजी जिंदगी है,उनका अपना फैसला है जिसमे उनके घर वालों कि रजामंदी है तो फिर तीसरे को क्या परेशानी?

आज हम इसलिए ही पिछड़े हुए है क्योकि हम केवल दूसरों  के घर झांकना चाहते हैं और फिर भी संतुष्ट नहीं होते और उसमे से मसाला  ढूंढते है|यदि सही मायनों में हमें देश कि फ़िक्र हो तो एक नजर वृन्दावन  एवम मथुरा कि उन गलियों में भी डाल लो जहाँ बंगाल कि तरफ से आई हुयी कितनी बंगाली विधवा स्त्रियाँ रहती है उनको देखते ही आत्मा त्राहि त्राहि कर उठती है ..दिल रोता है कि नारी की ये दुर्दशा, केवल कुछ महिलाओं के बाहर आने से ,समाज पूरी तरह से बदल तो नहीं गया?लगता है इनकी कब और कौन सुधि लेगा?
मेरे ख्याल से मिडिया को किसी के निजी जिंदगी में इतनी दखलंदाज़ी नहीं करनी चाहिए क्योकि इसमें कभी कभी वो भी हंसी के पात्र बनते है जैसे सहवाग की शादी में कोई न मिलने पर घोड़ी के पास का कैमरा कभी भी नहीं भूलता लगता था की काश ये घोड़ी बोलती होती तो शायद इसके भी दिन फिर जाते और आज ये भी साक्षात्कार कर रही होती| ये तो मात्र एक उदाहरन था ऐसा आये दिन रोज़ होता कभी नाट्य रूपान्तर करके तो कभी किसी दूसरे रूप में| ख़ैर...... ये तो अपना अपना चॅनल चलाना है|किन्तु थोडा निजी जिंदगी को निजी जिंदगी ही रहने दिया जाये वहाँ वक्त न गवां कर अच्छे कार्य की शुरुआत की जाये तो ज्यादा पहचान मिलेगी|


मंगलवार, 26 जनवरी 2010

एक अच्छी शुरुआत IBN7 कि तरफ से

आज IBN7 पर एक आइडियल पुरस्कार दिखाया जा रहा था जिसमे विकलांगो, मानसिक विकार,मूक बधिर जैसे क्षेत्र में जिन्होंने कार्य करके एक मुकाम तक पहुंचाया  उन्हें ये पुरस्कार प्रदान किया गया| आज ये देख कर इतना अच्छा लगा की अभी भी हमारे यहाँ कुछ लोग ऐसे है जो इतना सोचते है|कुछ तो इसी से पीड़ित है इसमें एक सज्जन ने कहा जो की पोलियो के  शिकार हो गए थे की "जाके पाय न फटी बेवाई,वो क्या जाने पीर परायी" सही बात है इन्हें समझ पाना बहुत मुश्किल होता है|
इनका हौसला बढ़ाना ही सबका कर्तव्य है किन्तु इतना सोचने का वक्त मिलता कहाँ है लोगों को| किन्तु आज इन्हें जब पुरस्कार से नवाज़ा गया तो नयन से अश्रु न चाहते हुए भी निकल पड़े की चलो कभी किसी ने तो इनकी सुध ली|यदि इसी प्रकार पुरस्कार का सिलसिला चले तो और लोग भी आगे आयेगे, एवम समाज का कल्याण होगा|ख़ैर....आज का ये सम्मान दिल में इस प्रकार बैठा कि लगता है दुनिया में कितना गम है मेरा गम तो कितना कम है.....हम तो जबरदस्ती के टेंशन पालते है जबकि इस दुनिया में कितने लोग है जिन्हें ईश्वर के तरफ से ही कष्ट मिला है किन्तु वो इसे हंस कर झेल रहे है| हाँ कष्ट तब वाकई ज्यादा होता है जब सरकार की नाइंसाफ़ी होती है एवम समाज में भी दर्ज़ा नहीं मिलता|
किन्तु अंत में एक बार मैं  IBN7 कि इस कोशिश को सलाम करती हूँ और दिल से यही इक्षा रखती हूँ कि इसमें जितने ज्यादा लोग शामिल हो उतना ही अच्छा होगा इस समाज के लिए भी एवम इससे पीड़ित लोग भी आगे आ पायेगें|वो अपनी एक पहचान बना पायेगे|

कोचिंग पुराण


आज का युग प्रतिस्पर्धा का युग है|प्रत्येक ओर होड़ मची है, लोग लम्बे रेस के घोड़े की तरह दौड़ रहे है|इसके लिए तकरीबन नब्बे प्रतिशत बच्चे कोचिंग की तरफ भाग रहें है|अध्यापक भी कोचिंग में ज्यादा रूचि दिखाते है, क्योकि मोटी कमाई वहीँ होती है| आज प्रत्येक जगह पर एक कोचिंग का बोर्ड मिल जायेगा|
अब ये सवाल उठता है कोचिंग किस क्लास के लिए है?तो भाई अब आप लिस्ट देखिये|शुरुआत होती है नर्सरी क्लास से...यहाँ अच्छे विद्यालय में प्रवेश पाने के लिए कोचिंग शुरू हो जाती है| बच्चे को ढाई से तीन वर्ष  की उम्र में कोचिंग क्लास में डाल दिया| ताकि उसे प्रवेश मिल जाये| चलो येन  तेन  किसी प्रकार से एडमिशन मिल गया तो अब बारी आई पढाई की| अब माताएं स्वयं तो पढ़ी लिखी है किन्तु बच्चों को भेज दिया ट्यूशन में, अब समझ में ये नहीं आता की कक्षा नर्सरी से कक्षा पांच तक क्या घर में नहीं पढ़ाया जा सकता|फिर दूसरा प्रश्न यह उठता है की हम ये आदत क्यों नहीं डालते की यदि तुम्हें कोई चीज़ नहीं समझ आती तो आप विद्यालय के अध्यापक से समझो और पहले स्वयं समझने की कोशिश करो साथ ही माता पिता का ये कर्त्तव्य  है कि वो उनको समझाए वक्त दें |अपनी शिक्षा का प्रयोग करे स्वयं शिक्षित है इसका अहसास रखें|यदि घर में लोग अशिक्षित है तो बाहर से सहारा लेना  समझ में आता है किन्तु  स्वयं शिक्षित हो होकर बाहर ट्यूशन भेजना थोडा गले के नीचे बात नहीं उतरती|

अभी ये पुराण यहीं नहीं समाप्त होता, बच्चे दसवीं के लिए जी तोड़ मेहनत करते है वो भी प्रत्येक विषय के लिए कोचिंग जा कर रट रटा कर ज्ञान चाहे विषय का रत्ती भर भी न हो किन्तु नब्बे प्रतिशत कि होड़ में बच्चा खड़ा हो जाता है| दसवीं पास करते ही कैरियर का बोझ उस पर आजाता है| आज कि जानता भागती है आई आई टी की ओर इसके लिए एक और कोचिंग...इसके लिए आजकल लोग बंसल कोटा बच्चों को भेजना चाहते है| अब बंसल कोटा कोचिंग संसथान में एडमिशन हो इसके लिए वहाँ एक और कोचिंग है जो आपको बंसल में एडमिशन का दावा रखती है|अब बंसल कोटा ने अपने ब्रांच खोल दिए है उसमें भी मारामारी |अब प्रश्न ये उठता है की जितने भी ये कोचिंग संस्था ऊँची उठी  है वो क्या बिल्डिंग से ऊँची उठी है या फिर विद्यार्थियों से?


