आजकल प्रायः सुनाने में आता है कि हमारा बच्चा तो बिलकुल भी मेरा नहीं सुनता|बोर्ड की परीक्षा है किन्तु वो तो अपनी मनमानी करता है|किन्तु ऐसा होने में आखिर दोषी कौन है?
किशोरावस्था में बच्चे बड़ों की तरह व्यवहार करना शुरू करने लगते है, उन्हें माता पिता की बात,उनकी दखलंदाज़ी अच्छी नहीं लगती|बाहर घूमना, बाहर का खाना,मित्रों के साथ बाहर रहना,स्कूल के बहाने घर से बाहर जाना इत्यादि बातें आम होती जा रहीं हैं|आजकल एक नया तरीका नेट का होगया है, जिसमे बच्चे अपना समय गवाते है|इसके पीछे शायद स्वयं माता पिता ही जिम्मेदार है|सबसे पहले हमें अपने बच्चों को समझना होगा, उनकी आदतें कहाँ से पड़ रही है|साथ ही हमें अपने बच्चों की कमियों को नज़रंदाज़ नहीं करनी चाहिए किन्तु साथ ही ये बात अवश्य ध्यान देनी होगी की हम अपने बच्चों की शिकायत दूसरों से न करें , दूसरा आदमी आपका अपना नहीं है,वो आपके हटते ही आपका मजाक बनाएगा आपकी कोई मदद नहीं करेगा और दूसरी तरफ आपका बच्चा आपका विश्वास खोता जायेगा| किशोरावस्था के बच्चो का ध्यान बहुत रखना पड़ता है किन्तु उनसे मित्रवत व्यवहार करके|आप स्वयं को उनके स्थान पर रख कर देखो की आपने उस उम्र में क्या किया था फिर आप उनसे उम्मीदे लगाये|दूसरे के बच्चों की खूबियाँ अपने बच्चे में न ढूंढे अपने बच्चे की खूबियों को निखार कर लाये|
बच्चे वो फूल होते है जो की जीवन के बगीचे में सवरतें हैं|फिर वो फूल गुलाब का हो या फिर सूरजमुखी सुंदर तो दोनों दिखते है तो फिर हम अपने बच्चे की तुलना दूसरे बच्चो से क्यों करे?
किशोरावस्था एकऐसी अवस्था होती है जहाँ बच्चे न तो छोटे में गिने जाते हैं और न ही बड़े में|हमें सबसे पहले शुरू से अर्थात बचपन से जब बच्चा घुटनों पर चलना सीखता है तब से ही उसकी छोटी छोटी बातों पर ध्यान रखना चाहिए, बच्चा है तो जिद्द करेगा ही किन्तु हमें सयंम से ध्यान रखकर ही उसकी जिद्द को पूरी करनी चाहिए|
क्योकि आदत कि शुरुआत वहीँ से होती है|फिर बच्चे के बड़े होने के साथ उन्हें जीवन के हर सही गलत की पहचान करवानी चाहिए| उन्हें जैसे वो बड़े हों तभी उन्हें अनुशासित जीवन का तरीका बताएं, साथ ही स्वयं भी अनुशासन में रहें|यदि हम स्वयं अपने से बड़ों को जवाब देगे तो बच्चा वही सीखेगा एवम बाद में पलट कर जवाब देगा जो कि हमें अच्छा नहीं लगता और हम शुरू हो जाते है कि बच्चे तो हमारा सुनते ही नहीं|
किशोरावस्था में प्रवेश के पहले ही हमें बच्चों दुनियादारी के बारे में धीरे धीरे बताना चाहिए कि जीवन में क्या गलत होता है|उनका मस्तिष्क विकार होने से पूर्व ही हमें उनके मस्तिष्क का विकास करना चाहिए|यदि उनके मस्तिष्क में सकारात्मक सोच शुरू से बैठ गयी तो उनका जीवन दूसरों को भी रौशनी देगा|हमें उनकी भावनाओं को समझना चाहिए|किसी भी चीज़ का निवारण दंड नहीं होता इसे हमेशा ध्यान रखना चहिये|ये किशोरावस्था नदी की तेज़ वेग की लहर के समान होती है जिसमें बहुत सयंम के साथ तैरना पड़ता है|
अंतमें मैं यही कहूँगी की बढ़ते बच्चों की जिम्मेदारी हम सभी की है जिसमें परिवार,विद्यालय,समाज,सभी जम्मेदारी ले तो बच्चे कभी भी अनुशासनहीन नहीं बन सकते|