चाणक्य नीति में लिखा है कि ''सोने की पहचान घिसकर, काटकर, पीटकर, तथा तपाकर की जाती है| इसी प्रकार से मनुष्य की परीक्षा, त्याग, गुण, आचार से की जाती हैं| "
ये बात एकदम सत्य है कि मनुष्य योनी में जन्म लेने का तात्पर्य यही,है कि हमारे गुण,आचार,व्यवहार,भावना अच्छे होने चाहिये| तभी समाज में सम्मान प्राप्त होता है | रही बात परीक्षा एवम त्याग की तो यह बात भी एकदम सत्य है कि मानव जीवन में परीक्षा का अहम स्थन है, क्योकि यदि हम पीछे देखते हैं त्रेता युग में और द्वापर युग में जहाँ श्री राम एवम श्रीकृष्ण का मनुष्य योनी में जन्म हुआ, उन्हें कठीन परीक्षाओं से गुजरना पड़ा| उनके लिए भी पग पग पर तनाव था किन्तु वो उसे हंस कर झेलते थे,यहाँ तक कि सीता जी को भी कितने कष्ट का सामना करना पड़ा |
कहने का तात्पर्य यह है कि मानव जीवन ही परीक्षा है जिसे हमें हंस कर झेलना चाहिए,उसे और रो कर कष्टकारी नहीं बनाना चाहिए| मानव जीवन में जब स्वयं प्रभु ने भी जन्म लिया तो उन्हें भी अनेकों कष्ट का सामना करना पड़ा, अर्थात हमें अपने आचरण, अपने व्यवहार, को बहुत अच्छे रखने चाहिए, त्याग की भावना जीवन को सवांरने के लिए रखना चाहिए| तभी हम स्वर्ण की भांती निखर सकते हैं|
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