जी हाँ , विद्यार्थियों से ही विद्यालय, कोचिंग सभी की शोभा बढती है|ये विद्यार्थी परिश्रम करते है तभी आगे बढ़ते है| अतः ये हमें सोचने को मजबूर करता है कि हम जीवन में कब तक इन कोचिंग पर आश्रित रहेगे ?हम बच्चों को उनके पैर पर खड़ा होना क्यों नहीं सिखाते |आज अंक कि इतनी मारामारी क्यों है? क्योकि हमें संतोष नहीं है| यदि बच्चा स्वयं आगे बढ़े तो उसका विकास ज्यादा होगा नहीं तो कोचिंग का रटा रटाया ही उसे ज्ञान प्राप्त होगा |किन्तु एक बार फिर वही मुद्दा मै दोहराना चाहुगी कि ये कोचिंग कभी कम होगी कि नहीं क्योकि बच्चों का शारीरिक विकास इससे प्रभावित होता जा रहा है|

अंग्रेज़ चले गए लेकिन अंग्रेजी विरासत में छोड़ गए



आज गणतंत्र दिवस के शुभ अवसर पर भी मस्तिष्क में न जाने क्यूँ एक उलझन है कि आखिर हम अंग्रेजी भाषा के दीवाने क्यों है?मैने बहुत से पुरुषों एवम खासतौर पर महिलाओं को देखा  है कि यदि अंग्रेजी में उनकी फीस माफ़ है तो वो ज़रूरत से ज्यादा कोशिश करेगीं इसमें सबसे बड़ा उदहारण  ड्रामा कि सरताज राखी सावंत है|ऐसी न जाने कितनी महिलाये है जो कि अंग्रेजी कि दीवानी है| भाषा सीखना अच्छा है किन्तु उसे बनावटीपन से दिखावा करना गलत है| कुछ लोगों को मैने देखा है कि सिर्फ ये दिखाने के लिए अंग्रेजी बोलते है कि कहीं उन्हें कोई  हिंदी माध्यम से या फिर स्टेट की भाषा के माध्यम से पढ़ा हुआ न समझ ले|
यहाँ तक कि आज के बच्चे भी स्टेटस का दिखावा करने में पीछे नहीं हटते|ऐसा क्यों  हो  रहा है? हमें दिखावे कि ज़िन्दगी ही क्यों पसंद आती है|हम आज गणतंत्र दिवस मना रहे है,किन्तु सही मायनो में हम अभी भी अंग्रेजी के ही गुलाम है|आज यदि बच्चों को रामचरित मानस पढने को दे दी जाये तो एक चौपाई पढने में पांच मिनट से ज्यादा लगा देगे फिर भी उसका अर्थ न बता  पायेगे|आज कि स्थिति ये हो गयी है कि अंग्रेजी माध्यम से पढने  वाले बच्चों से यदि आप पूछें कि आपको कौन सा विषय अच्छा नहीं  लगता? अधिकांश बच्चे जवाब देगे कि हिंदी|जब हम हिंदी बोलते है,वो हमारी राष्ट्र भाषा है तो पढ़ते समय उसमें अनिक्षा क्यूँ|इसका कारण हम स्वयं है जब बच्चा छोटा होता है छोटी कक्षा में होता है ,तो हम आने वालों को बखान कर के बताते हैं कि देखो हमारा बच्चा अंग्रेजी के सब अक्षर जानता है थोड़ी  हिंदी में मात्रा गलत करता है लेकिन अंग्रेजी में कोई गलती नहीं होती उसकी अंग्रेजी कि लिखावट भी बहुत सुंदर है..वैगरह  वैगरह....इसका कारण सिर्फ एक है कि हम ये दिखावा करते है कि जो हमने नहीं किया वो हमारा बच्चा बचपन से कर रहा है|यही बच्चा बड़ा होता है तो बचपन कि बात को तकिया कलाम बना लेता है कि हिंदी तो हमसे झेली नहीं जाती|
जबकि भाषा पर एक समान अधिकार होना चाहिए|इस पर एक कहानी याद अति है कि एक बार अकबर के दरबार में एक सज्जन पुरुष ने आकर दावा किया कि कोई मेरी  मातृभाषा बता दे तो मै समझूँ कि वो बहुत बुद्धिमान है|जैसा सभी जानते थे किबीरबल इसका जवाब दे सकते है इसलिए  बीरबल को बुलाया गया| अब बीरबल ने बहुत कोशिश किया जानने का किन्तु उसको सारी भाषा का इतना ज्ञान था कि वो सारी भाषाए  धाराप्रवाह बोलता एवम लिखता था, बीरबल असमंजस में थे कि क्या करूँ उन्होंने कहा कि ठीक है भैया आप जीते मै हारा| वो बंदा बहुत खुश हो गया भोजन  करके रात्री विश्राम करने गया |आधी रात के बाद बीरबल कुछ लोगों को लेकर वहाँ पहुंचे एवम उस पर पानी  फेंका, वो घबडा कर अपनी मात्री भाषा बंगाली में बोल उठा 'अरे बाबा के आछे' बीरबल तुरंत बोल पड़े तुम बंगाली हो|वो बीरबल का पांव पकड़ लिया बोला आपने सही पहचना किन्तु ये महान कार्य केवल आप ही कर पाए|बीरबल हंसने लगे और बोले कि अचानक नीद से जागने पर अपनी ही भाषा सबसे पहले आती है इसलिए ही मै रात्रि का इंतजार कर रहा था|


कहने का तात्पर्य बस इतना है  कि भाषा सीखना अच्छी बात है किन्तु केवल अंग्रेजी को ही क्यों तुल दें|अंग्रेजी सीखो लेकिन समाज में दिखाने या फिर यूँ कहें कि मॉडर्न बनने के लिए नहीं|भाषा ज्ञान बढ़ाने के लिए होती है न कि नुमाइश करने कि कोई वस्तु होती है|  अन्यथा दिल यही कहता है कि अंग्रेज़ तो चले गये किन्तु अंग्रेजी विरासत में छोड़ गए.......भाषाएँ सब सीखो इतनी धाराप्रवाह  बोलो की कोई आपको पहचान न पाए क्योकि ज्ञान अनंत है

सोमवार, 25 जनवरी 2010

गणतंत्र दिवस 26 जनवरी

  
कल 26 जनवरी को हम 60 वाँ गणतंत्र दिवस हर्षोल्लास के साथ मनायेगे|कार्यालय,विद्यालयों,सरकारी विभागों में झंडे फहराए जायेगे प्रत्येक वर्ष की भांति कार्यक्रम दोहराए जायेगे|किन्तु क्या सही मायनो में हम गणतंत्र दिवस मना रहे है?हम रटी रटाई चीजों को सिर्फ दोहरा रहे है|हमने एक प्रथा बना ली है कि हमें स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस मनाना है|यदि आज के युग के छोटे बच्चों से पूछो कि 26 जनवरी हम क्यों मनातेहै?तो जवाब आएगा कि 26 जनवरी को स्वतंत्रता दिवस....अरे sorry नहीं गणतंत्र दिवस मनाते है...आगे की कहानी उनको मालूम नहीं क्योकि उन्हें अपने कार्यक्रम देने है बाद में एक मिठाई खानी है|

