आज का युग टेलिविज़न का युग है जहाँ बच्चे नहाने ,खाने से लेकर सोने तक टेलिविज़न देखते है|इसकी आदत घर से ही पड़ती है|जब बच्चा अबोध रहता है उसे दुनियादारी कि जानकारी नहीं होती तब उसके जिद्द करने पर हम उसे टी.वीदिखाते है बच्चा बहल जाता है|इसी प्रकार उसे खाना खिलाते समय ,सुलाते समय स्वयं भी टी.वी देखते है एवम उसे भी आदत डालते हैं,जब बच्चा बड़ा होता है तो वो टेलिविज़न में ही चिपका रहता है|उसे कहानी कि पुस्तक जैसे अमर चित्र कथा,चंदामामा,चम्पक जैसी कहानी कि किताबों का नाम भी शायद मालूम नहीं है |क्योकि अब हमें सिरियल के ही नाम मालूम होते हैं अगर कोई पूछता है कि अपने बचपन में कौन सी कहानी की किताब थी तो हमें मस्तिष्क पर जोर देना पड़ता है क्योकी हम तो अब नए पीढ़ी के हैं|
आज हमारे बच्चों कि जागरूकता कम होती जा रही है पुस्तको के लिए, हमारे समय में केवल पुस्तक थी|हमारी गर्मी की छुट्टियाँ केवल कहानी कि किताबों में ही बीतती थी यही कारण है कि आज भी कहीं लिखने कि इक्षा रहती है|किन्तु शायद इसके लिए बच्चों से ज्यादा बड़े जिम्मेदार होते है ,अधिकतर देखा जाता है कि बच्चे ज्यादा सवाल पूछेगे यदि वो हाथ में किताब पकड़ेगें,तो हम घबडा कर उन्हें टी.वी देखने कि छुट दे देते है किन्तु ये गलत है हमें उन्हें किताब देनी चाहिए साथ ही उनकी उत्सुकता को समझा कर बताना भी चाहिए जिससे उनकी जागरूकता पुस्तक की तरफ बढे|
किताबों से बेहतर कोई दोस्त नहीं होता बच्चो के मन में यह बात हमने डालनी है
जवाब देंहटाएंji hna. sahi kah rahi he. sirf TV hi nahi bahut se aour bhi kaaran he jinki vajahe kitabo se door le jaa rahi he..,
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