एक संक्षिप्त जीवन विवरण
स्वामी विवेकानंद का जन्म १२ जनवरी १८६३ में पवन मकर संक्रांति के दिन कोलकाता में हुआ था|उनके पिता कोलकाता में प्रसिद्ध वकील थे उनका नाम विश्वनाथ था एवम उनकी माता भुवनेश्वरी देवी अत्यंत सुसंस्कृत एक कुलीन महिला थी|
मातापिता ने बच्चे का नाम 'नरेन्द्रनाथ' रखा|बालक नरेंद्र तम अन्तर्जात तथा अर्जित प्रतिभा से मण्डित मेधावी छात्र था|उनका पठन पाठन का क्षेत्र व्यापक, ग्रहणक्षमता तीक्ष्ण,स्मरणशक्ति अतिधारणक्षम थी,तथा आयु की तुलना में विवेकविचार योग्यता भी अद्भुत थी| बाल्यावस्था में ही उनके अंदर अनेक विलक्षण शक्तियाँ प्रकट हुयी|जो दुसरे बच्चों की अपेक्षा अलग थी|बालक नरेन्द्रनाथ को इश्वर से जुड़े प्रत्येक प्रशन उन्हें व्याकुल किया करते थे|वे रुढ़िवादी कोई भी व्याख्यान मानने को तैयार नहीं थे|ऐसे ही कुछ प्रश्न उन्हें रामकृष्ण परमहंस के पास ले गए|नरेन्द्रनाथ ने परमहंस से पूछा कि क्या उन्होंने ईश्वर को देखा है?वो हंस कर बोले कि मैने तो दर्शन किये है मे तुमको भी करवा दूंगा| नरेन्द्रनाथ को कुछ चुम्बकीय शक्ति उनमे लगी एवम उन्होंने उन्हें अपना गुरु मन लिया|लगभग पञ्च वर्ष तक नरेन्द्रनाथ रामकृष्ण के सान्निध्य में रहे तथा उनके द्वारा शिक्षित प्रशिक्षित हुए|
1886 में श्री रामकृष्ण कि महासमाधि हुयी,उस समय नरेन्द्रनाथ मात्र 22 वर्ष के थे|श्री रामकृष्ण का सारा कार्य युवा कन्धों पर आ पड़ा|यहाँ उन्होंने घर का त्याग कर दिया,एवम स्वयं विवेकानंद बन गए,उन्होंने एक मठ की स्थापना की एवम गुरुभाई का धर्म निर्वाह किया|वो अपनी मातृभूमि के विश्लेषण एवम पुनरुत्थान के लिए प्रत्येक स्थान गये |लोगो को समझा एवम स्वयं भी बहुत कुछ सीखा|सन 1893 में हुए शिकागो सम्मलेन के संबोधन ने लोगो कोहिला दिया|बहुत दिन विदेश में रह कर स्वामीजी भारत लौटे यहाँ उन्होंने रामकृष्ण मठ एवम मिशन की स्थापना की |चालीस वर्ष की कम आयु में ही महासमाधि में लीन हो गए|उनकी शिक्षाप्रद पुस्तकें उनके उपदेश आज भी हमारे पथ प्रदर्शक हैं|
जैसे स्वामी विवेकानंद ने आत्मसंयम के लिए लिखा कि पीठ पीछे किसीकी निंदा करना पाप है,इससे पूरी तरह बचकर रहना चाहिए| मन में कई बात आती हैं,परन्तु उसे प्रकट करने से राई का पहाड़ बन जाता है|यदि क्षमा कर दो और भूल जाओ तो उन बातों का अंत हो जाता है|
जैसे स्वामी विवेकानंद ने आत्मसंयम के लिए लिखा कि पीठ पीछे किसीकी निंदा करना पाप है,इससे पूरी तरह बचकर रहना चाहिए| मन में कई बात आती हैं,परन्तु उसे प्रकट करने से राई का पहाड़ बन जाता है|यदि क्षमा कर दो और भूल जाओ तो उन बातों का अंत हो जाता है|
good and the best
जवाब देंहटाएं