६0 वर्षों में बहुत बदलाव आया ,कुछ बहुत अच्छे थे ,जैसे राकेश शर्मा प्रथम  भारतीय थे जो की चाँद पर गए, फिर कितने भारतियों ने एवरेस्ट पर तिरंगा  फहराया, इत्यादि | 60 वर्ष  पूर्व  लिखे गए सविधान से सबको बहुत सुख सुविधा मिली डा. आंबेडकर की परिश्रम सफल हुयी थी| किन्तु धीरे धीरे ऐसा लगता है की हम रस्सा कसी में  फंस रहे है|इतनी घटनाये घट रही है की लगता है  सविधान एवम कानून एक तरफ हो गया है एवम ज़ुल्म का बोलबाला होता जा रहा है|रक्षक ही भक्षक बनते जा रहे है|
हमारे नेता जिन पर सविधान की रक्षा की जिम्मेदारी है वो स्वयं में ही व्यस्त है|आये दिन कोई न कोई चटपटी खबर नेताओं को लेकर मिडिया में तो आती रहती है| ख़ैर......ये तो समाज की बात है|अब कभी कभी  लगता है कि ये इतिहास क्या है?आज का सत्य कल का इतिहास बनता है|आज से ६0 वर्ष पूर्व आज के दिन बाबा साहेब कितने प्रसन्न रहे होगे की उन्होंने कितने अच्छे तरीके से सविधान बनाया है उनका सपना सत्य हो रहा था जो उन्होंने कष्ट सह कर देखा था| हम लोगो ने भी इतिहास में यही पढ़ा था कि हम स्वतंत्र कैसे हुए,बाबा साहेब कि शिक्षा कैसे हुयी, मुग़ल काल क्या था? "मॉडर्न हिस्ट्री" में हम अंग्रेजो के बारे में पढ़ा.....साथ ही थोडा और आगे| किन्तु आज के युग में हो रहे ज़ुल्म ही कल का इतिहास है|क्या  हमारे बच्चे या फिर उनके बच्चे इतिहास में ये ज़ुल्म पढ़ेगें? या फिर राज्यों कि बंदर बाँट के बारे में?कि भारत में इतने राज्य है और उनकी राजधानी ये है |अगर राजधानी गलत हो गयी तो अंक कट जायेगे|और सबसे बड़ा इतिहास जो बनेगा वो है आपस कि तू तू  मै मै.....
सविधान जितने प्यार से लिखा गया है उतने ही प्यार से हमें इसकी रक्षा करनी चाहिए|ये प्रत्येक भारतवासी का कर्तव्य है कि अपराध न तो करे न ही सहे, कानून कि रक्षा करे. सविधान को सम्मान दे|उन भारत के नगीनों को सम्मान दे, जिन्होंने आज़ादी के लिए प्राणों को न्योछावर कर दिया| आपस में ही हम क्यों लड़े राज्य अलग है किन्तु हम है तो भारतवासी| हम सभी लहराते है वही तिरंगा प्यारा| हम सब एक है|
तो आईये गणतंत्र दिवस कि पूर्व संध्या पर यहीसंकल्प ले कि हम सभी सविधान कि रक्षा करेगे, न तो कानून तोड़ेगें न ही कानून तोड़ने वालो को बक्शेगे|

 आप सभी को गणतंत्र दिवस की शुभकामनाये|जय हिंद !!!

शनिवार, 23 जनवरी 2010

हमारी सरकार


आज 23 जनवरी है नेता जी सुभाष चन्द्र बोस का जन्मदिवस| बहुत उम्मीदों के साथ भारत को आज़ाद करवाने में योगदान दिया था| शायद उन्होंने कभी भी ये नहीं सोचा होगा कि आज़ादी के साठ वर्ष के पश्चात भारत में सरकार कि क्या हाल होगी और नेताओं के बीच आपसी तालमेल कैसा होगा?आज मै सोच रही थी कि आज कि सरकार क्या है तो मेरे शब्द कविता के रूप में आगये|जो कुछ इस प्रकार बने.....
आज कि सरकार,देती है सबको कार,
किन्तु स्वयं है बेकार,
सब है राजनेताओं से परेशान
फिर भी नहीं खड़े होते इनके कान,
जब जब महंगाई बढती है हम जैसी जनता पर तलवार लटकती है
चुनाव के मौसम आते ही मच्छर मक्खी  की तरह नेता भिभिनाने लगते है,
चुनाव निकाल जाने पर वादा कभी नहीं निभाते है|
नेताओं की  इनकम दिन पर दिन बढती जाती है,
जनता की जेब खली होती जाती है,
राजनेता हो या अभिनेता,सबके पास है धन की भरमार,
केवल फंसती है देने में इनकम टैक्स भोली भली बेचारी जनता बारम्बार,
ये तो  दुहाई देती है आज की सरकार
अपनी मनमानी करती है बार बार,

यही तो है हमारी सरकार......

शुक्रवार, 22 जनवरी 2010

आज की मिडिया, ज्योतिष, एवम तर्कशास्त्री

आज की मिडिया ऐसी हो गयी है कि यदि कभी वक्त न कट रहा हो तो किसी भी NEWS CHANNEL के सामने बैठ जाओ कुछ न कुछ चटपटी खबर मिल ही जाएगी बशर्ते देश में कोई हलचल न हो|आजकल ज्योतिष एवम तर्कशास्त्रियों के बीच मिडिया का एक अहं भूमिका हो गयी है आपस में हलचल  करवाने का|जबकि हकीकत यह है कि विज्ञान भी सच है,एवम ज्योतिष भी|रही बात सड़क छाप ज्योतिष कि तो झोला छाप डाक्टर , सडक छाप ज्योतिष दोनों पर विश्वास नहीं किया जा सकता|नीम हकीम खतरे जान....|लेकिन जब ज्योतिष के बारे में कोई गलत तरीके से बोलता  है तो आत्मा  रोती है कि आज हम अपने ज्योतिषाचार्यों का शायद अपमान कर रहे है|
किन्तु प्रोफेसर यशपाल जी जैसे विद्वान का तर्क जब हम सुनते है तो ये लगता है कि तर्क हो तो ऐसे ही विद्वान के साथ हो जो सम्मान देते है प्रत्येक विषय को |वो अपनी बात को ऊपर करते है किन्तु  ज्योतिष ज्ञान को भी सम्मान देते है|वो इन्सान और ज्ञान को ठेस नहीं पहुचने देते |इसी प्रकार ज्योतिष का ज्ञान जानने के लिए पुराने इसी विद्या में मंजे  हुए ज्योतिष कि तलाश करनी चाहिए|क्योकि किसी भी प्रकार का ज्ञान कभी भी 100% नहीं होता क्योकि प्रत्येक विषय का शोध लगातार होता रहता है|
कहने का तात्पर्य यह है कि शब्दों का खेल है हम यदि मीठा बोलेँ तो बुरी बात भी शायद आत्मा को ठेस नहीं पहुचायेगी|

आखिर हम दूसरों पर आश्रित क्यों है???



