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शुक्रवार, 29 जनवरी 2010

सगाई टूटी सानिया की,पेट दर्द से बुरा हाल मिडिया का.....


कल का सारा दिन मिडिया का बहुत व्यस्त था सानिया मिर्ज़ा की सगाई टूटने के मामले में|बिचारे सारी रात फोन लगाते रहे,किसी ने फोन नहीं उठाया देर रात या फिर बहुत सुबह किसी ने एस.ऍम.एस के जरिये YES लिख  दिया  तो तसल्ली मिली कि चलो आज की ब्रेकिंग न्यूज़  का चटपटा मसला मिला|

जीहाँ ये है हमारी मिडिया, जिसे दूसरों की निजी जिंदगी में ताक झांक करके मिर्चमसाला लगाकर खबर लाने की एक आदत सी हो गयी है|चलो यहाँ तक समझ में आता है की विश्व प्रसिद्ध हस्ती है आपने बता दिया कि आज सगाई है या फिर टूट गयी किन्तु उनके घर में क्या बन रहा है या फिर सेलिब्रेटी के घर कौन आया,वैगरह वैगरह |ठीक इसी प्रकार सगाई टूट जाने पर,अटकलें बताया जाना, यदि परिवार ने स्पष्ट रूप से आकर मिडिया को बुलाकर बताये तो बात समझ में आती है किन्तु अपने मनगढ़ंत तरीके अटकलें निकालकर बताना ये कहाँ तक उचित है?सानिया मिर्ज़ा अपने क्रीडा क्षेत्र में बहुत सफल खिलाडी है,उनका कैरियर है|उनकी अपनी निजी जिंदगी है,उनका अपना फैसला है जिसमे उनके घर वालों कि रजामंदी है तो फिर तीसरे को क्या परेशानी?

आज हम इसलिए ही पिछड़े हुए है क्योकि हम केवल दूसरों  के घर झांकना चाहते हैं और फिर भी संतुष्ट नहीं होते और उसमे से मसाला  ढूंढते है|यदि सही मायनों में हमें देश कि फ़िक्र हो तो एक नजर वृन्दावन  एवम मथुरा कि उन गलियों में भी डाल लो जहाँ बंगाल कि तरफ से आई हुयी कितनी बंगाली विधवा स्त्रियाँ रहती है उनको देखते ही आत्मा त्राहि त्राहि कर उठती है ..दिल रोता है कि नारी की ये दुर्दशा, केवल कुछ महिलाओं के बाहर आने से ,समाज पूरी तरह से बदल तो नहीं गया?लगता है इनकी कब और कौन सुधि लेगा?
मेरे ख्याल से मिडिया को किसी के निजी जिंदगी में इतनी दखलंदाज़ी नहीं करनी चाहिए क्योकि इसमें कभी कभी वो भी हंसी के पात्र बनते है जैसे सहवाग की शादी में कोई न मिलने पर घोड़ी के पास का कैमरा कभी भी नहीं भूलता लगता था की काश ये घोड़ी बोलती होती तो शायद इसके भी दिन फिर जाते और आज ये भी साक्षात्कार कर रही होती| ये तो मात्र एक उदाहरन था ऐसा आये दिन रोज़ होता कभी नाट्य रूपान्तर करके तो कभी किसी दूसरे रूप में| ख़ैर...... ये तो अपना अपना चॅनल चलाना है|किन्तु थोडा निजी जिंदगी को निजी जिंदगी ही रहने दिया जाये वहाँ वक्त न गवां कर अच्छे कार्य की शुरुआत की जाये तो ज्यादा पहचान मिलेगी|


5 टिप्‍पणियां:

  1. हमारा इलेक्ट्रानिक मीडिया उस भूखे भेड़िये के समान है, जिसे रोज़-ब-रोज़ एक नया शिकार चाहिये। जिस दिन ऐसे शिकार नहीं मिल पाते उस दिन ISI- पाक-अफ़गानिस्तान, राम-रावण के अवशेष, भूत-चुड़ैल आदि तो हैं ही टाइम पास करने के लिये। 24 घण्टे चैनल चलाना है तो कुछ न कुछ बाजीगरी तो करना ही पड़ेगी, कोई इन्हें गम्भीरता से तो लेता नहीं… मजे लेने के लिये देखते हैं न्यूज़ चैनल।

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  2. An national politics mein neta kuchh masala dete nahi hain, mehangayi ki khabar ki ab logon aadat ho gayi hai to kuchh to karna hi hai na...24 ghante to guzarne hain..

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  3. चिपलुनकर साहेब की बात मानिये और इसे गंभीरता से मत लीजिये...न्यूज के नाम पर ये लोग कामेडी करते रहते हैं....अब इनकी समझदानी ही इतनी ही है क्या कीजिएगा...बस मजे लिजीये

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  4. @alok ji

    लेकिन परेशानी ये है की हम मजे के लिए देखते हैं तो
    टीआरपी बढ़ती जाती है और मीडिया वाले और ज़ोर शोर से शुरू हो जाते हैं इसलिये बेहतर ये होगा की न देखा जाय न ही इस तरह की खबरों पर चर्चा की जाय न आलोचना
    क्योंकि आजकल के नए मार्केटिंग एक्स्पर्ट्स जानते है की बदनामी मे भी नाम है

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