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रविवार, 3 जनवरी 2010

धन का घमंड


मनुष्य को धन का घमंड नहीं होना चाहिए| धन का घमंड  मनुष्य को खोखला बना देता है|व्यक्ति स्वयं को धनि समझता है किन्तु क्या वास्तव में वो धनी है,?नहीं क्योकि उस व्यक्ति से बढ़ कर भी धनी व्यक्ति हैं|जिस प्रकार संध्याकाल में जब जुगनू उड़ता है तो वह यह समझता है कि इस संसार को वो ही प्रकाश दे रहा है किन्तु जब आकाश में तारे आते हैं तो जुगनुओं का घमंड शांत हो जाता है| तब ये तारे समझते है कि वो संसार को प्रकाश दे रहें हैं, परन्तु उनका गर्व तब टूटता है जब चंद्रमा उदय होता है, चन्द्रमा के उदय होने पर नक्षत्र लज्जित हो जाते है, फिर चन्द्रमा ये सोचता है कि संसार को प्रकाश देने वाला मात्र मैं ही हूँ ,मेरा प्रकाश पा कर ही संसार चल रहा है| उसके सोचते सोचते ही अरुणोदय होता है, तब चन्द्रमा मलिन पड़ने  लगता है, और उसे अहसास हो जाता है कि प्रकाश देने वाला वास्तविकता में कोई  और है| इसी प्रकार यदि मनुष्य को यह ज्ञान हो जाये कि उससे भी आगे कोई है तो शायद वो थोडा धनि हो जाये| धन से मनुष्य धनि नहीं होता मनुष्य का ज़ज्बा,उसकी इंसानियत,नीयत ही असली धन है|

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