मानव जीवन ईश्वर  का दिया एक अनमोल उपहार है,जिसमें मनुष्य को जो सबसे कीमती वस्तु प्राप्त होती है वो है मस्तिष्क जिससे हम विचार कर सकते हैं अच्छा,भला  बुरा अपने जीवन को सँवारने का तरीका सोच सकते है, किन्तु फिर भी हम दूसरों पर ही आश्रित होते है|क्योकि हमें स्वयं से ज्यादा दूसरों पर भरोसा होता है |हमें अपने माता पिता सगे सबंधियों से ज्यादा तीसरे आदमी पर भरोसा होता है,जिसे हम ठीक तरीके से जानते भी नहीं|
हमें कैसे  जीवन व्यापन करना चाहिए  ये सभी जानते है किन्तु अपनाने के लिए हमें 'ART OF LIVING' में जाना होता है||जब  घर  में  माँ सुबह सो कर उठने को कहती है तो खराब लगता है किन्तु संस्था में जाकर हम नियम का पालन करते है और दूसरों को भी बताते हैं|
इसी प्रकार हम प्रवचन सुनने जाते है जहाँ यह बताया जाता है की हमें लोभ से दूर रहना चाहिए मायाजाल में नहीं फसना चाहिए इत्यादि नाना प्रकार के तरीके बताया जाता है किन्तु आप जरा ये सोचिये की जो प्रवचन दे रहा है वो कितना बड़ा ढोगी है जो स्वयं मायाजाल में फंसा है , बड़ी गाड़ी, महंगा फोन साथ में सेवा करने वाले इतने सहयोगी,वाह भाई वाह खुद को मायाजाल में फंसे हो तो दुसरो को भी  ऐश करने दो ,ये तो हम स्वयं सोच सकते है कि हमें जीवन में किस प्रकार रहना चाहिए इसके लिए प्रवचन कि क्या आवश्यकता?
पहले हम अपने खाने पीने के तरीकों को ठीक से नहीं रखते कोई व्यायाम नहीं करते, उम्र के बढने के साथ मोटापा बढ़ता है तो हमें VLCC जाना पड़ता है जिसमें आधा वजन उनके व्यायाम एवम प्रतिबंधित आहार से आधा वजन उनके दिए हुए बिल से कम हो जाता है|यदि हम शुरू से ही जुबान से ज्यादा स्वास्थ्य को ध्यान में रख कर भोजन करे एवम नित्य व्यायाम करे तो आखिरी में बाबा रामदेव कि याद नहीं आएगी|

आज का युग प्रतियोगिता  का  युग  है , प्रतिस्पर्धा  का  युग  है|प्रत्येक बच्चा एवम उसके माता पिता इसी होड़ में लगे है कि उनका बच्चा इंजिनियर बन जाये, इसके लिए वो अंधे दौड़ में भाग रहें हैं|इसके लिए बच्चो को कोचिंग पर कोचिंग करा रहे है यदि उन्हें सही तरीके से परख ले तो शायद कोचिंग पर आश्रित नहीं होना पड़ेगा और बच्चे को सही दिश भी मिलेगीकहने का तात्पर्य यही है कि ईश्वर ने जब हमें बुद्धि  दी है तो केवल दूसरों पर ही मत आश्रित हो थोडा स्वयं भी सोचो किसी बड़े कार्य के लिए दूसरों का सहारा लो किन्तु क्या पग पग पर दुसरो पर आश्रित होना उचित है??? ये जीवन के कुछ अहम पहलु थे जिसमे हम दूसरों का सहारा लेते है ऐसे ही और भी बहुत से पहलु है जिसे हम दूसरों के सहारे  पर जीना चाहते है|

गुरुवार, 21 जनवरी 2010

कर्मफल


पाप और पाराकोई नहीं पचा सकता

यदि कोई छिपाकर पारा कहा ले, तो किसी न किसी दिन वह शरीर से फूट कर निकलेगा|
पाप करने से उसका फल एक न एक दिन निश्चय ही भोगना पड़ेगा|
रेशम के कीड़े जैसे अपनी लार से अपना घर बनाकर आप ही उसमें फंसता है, वैसे ही संसार के जीव भी अपने कर्मपार्ष में आप ही फंसते है|
जब वे रेशम के कीड़े तितली बन जाते है, तब घर को काटकर निकाल आते हैं; इसी प्रकार विवेक और वैराग्य के उदय होने पर बढ़ जीव भी मुक्त हो जाते हैं|
इसी प्रकार एक बार एक महात्मा को लगा कि लोग कहते हैं गंगा स्नान से सारे पाप धुल जाते हैं यदि ऐसा होता है तो पाप कैसे रुकेगा, ये सोच कर वो महात्मा गंगाजी के पास ये प्रश्न ले कर गए
उन्होंने गंगा जी से ये प्रश्न पूछा कि लोग कहते हैं कि आप का स्नान करने के पश्चात सारे पाप धुल जाते है तो क्या आप सारे पाप को रखती हैं|
गंगाजी ने हंस कर उत्तर दिया कि नहीं मैं तो जा कर समुद्र में मिलती हूँ इस प्रश्न का जवाब तो समुद्रदेव ही दे सकते है|
महात्माजी समुद्र देव के पास गये एवम ये प्रश्न दोहराया तो समुद्रदेव ने गंभीरता से जवाब दिया जिस प्रकार गंगाजी मुझमें मिलती है और सारा पाप यहाँ आता है उसी प्रकार मुझसे ही बादल बनता है तो सारा पाप उधर जाता है, आप बादल से पूछ लो
महात्माजी कि उत्सुकता और तीव्र हुयी और उन्होंने बादल से पूछा कि क्या आप के पास सारे पाप आते हैं|
तब बादल ने जवाब दिया कि नहीं जैसे सबके पास से पाप हमारे पास आता हैं वैसे ही मैं फिर से उनके घर आंगन में बरसा देता हूँ|
अतः जिसका पाप है दंड उसी को भोगना है प्रयाश्चित भी उसे ही करना है|

कहने का तात्पर्य ये है कि हम जैसा करते है हमें फल वैसा ही प्राप्त होता है|
गंगा स्नान या फिर पूजा पाठ से पाप धुलता या काम नहीं होता किसी न किसी रूप में हमें दंड मिलता ही है|










बुधवार, 20 जनवरी 2010

बहुमूल्य होते हैं माता पिता

जीवन में रिश्तों की बहुत अहमियत होती है| कुछ रिश्ते जन्म से जुड़े होते है जिसमे सबसे पहले माँ का नाम आता है क्योकि बच्चे की हर साँस माँ पहचानती है माँ से हर साँस से बच्चे का रिश्ता जुड़ता है तो पिता से रक्त का सम्बन्ध होता है|माता पिता ऐसे बहुमूल्य रत्न है जिनके न रहने पर कीमत पता चलती है|किसी भी सुख दुःख के मौके पर अंतरात्मा  से यही आवाज़ निकलती है कि काश!!! आप होते ??
ऐसा ही कुछ मेरे साथ हुआ जब मेरे बड़ी बहन कि पच्चीसवीं शादी की सालगिरह थी और मै कुछ उसे उपहार देना चाहती थी कि उसे वो संजो कर रखे| खरीदे हुए उपहार तो सभी देते है, इसलिए मैने अपनी आत्मा कि आवाज़ को कोरे पन्ने पर लेखनी से उतर दिया |जो इस प्रकार थी....


