आपन सोचा होत नहीं, हरी चेता तत्काल ,
बलि चाह आकाश को, भेज दियो पाताल |
ये पंक्तियाँ एकदम सत्य दर्शाती है की केवल सोच लेने से ही ईश्वर के दर्शन नहीं प्राप्त हो जाता | कभी कभी व्यक्ति धार्मिक स्थान पर जन्म से ले कर अंतिम क्षण तक वहीं रहता है किन्तु उस स्थान का पुण्य नहीं प्राप्त कर पता क्योकि हरी का आदेश नहीं होता, इश्वर की इक्षा नहीं होती | काशी, प्रयाग, हरिद्वार जैसे स्थान पर जन्म लेकर भी वहां की पवन स्थान का परम सुख नहीं प्राप्त कर सकते, जबकि देश विदेश से लाखों पर्यटक पूर्णतः इसका सुख प्राप्त करते हैं कहने का तात्पर्य यह है हम केवल अपनी इक्षा से ईश्वर दर्शन का सुख नहीं उठा सकते जब तक प्रभु की इक्षा उसमें न हों | जब प्रभु की इक्षा होती है तो बिना किसी बाधा के दूर से पास तक सभी धाम का दर्शन बिना किसी बाधा के हो जाता है | ऐसा मेरा परम विश्वास है | कहने का अर्थ यही है की सर्वप्रथम इश्वर से प्रार्थना करो तथा सच्चे मन से विनती करो जिससे कार्य सफल हो |
बुधवार, 9 दिसंबर 2009
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बहूत सुंदर
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