शनिवार, 12 दिसंबर 2009
सही शुरुआत सही परिणाम
सत्संग,कीर्तन, महापुरुषों, का साथ इतना सब कुछ करने के पश्चात भी आत्मा को सुख नहीं मिलता ,शांति नहीं मिलती | इसका कारण हम खोज नहीं पाते ईश्वर को दोष देते हैं| किन्तु व्यक्ति अपने में नहीं झांकता| उसे नहीं मालूम कि दोष कहाँ हैं | दोष हमारे शुरुआत में ही होती हैं| जैसे पौधा जब छोटा होता है ,माली उसके भरण पोषण के लिए अच्छी खाद मिटटी डालता है ,धुप पानी पर्याप्त मात्रा में डालता है |इसी प्रकार भोजन बनाने के लिए भी शुरुआत से ही पूरी तैयारी करनी होती है अन्यथा भोजन स्वादिष्ट नहीं बनता ,इस प्रकार के तमाम उदाहरण हैं जो कि दर्शाते हैं कि जीवन में कोई भी कार्य करके शांति पाने के लिए या फिर यूँ कहें कि उसे पूर्ण करने के लिए हमें प्रारम्भ से ही सोच शुरू करनी चाहिए |इश्वर की भक्ति अराधना सत्सगती दूसरों के लिए सेवाभाव अपने दैनिक कार्य के साथ करना चाहिए जो की आगे जब हम वृधावस्था की तरफ अग्रसर होगें तब यही आदत हमारी दिनचर्या बनेगी एवम सत्संग तथा महापुरुषों के साथ से आत्मा को शांती मिलेगी |साथ ही प्रवचन तभी सार्थक होगा जब हम उसे अपने जीवन में उतारेगे |
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