वो थी मेरे विवाह कि रात, थी सब कुछ नये अंदाज़ कि बात ,
रिश्तेदारों का जमावड़ा था,एक से बढ़ कर एक सबका पहनावा था,
मैं शरमाई सकुचाई सी बैठी थी, अपनी ही धुन में उलझी थी,
शहनाई अपने धुन में बजती थी,दिल कि धडकन बढती थी,
आज बैठ मैं सोचती हूँ, ये तो थी पच्चीस साल पहले कि बात.
वो थी मेरे विवाह कि रात......
आज वो आँगन अपना न था,माँ पापा कोई ना थे,
वो तो चिरनिद्रा में सोये थे, अपने में खोये थे,
दस्तक देने पर भी न सुनते थे,
देखना चाहती थी पर वो न दीखते थे,
मन रोये किससे कहूँ ,किसके लंगु गले कि
घर आँगन छूट गया, रिश्ता नाता टूट गया,
माँ के आँगन कि चिड़िया हो गयी परायी,
पापा कि आँखों कि तारा हो गयी परायी,
बीत गया वक्त ,ये तो हो गये पच्चीस साल,
वो थी मेरे विवाह कि रात......
 आज खुश हूँ, सब मना रहे है मेरे विवाह कि वही रात,
आलिगनब्ध हूँ पति के बहुबलों में,लगताहै खडी हूँ बरगद के तले में,
नए रिश्ते नव कोपल के साथ खिल गए,
गृहस्थी की नैया मंझधार की ओर चल पड़ी,
 चेहरे पर खुशियों कि मुस्कान है,लेकिन दिल में कहीं थकान है,
कि हाय , पीहर तो छूट गया,दिल तो टूट गया .....

मंगलवार, 19 जनवरी 2010

प्रवचन का महत्त्व


आज के युग में प्रवचन का प्रचलन अत्यधिक है

किन्तु सही अर्थ में क्या जनता प्रवचन सुनती है? क्या प्रवचन में कहे गये वचनों को जीवन में पालन करते हैं? क्या प्रवचन का अर्थ व्यक्ति जानता है? शायद नहीं
क्योकि समाज में अभी भी लोग प्रवचन सुनने का अर्थ अच्छा समय व्यतीत करना समझते हैं
बहुत कम लोग इसका अर्थ समझते हैं कि महान पुरुषों द्वारा कही गयी प्रत्येक शब्द में वजन होता है, उसे हमें अपनी ज़िन्दगी में उतारना चाहिए,उसे निर्वाह करना चाहिए
लेकिन जनता प्रवचन सुनने लोगों की बुराइयाँ करती हुई जाती है, वहाँ बैठ कर भी शारीरिक रूप से तो वहां होतें हैं, किन्तु मानसिक रूप से वहां पुर्णतः वहां नहीं होतें
इसलिए आधी प्रवचन सुनते हैं ,जिससे प्रवचन में कही गयी बात उनके समझ के परे होती हैं
अतः ये कहना उचित होगा कि प्रवचन में जाने के पूर्व हमें अपनी आत्मा को जगाना चाहिए, आत्म शक्ति जगानी होगी, क्योकि जब तक आत्मा से तरंग नहीं उठेगी , तब तक हमें प्रवचन में कहे गए शब्द हमारे मन मस्तिष्क तक नहीं पहुंचेगा
प्रवचन का सही अर्थ ही है कि हम अपने अंदर के अंधकार को हटा कर, दूसरों की भले में लग जाना चाहिए
इसे करने के लिए हमें शारीरिक , मानसिक रूप से उपस्थित होना चाहिए प्रवचन में
तभी हम प्रवचन का सही अर्थ समझ सकते हैं और दूसरों की मदद कर सकतें हैं
अन्यथा प्रवचन में जाने का कोई मतलब नहीं हैं
जब तक हम सारे वचनों को सही से ना सुने और फिर उनका पालन न करें तो प्रवचन में जानें का कोई मतलब नहीं है
अतः प्रवचन में जाने के लिए आत्मज्ञान अति आवश्यक है

ज्योतिष के लिए नकारात्मक विचार


ज्योतिष शास्त्र को लेकर प्रायः वैज्ञानिको के दिलो दिमाग पर नकारात्मक विचार आते है,उसका सिर्फ एक ही कारण है कि आज के युग में व्यक्ति बिना ज्योतिष शास्त्र की पूर्ण शिक्षा लिए अपनी जीविका चला रहा है, उन्हें न्यूनतम ज्ञान होता है और वो उसी के आधार पर तरह तरह की पूजा एवम रत्न स्वयं बना कर देते है
यही उनके जीविका का साधन होता है
किन्तु उनका आधा अधुरा ज्ञान ही कभी कभी लोगों का संकट बनता है एवम यही ज्योतिष की अरुचि एवम अविश्वास का जन्म देता है|
किन्तु हमें ऐसा नहीं सोचना चाहिए क्योकि कभी हमें कोई डाक्टर खराब मिल जाता है तो हम ये नहीं सोच लेते कि सारे चिकित्सक ही अविश्वासी हैं|
  यदि अपने को संत पुरुष कहने वाला महापुरुष धोखेबाज़ निकले तो क्या हम सभी संतो को धोखेबाज़ समझें तो ये नाइंसाफ़ी होगी
ठीक इसी प्रकार यदि कोई ज्योतिष शास्त्र पर अविश्वास करता है यह शास्त्र का अपमान होता है|
इस पर हमारे ऋषि मुनि लोगों ने शोध किया तब इस शास्त्र के द्वारा भविष्यवानियाँ हुयी|
आज भी सही गणना  के द्वारा जो भी ज्योतिषाचार्य ग्रहों के खेल को बताते है वो सत्य होता है|
ज़ल्दबाज़ी में किया हुआ कोई भी कार्य पूरा नहीं होता|

इसलिए मै यही कहना चाहुगी कि किसी भी विद्या का अपमान नहीं करना चाहिए सभी विद्या चाहे वो विज्ञानं, गणित जैसे विषय हो या फिर ज्योतिष शास्त्र जैसे पुराने विषय हो क्योंकि देवी सरस्वती का निवास तो सब में होता है

बसंत पंचमी


भारत में बसंत ऋतु के आगमन की सूचना बसंत पंचमी से ही मिलनी शुरू हो जाती है|माघ शुक्ल पक्ष (महाराष्ट्र,गुजरात, दक्षिण भारत इत्यादि जगहों पर माघ कृष्ण पक्ष)की पंचमी को मनाया  जाने वाला यह पर्व बसंत पंचमी के  नाम से जाना जाता है|इस दिन माँ सरस्वती का जन्म दिवस मानते है इसलिए इस दिन माँ सरस्वती की पूजा परम्परागत तरीके से  होती है| विद्या की देवी होने के कारण इनकी पूजा प्रत्येक विद्यालयों में होनी चाहिए किन्तु होती अब कुछ ही विद्यालयों में है|इस दिन को महाकवि निराला ने भी अपना जन्मदिवस माना था| 

