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बुधवार, 23 दिसंबर 2009

मानव जीवन की सार्थकता



मानव जीवन में जन्म लेने की सार्थकता क्या है? क्या केवल स्वयं के बारे में, अपने परिवार के बारे में  ही सोचना चाहिए?ये तो निराधार है|यूँ तो जानवर भी जन्म लेकर बच्चों को जन्म देता है, और केवल अपना एवम उनका पेट पालता है|किन्तु जब हमें मानव जीवन मिला है, हमें सोचने समझने की शक्ति प्राप्त हुई है तो हम क्यों जानवर की तरह व्यवहार करें|
हमें एक हमेशा एक शिकायत रहती है कि हमें घर से फुर्सत नहीं मिलती हमें कार्य से समय नहीं मिलता,किन्तु यदि हम चाहें तो दैनिक जीवन से भी समय निकाल सकते हैं, जरूरतमंद कि सेवा के लिए,थोडा  ईश्वर के ध्यान के लिए|मानव जीवन की यही सार्थकता है कि हम अपने आस पास ऐसा व्यवहार बनाएं कि आप वहां  रहें या न रहें किन्तु लोग आपको आपके अच्छे व्यवहार के कारण याद करें|
मनुष्य योनी में जन्म लेने का दूसरा अहं हिस्सा है कि हमें अपने कर्त्तव्य का पालन करना चाहिए |ये शुरुआत माता पिता की सेवा से शुरू होता है, जो की आज के युग में लुप्त हो रहा है |माता पिता जब बच्चों का जन्म देते हैं तो पूरी जिम्मेदारी के साथ उनका पालन करतें हैं किन्तु जब बच्चों की बारी आती हैतो वो अपनी जिम्मेदारी से मुकरते हैं ऐसा नहीं होना चाहिए, दूसरों की सेवा से पहले घर की सेवा जरूरी है|
मानव जीवन का तीसरा अहम हिस्सा है जरुरतमंद की सहायता करना| निर्धन की मदद करना|किसी को संकट से निकालना |ये सब कार्य निःस्वार्थ भाव से किये जाते हैं तो फलदाई होते हैं|

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