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शनिवार, 2 जनवरी 2010

माघ गणेश चतुर्थी





शिवपुराण की कथा है- श्वेतकल्प में जब भगवान शंकर के अमोघ त्रिशूल से पार्वती नंदन का मस्तक कट गया तब पार्वती जी दुखी एवम क्रोधित हो कर बहुत से शक्तियों को उत्पन्न   कर प्रलय मचने का आदेश  दे दिया| देवगण में हाहाकार मच गया| तब समस्त देवताओं ने माँ को प्रसन्न करने के लिए उत्तर दिशा से हाथी का सिर ला कर शिव पुत्र के धड से जोड़ दिया, महेश्वर के तेज से पार्वती पुत्र जीवित हो गए| माँ पार्वती की प्रसन्नता आसीम  थी, देवाधिदेव महादेव एवम माँ पार्वती ने गणपति जी को 'सर्वाध्यक्ष'              घोषित किया, महादेव् ने  यह वरदान प्रदान किया कि 'विघन्नाश के कार्य में पुत्र तुम्हारा नाम सर्वश्रेष्ठ होगा, गणपति के पूजन के बिना पूजा अधूरी, होगी|
                          गणपति के लिए चतुर्थी का व्रत करने वालों की मनोकामना कि पूर्ति होगी|माघमास कि कृष्ण चतुर्थी का विशेष महत्व है, इसे संतान के लिए रखा जाता है| पहले लोगों का यह मानना था कि यह उपवास लडको के लिए होता है, किन्तु आज के बदलते युग में इसे संतान के लिए कहना उचित होगा|इस दिन महिलाये प्रातः काल से निर्जल उपवास रहतीं हैं, सायकल चन्द्रमा के निकलने पर पूजा करती है| पूजा के प्रवधान में तिल का पहाड़  बनाया जाता है, तिल के लड्डू, गन्ना, फल, इत्यादि समान रखा जाता है|सुपारी को गणपति का रूप देते है, पहली बार जिस सुपारी को रख कर पूजा करते है,उसी सुपारी को हमेशा इस्तेमाल करते हैं|इस पूजा में मुख्यतः तिल से ही पूजा होती है, चंद्रमा के अर्घ में भी अक्षत फूल एवम तिल पड़ता है|

    गणेश जी कि पूजा सर्वोपरी है|

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