बसंत आने से ही प्रकृति के बदलाव देखने की एक सुखद अनुभूति होती है|सरसों  के फूल से पीला आवरण ओढे धरती, उस पर मंडराते भौरे,नए बौर आमके पेड़ों को झुकाते हुए उस पर बैठी कोयल का कुहुकना ,सर्द हवाओं का बहना इत्यादि मन को रिझाती हैं|इन दिनों राजस्थान में धमाल और कामन की गूंज मन को खुश कर देती है|बसंत पंचमी एक अबूझ मुहूर्त है इसलिए शादी ,मुंडन जैसे कार्यक्रम बहुत स्थानों पर देखे जाते है|सरस्वती माँ की प्राचीन सिद्ध पीठ बासर में  इस दिन बच्चों की प्रथम पट्टी पूजा अर्थात प्रथम अक्षर लिखने की शुरुआत होती है|इस दिन प्रायः लोग बसंती पीला वस्त्र .एवम भोजन करना पसंद करते हैं|
अपना देश त्योहारों का देश है, ऋतुओं का देश है,सबके पीछे आस्था छिपी होती है एक धर्म से जुडी होती है हमारी परम्परा,जो एक दूसरे को करीब लाने में सहायक होती है|जैसे बसंत पंचमी  के अवसर सरस्वती पूजा में सबका मिलना,या फिर तीर्थ स्थानों पर लोगो का आना, पावन गंगा में स्नान करना आपस में एक दूसरे का मेल मिलाप दर्शाता है|

इस बार बसंत पंचमी 20 जनवरी को है,मेरा बसंत पंचमी पर सबको ढेरो शुभकामनाये|  

टेलिविज़न के कारण पुस्तक के प्रति कम होती जागरूकता


आज का युग टेलिविज़न का युग है जहाँ बच्चे नहाने ,खाने से लेकर सोने तक टेलिविज़न देखते  है|इसकी  आदत घर से ही पड़ती है|जब बच्चा अबोध रहता है उसे दुनियादारी कि जानकारी नहीं होती तब उसके जिद्द करने पर हम उसे टी.वीदिखाते है बच्चा बहल जाता है|इसी प्रकार उसे खाना खिलाते समय ,सुलाते समय स्वयं भी टी.वी देखते है एवम उसे भी आदत डालते हैं,जब बच्चा बड़ा होता है तो वो टेलिविज़न में ही चिपका रहता है|उसे कहानी कि पुस्तक जैसे अमर चित्र कथा,चंदामामा,चम्पक जैसी कहानी कि किताबों का नाम भी शायद मालूम नहीं है |क्योकि अब हमें सिरियल के ही नाम मालूम होते हैं अगर कोई पूछता है कि अपने बचपन में कौन सी कहानी की  किताब थी तो हमें मस्तिष्क पर जोर देना  पड़ता है  क्योकी हम तो अब नए पीढ़ी के हैं|
आज हमारे बच्चों कि जागरूकता कम होती जा रही है पुस्तको के लिए, हमारे समय में केवल पुस्तक थी|हमारी गर्मी की छुट्टियाँ केवल कहानी कि किताबों में ही बीतती थी यही कारण है कि आज भी कहीं लिखने कि इक्षा रहती है|किन्तु शायद इसके लिए बच्चों से ज्यादा बड़े जिम्मेदार होते है ,अधिकतर देखा जाता है कि बच्चे ज्यादा सवाल पूछेगे यदि वो हाथ में किताब पकड़ेगें,तो हम घबडा कर उन्हें टी.वी देखने कि छुट दे देते है किन्तु ये गलत है हमें उन्हें किताब देनी चाहिए साथ ही उनकी उत्सुकता को समझा कर बताना भी चाहिए जिससे उनकी जागरूकता पुस्तक की तरफ बढे|

रविवार, 17 जनवरी 2010

ज्योतिष एवम अन्धविश्वास दोनों का मेल नहीं


ज्योतिषशास्त्र एवम अन्धविश्वास दोनों का आपस में कोई मेल नहीं हैं|इसके बारे में मैं पहले भी लिख चुकी हूँ|ज्योतिष एक शास्त्र है एक विद्या है जबकि अन्धविश्वास अशिक्षित लोगों द्वारा फैलाई गयी भ्रांतियां  है|ज्योतिष कि पूर्ण शिक्षा होती है जैसे कि प्रत्येक विद्यालयों में कक्षा लगती है ठीक उसी प्रकार संस्कृत विद्यालयों में ज्योतिष शास्त्र कि श्रेणियां होती है,जबकि अन्धविश्वास एक दूसरे के द्वारा सुनिसुनायी बातें होती है|इसकी कोई पुस्तक नहीं होती|ज्योतिषशास्त्र हमारे ऋषि मुनियों द्वारा शोध करने के पश्चात मनुष्य जीवन का ग्रहों के साथ सम्बन्ध बताया है|अन्धविश्वास पर कभी कोई शोध नहीं हुआ है|
हाँ हमें अन्धविश्वास को जरुर रोकना चहिये किन्तु ज्योतिष का मजाक बना कर या फिर ज्योतिषशास्त्र का अपमान करके नहीं|ज्योतिषशास्त्र का अपमान करना अर्थात हम अपने संस्कृति  का अपमान कर रहें है,एक तरफ हम भारतीय होने का दावा करते है दूसरी तरफ अपने यहाँ के ऋषियों का अपमान करते है|उस  समय यान नहीं था कि हमारे ज्योतिषशास्त्र के जन्मदाता चंद्रमा पर जा कर अध्धयन करते,किन्तु उन्होंने नक्षत्र पर,ग्रहों पर अध्धयन किया एवम मानव जीवन से उनका रिश्ता कायम किया किन्तु आज वर्तमान युग में हम विदेशी वैज्ञानिको को प्राथमिकता दे रहे हैं,उन्हें सबसे महान बता रहें हैं किन्तु अपने ऋषियों द्वारा शोध करके बनाये गए शास्त्र  पर ऊँगली उठा रहे हैं|ये कितना उचित है?
अन्धविश्वास पूरी तरह से हटना चाहिए किन्तु बिना ज्योतिषशास्त्र को अपमानित किये|

शनिवार, 16 जनवरी 2010

SUSHMITA SEN ADOPTS SECOND GIRL CHILD


Sushmita Sen , ex Miss Universe and a successful actress has once again adopted a three months old girl child , Alisah(which in greek means joyful).In my opinion this is a great act of humanity on many fronts.Her first adopted girl child’s name is Renee.Now she is 10 years old.
Sushmita Sen is very beautiful because her thought is clear like a water, bright like a sun, who gives light everywhere. People like Sushmita Sen are very rare , who do like this job. People can give money in charity but don't want to take such kind of  responsibility.Becoming a single parent, giving good education,making their good future, its really amazing job. Increasingly people are doing these acts which shows their contribution to society. Hats off to people like Susmita.


