त्रिदेवों के प्रतिरूप - भगवान दत्तात्रेय
श्री दतात्रेय भगवान विष्णु के छठे अवतार माने जाते हैं | मुनि अत्रि और महान योगिनी अनसूया माता के पुत्र दत्त के त्रिमूर्ति रूप देख साक्षात् ब्रम्हा , विष्णु , महेश के दर्शन होते हैं | त्रिदेवी अर्थात सावित्री , लक्ष्मी और पार्वती के पातिव्रत्य अहंकार शमनार्थ त्रिदेवों ( ब्रम्हा , विष्णु और शिव ) के इच्छाभोजन के लिए श्री दत्त का अवतार हुआ है |
देवी अनसूया महान तपस्विनी थीं | एक बार त्रिदेव उनके कुटिया पर पधारे और विवासन भोजन के इच्छा प्रकट कि | विवासन अर्थात विकार- वासना विरहित भोजन की बात सुनकर अचंभित अनसूया ने अपनी आंख मूंदकर ध्यान किया | त्रिदेव अतिथियों को उन्होंने अपने तपोबल से शिशु बनाया और मात्र्तव का अमृत पिलाया | त्रिदेव इच्छाभोजन से तृप्त हो गए और उन्हीं की कृपा से अनसूया को चंद्रमा , दत्त एवं दुर्वासा पुत्ररत्न प्राप्त हुआ | तीन देवों के कार्य प्रथक रूप से होते हैं किन्तु अनसूया के तपोबल एवं मात्र्भाव से त्रिदेव एकरूप हो गए |
पृथ्वीतल पर शांति प्रस्थापित करने के लिए भगवान श्री दत्तात्रेय ने सर्वत्र भ्रमण किया | एकांत प्रेमी श्री दत्त औदुम्बर वृक्ष के नीची बैठकर सृष्टि नियमों की चिंतन करते थे | परोपकार और ईमानदारी इन दो गुणों के रूप में उनका साथ गाय और श्वान होते थे | युवावस्था में हे परम विरागी , अगाध ज्ञानी होते हुए भी संयमी और विश्वशांति के प्रवर्तक श्री दत्त शांत और संयमी युवावस्था के महान आदर्श हैं |
शनिवार, 12 दिसंबर 2009
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