जय माँ दुर्गे
बलिदान का अर्थ न समझ सकने के कारण अनेक देवी भक्त पशु बलि देना अपना कर्तव्य समझते हैं | परन्तु बेचारे भोले मनुष्य पशु बलि का अर्थ न समझने के कारण व्यर्थ ही जीव हत्या का पाप अपने सिर ले लेते हैं | उससे देवी की प्रसन्नता तो दूर , उल्टा अपराध और अप्रसन्नता ही प्राप्त होती है |
विवेकीजन काम , क्रोध , लोभ , मोह रुपी पशुओं की विवेक बुद्धि रुपी तलवार के द्वारा काटकर अन्य प्राणियों तथा अपने को सुखदायक निर्विषय रूप मांस भक्षण करते हैं |
काम और क्रोध रुपी दोनों विघ्न उपस्थित करने वाले पशुओं का बलिदान करके ही जप करना श्रेयस्कर है |
इससे स्पष्ट हुआ कि आचार्यों ने काम - क्रोधादि मानसिक विकारों को ही पशु माना है | उपनिषद् का भी यही मत कि काम क्रोध लोभादिक ही पशु है | बलिदान के नाम पर पशु-वध करने को अनुचित बताया गया है |
हम में से जो भी याजक यज्ञ में पशुवध करते हैं , वे निश्चय ही अत्यंत अन्धकार में बढ़ते जाते हैं , क्योंकि हिंसा नाम से कभी कोई धर्म न हुआ है न होगा | जो मनुष्य जिस बकरे का वध करता है , वही बकरा परलोक में तलवार ग्रहण करके उसे उसी प्रकार मारता है |
भगवती पार्वती जी ने स्वयं अपने श्रीमुख से जीवहत्या करने वालों की दुर्गति का वर्णन किया है |हे शंकर ! स्वयं फल की कामना करने वाला होकर तथा अज्ञान के द्वारा मोह को प्राप्त होकर जो मनुष्य मेरे नाम से अनेक प्रकार के जीवों की हत्या करता है , उसका राज्य , वंश , संपत्ति , बंधू , बांधव स्त्री आदि समस्त ऐस्वर्ये कुछ समय में ही नष्ट हो जाता है तथा वह स्वयं भी मर कर नरक को प्राप्त होता है |
सोमवार, 7 दिसंबर 2009
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जिस जीव को पांचों ज्ञानेन्द्रियों द्वारा जाना जा सकता है । उस जीव की हत्या न्याय एवं नीति की दृष्टि से अनुचित है । जिस जीव की हत्या का न्याय और नीति को स्थापित करने एवं आत्मरक्षा से कोई संबंध नहीं है । इसलिए अन्याय एवं अनीति पर आधारित जीव हत्या धर्म नहीं हो सकती । जो कर्म धर्म के विरुद्ध हो, वह अधर्म है । धर्म तो अन्तिम समय तक क्षमा करने का गुण रखता है । जितना बड़ा पाप, उतना बड़ा प्रायश्चित ।
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