Mostly people hesitate in child adoptation as it requires lot of time and energy.In India still maximum people want boy baby, in that case she adopted both girl baby.Now both these children will get her name,and they will achieve their dream because of the  begining that Sushmita is giving them.So many rich people are there but it is very rare that they adopt child & give their name & fame.
It is very rare to see anyone adopting a child and that too a girl child in such a society where every comming day there is a news of killing a girl child.Sushmita Sen has not only shown her humanity but also has now become an inspiration and a perfect example for everyone .She has also set examples for all those people who feel that charity and humanitarian measures ends in donating money only by showing that she has given her life to the two girls and also has given them a recognition in this entire machinery of mankind- the so called Society
Always I wish & hope that more and more  people should think like this so that our country may shine more..

गुरुवार, 14 जनवरी 2010

History Mystery


Abraham Lincoln was elected to Congress in 1846.

John F. Kennedy was elected to Congress in 1946.

Abraham Lincoln was elected President in 1860.
John F. Kennedy was elected President in 1960.

Both were particularly concerned with civil rights.
Both wives lost their children while living in the White House.

Both Presidents were shot on a Friday.
Both Presidents were shot in the head


Lincoln 's secretary was named Kennedy.
Kennedy's Secretary was named Lincoln .

Both were assassinated by Southerners.
Both were succeeded by Southerners named Johnson.

Andrew Johnson, who succeeded Lincoln , was born in 1808.
Lyndon Johnson, who succeeded Kennedy, was born in 1908.

John Wilkes Booth, who assassinated Lincoln , was born in 1839.
Lee Harvey Oswald, who assassinated Kennedy, was born in 1939.

Both assassins were known by their three names.
Both names are composed of fifteen letters.

Lincoln was shot at the theater named 'Ford.'
Kennedy was shot in a car called ' Lincoln ' made by 'Ford.'

Lincoln was shot in a theater and his assassin ran and hid in a warehouse.
Kennedy was shot from a warehouse and his assassin ran and hid in a theater.

Booth and Oswald were assassinated before their trials.

A week before Lincoln was shot, he was in Monroe , Maryland
A week before Kennedy was shot, he was with Marilyn Monroe





MAUNI AMAVASYA


Mauni Amavasya 2010 is the no moon day in the Magh month (January – February) as per the traditional Hindu calendar followed in North India. Mauna Amavasya 2010 date is January 15. Mauna Amavasya is an important bathing date at during the annual Magh Mela and Magha Snan and Kumbh Mela. The word ‘mauna’ or ‘mauni’ means silence and several Hindus keep complete silence on the day. There is also a Surya Grahan (Partial Solar Eclipse) on January 15, 2010 during Mauni Amavasya.

On Mauni Amavasya day, large number of Hindu devotees join at Sangam in Prayag (Allahabad) and meditate the whole day. Thousands of Hindus from all around the world converge at Sangam to take bath on the day.
According to Hinduism, ‘Mauna’ (silence) is one of the most important aspects of spiritual discipline. Derived from the word muni, a Sanyasi or saint, who practices silence, mauna ideally symbolizes a state of oneness with the Self.
Mauna has also been described by Adi Shankaracharya as one of the three essential attributes of a Sanyasi.


बुधवार, 13 जनवरी 2010

Dharm Sab Ek Hae


       सर्व-धर्म -समन्वय
ईश्वर एक है,परन्तु उनके नाम और भाव अनंत है|जो जिस नाम और भाव से उनकी आराधना करता है, उसे वे उसी नाम और उसी भाव से दर्शन देते है| कोई किसी भी भाव, किसी भी नाम या किसी भी रूप  से उस ईश्वर की उपासना या साधना भजन करता है उसे निश्चय ही ईश्वर का साथ होता है|जिस प्रकार छत पर जाने के लिए सीढी का प्रयोग होता है ठीक उसी प्रकार ईश्वर को समझने के लिए धर्म का प्रयोग होता है\

जो लोग संकीर्ण विचारधारा के होते है वे ही दुसरे धर्म की निंदा करते हैं,एवम अपने धर्म को श्रेष्ठ बताकर सम्प्रदाय गढ़ते  हैं| किन्तु जो ईश्वर से अनुराग रखते है वो सब धर्म में ही अपने ईश्वर को ढूंढ़ लेते हैं|उनके अंदर ईश्वर के लिए दलबंदी की भावना नहीं रहती|वो बहते पानी की तरह होते है,जो कहीं पर भी मिल जाते है वही ईश्वर के सच्चे अनुयायी होते हैं|जिस प्रकार जल एक पदार्थ है, किन्तु देश, काल, और पात्र के भेद से उसके नाम भिन्न भिन्न हो जाते हैं, हिंदी में उसे 'जल'कहते है,उर्दू में 'पानी'और अंग्रेजी में 'वाटर' कहते हैं|एक दूसरे की भाषा न जानने के कारण हि कोई किसी की बात नहीं समझ पता,किन्तु ज्ञान हो जाने पर किसी तरह का भे नहीं रह जाता|

भगवान एक है, पर साधक और भक्तगण भिन्न भिन्न भाव और रूचि के अनुसार उनकी उपासना किया करते है|एक ही दूध से कोई रबड़ी,तो कोई बर्फी बनाता है, कोई दही बनाता  है,तो कोई घी निकालकर खाते है कहने का तात्पर्य यह है की हमें जैसी रूचि होती है ईश्वर वैसे ही प्राप्त होते है|

मंगलवार, 12 जनवरी 2010

MAKAR SANKRANTI

                         14 जनवरी मकर संक्रांती

पिता सूर्यदेव जब अपने पुत्र शनिदेव की राशि मकर में प्रवेश कर उत्तरायण होते है तो वह दिवस मकर संक्रांति कहलाता है|इस दिन पिता पुत्र का मिलन होता है, इस दिन से देवताओं का ब्रहम मुहूर्त प्रारम्भ होता है एवम सारे शुभ कार्य प्रारम्भ होते हैं|महाभारतकाल में भीष्म पितामह ने इसी दिन को अपना शरीर त्यागने के लिए चुना था|
संक्रांति देश के भिन्न  भिन्न इलाकों  अलग अलग तरीकों से मनायी जाती है|उत्तर भारत में सभी तीर्थ स्थानों में जैसे प्रयाग,काशी,हरिद्वार इत्यादि जगहों पर गंगा स्नान तत्पश्चात खिचड़ी दान देने की प्रथा है|इस दिन उड़द की दाल की खिचड़ी एवम तिल के लड्डू खाने एवम दान देने की प्रथा सदियों से चली आरही है|इस दिन बहुत स्थानों पर पतंग उड़ाई जाती है|

मकर संक्रांति के दिन दान करने का विशेष महत्व है|इस दिन बहुत लोग कम्बल बंटवाते है, कुछ लोग धार्मिक पुस्तक ,या फिर अनाज दान में देते है|इस वर्ष संक्रांति 14 जनवरी पड़ रही है|

Food and Customs For Lohri


Lohri is also the one day when the womenfolk and children get attention. The first Lohri of a newborn baby, whether a girl or a boy, is also equally important. In the morning on Lohri day, children go from door to door singing and demanding the Lohri 'loot' in the form of money and eatables like til (sesame) seeds, peanuts, jaggery, or sweets like gajak, rewri, etc. The focus of Lohri is on the bonfire. In the evening, with the setting of the sun, huge bonfires are lit in the harvested fields and in the front yards of houses and people gather around the rising flames, circle around (parikrama) the bonfire and throw puffed rice, popcorn and other munchies into the fire, shouting "Aadar aye dilather jaye" (May honour come and poverty vanish!), and sing popular folk songs. This is a sort of prayer to Agni, the fire god, to bless the land with abundance and prosperity.



        HAPPY LOHRI

Origin of Lohri


The origin of Lohri is related to the central character of most Lohri songs that is Dulla Bhatti, a Muslim highway robber who lived in Punjab during the reign of emperor Akbar. Besides robbing the rich, he rescued Hindu girls being forcibly taken to be sold in slave markets of the Middle East. He arranged their marriages to Hindu boys with Hindu rituals and provided them with dowries. Understandably, though a bandit, he became a hero of all Punjabis. So every other Lohri song has words to express gratitude to Dulla Bhatti.

Lohri marks the culmination of winter, and is celebrated on the 13th day of January in the month of Paush or Magh, a day before Makar Sankranti. For Punjabis, this is more than just a festival; it is also an example of a way of life. Lohri celebrates fertility and the spark of life. People gather round the bonfires, throw sweets, puffed rice and popcorn into the flames, sing popular songs and exchange greetings. An extremely auspicious day, Lohri marks the sun's entry into the 'Makar Rashi' (northern hemisphere).
Ceremonies that go with the festival of Lohri usually comprise making a small image of the Lohri goddess with gobar (cattle dung), decorating it, kindling a fire beneath it and chanting its praises. The final ceremony is to light a large bonfire at sunset, toss sesame seeds, gur, sugar-candy and rewaris in it, sit round it, sing, dance till the fire dies out
Some believe that Lohri has derived its name from Loi, the wife Sant Kabir, for in rural Punjab Lohri is pronounced as Lohi. Others believe that Lohri comes from the word 'loh', a thick iron sheet tawa used for baking chapattis for community feasts. Another legend says that Holika and Lohri were sisters. While the former perished I the Holi fire, the latter survived.
Eating of til (sesame of seeds) and rorhi (jaggery) is considered to be essential on this day. Perhaps the words til and rorhi merged to become tilorhi, which eventually got shortened to Lohri and hence the festival got this name in this unique fashion.


LOHARI


The history of Lohri, a seasonal festival of North India is as old as that of story of Indus Valley civilization itself. The Festival of Lohri marks the beginning of the end of winter and the coming of spring and the new year. The fires lit at night, the hand warming, the song and dance and the coming together of an otherwise atomized community, are only some of the features of this festival.

There are some interesting socio-cultural and folk-legends connected with Lohri. According to the cultural history of Punjab.
Lohri is essentially a festival dedicated to fire and the sun god. It is the time when the sun transits the zodiac sign Makar (Capricorn), and moves towards the north. In astrological terms, this is referred to as the sun becoming Uttarayan. The new configuration lessens the ferocity of winter, and brings warmth to earth. It is to ward off the bitter chill of the month of January that people light bonfires, dance around it in a mood of bonhomie and celebrate Lohri.
Fire is associated with concepts of life and health. Fire, like water, is a symbol of transformation and regeneration. It is the representative of the sun, and is thus related, on the one hand with rays of light, and on the other with gold. It is capable of stimulating the growth of cornfields and the well being of man and animals. It is the imitative magic purporting to assure the supply of light and heat. It is also an image of energy and spiritual strength. That is why the Lohri fire gets sanctified and is venerated like a deity. On this occasion, people offer peanuts, popcorn and sweets made of til- chirva, gajak and revri – to propitiate fire as a symbol of the sun god.

सोमवार, 11 जनवरी 2010

swami vivekanand


एक संक्षिप्त जीवन विवरण

 स्वामी विवेकानंद का जन्म १२ जनवरी १८६३ में पवन मकर संक्रांति के दिन कोलकाता में हुआ था|उनके पिता कोलकाता में प्रसिद्ध वकील थे उनका नाम विश्वनाथ था एवम उनकी माता भुवनेश्वरी देवी अत्यंत सुसंस्कृत एक कुलीन महिला थी|
मातापिता ने बच्चे का नाम 'नरेन्द्रनाथ' रखा|बालक नरेंद्र तम अन्तर्जात तथा अर्जित प्रतिभा से मण्डित मेधावी छात्र था|उनका पठन पाठन का क्षेत्र व्यापक, ग्रहणक्षमता तीक्ष्ण,स्मरणशक्ति अतिधारणक्षम थी,तथा आयु की तुलना में विवेकविचार योग्यता भी अद्भुत थी| बाल्यावस्था में ही उनके अंदर अनेक विलक्षण शक्तियाँ प्रकट हुयी|जो दुसरे बच्चों की अपेक्षा अलग थी|बालक नरेन्द्रनाथ को इश्वर से जुड़े प्रत्येक प्रशन उन्हें व्याकुल किया करते थे|वे रुढ़िवादी कोई भी व्याख्यान मानने को तैयार नहीं थे|ऐसे ही कुछ प्रश्न उन्हें रामकृष्ण परमहंस के पास ले गए|नरेन्द्रनाथ ने परमहंस से पूछा कि क्या उन्होंने ईश्वर को देखा है?वो हंस कर बोले कि मैने तो दर्शन किये है मे तुमको भी करवा दूंगा| नरेन्द्रनाथ को कुछ चुम्बकीय शक्ति उनमे लगी एवम उन्होंने उन्हें अपना गुरु मन लिया|लगभग पञ्च वर्ष तक नरेन्द्रनाथ रामकृष्ण के सान्निध्य  में रहे तथा उनके द्वारा शिक्षित प्रशिक्षित हुए|
1886 में श्री रामकृष्ण कि महासमाधि हुयी,उस समय नरेन्द्रनाथ मात्र 22 वर्ष के थे|श्री रामकृष्ण का सारा कार्य युवा कन्धों पर आ पड़ा|यहाँ उन्होंने घर का त्याग कर दिया,एवम स्वयं विवेकानंद बन गए,उन्होंने एक मठ की स्थापना की एवम गुरुभाई का धर्म निर्वाह किया|वो अपनी मातृभूमि के विश्लेषण एवम पुनरुत्थान के लिए प्रत्येक स्थान गये |लोगो को समझा एवम स्वयं भी बहुत कुछ सीखा|सन 1893 में हुए शिकागो सम्मलेन के संबोधन ने लोगो कोहिला दिया|बहुत दिन विदेश में रह कर स्वामीजी भारत लौटे यहाँ उन्होंने रामकृष्ण मठ एवम  मिशन की स्थापना की |चालीस वर्ष की कम आयु में ही महासमाधि में लीन हो गए|उनकी शिक्षाप्रद पुस्तकें उनके उपदेश आज भी हमारे पथ प्रदर्शक हैं|

  जैसे स्वामी  विवेकानंद ने आत्मसंयम के लिए लिखा कि पीठ पीछे किसीकी निंदा करना पाप है,इससे पूरी तरह बचकर रहना चाहिए| मन में कई बात आती हैं,परन्तु  उसे प्रकट करने से राई का पहाड़ बन जाता है|यदि क्षमा कर दो और भूल जाओ तो उन बातों का अंत हो जाता है|