आज गणतंत्र दिवस के शुभ अवसर पर भी मस्तिष्क में न जाने क्यूँ एक उलझन है कि आखिर हम अंग्रेजी भाषा के दीवाने क्यों है?मैने बहुत से पुरुषों एवम खासतौर पर महिलाओं को देखा है कि यदि अंग्रेजी में उनकी फीस माफ़ है तो वो ज़रूरत से ज्यादा कोशिश करेगीं इसमें सबसे बड़ा उदहारण ड्रामा कि सरताज राखी सावंत है|ऐसी न जाने कितनी महिलाये है जो कि अंग्रेजी कि दीवानी है| भाषा सीखना अच्छा है किन्तु उसे बनावटीपन से दिखावा करना गलत है| कुछ लोगों को मैने देखा है कि सिर्फ ये दिखाने के लिए अंग्रेजी बोलते है कि कहीं उन्हें कोई हिंदी माध्यम से या फिर स्टेट की भाषा के माध्यम से पढ़ा हुआ न समझ ले|
यहाँ तक कि आज के बच्चे भी स्टेटस का दिखावा करने में पीछे नहीं हटते|ऐसा क्यों हो रहा है? हमें दिखावे कि ज़िन्दगी ही क्यों पसंद आती है|हम आज गणतंत्र दिवस मना रहे है,किन्तु सही मायनो में हम अभी भी अंग्रेजी के ही गुलाम है|आज यदि बच्चों को रामचरित मानस पढने को दे दी जाये तो एक चौपाई पढने में पांच मिनट से ज्यादा लगा देगे फिर भी उसका अर्थ न बता पायेगे|आज कि स्थिति ये हो गयी है कि अंग्रेजी माध्यम से पढने वाले बच्चों से यदि आप पूछें कि आपको कौन सा विषय अच्छा नहीं लगता? अधिकांश बच्चे जवाब देगे कि हिंदी|जब हम हिंदी बोलते है,वो हमारी राष्ट्र भाषा है तो पढ़ते समय उसमें अनिक्षा क्यूँ|इसका कारण हम स्वयं है जब बच्चा छोटा होता है छोटी कक्षा में होता है ,तो हम आने वालों को बखान कर के बताते हैं कि देखो हमारा बच्चा अंग्रेजी के सब अक्षर जानता है थोड़ी हिंदी में मात्रा गलत करता है लेकिन अंग्रेजी में कोई गलती नहीं होती उसकी अंग्रेजी कि लिखावट भी बहुत सुंदर है..वैगरह वैगरह....इसका कारण सिर्फ एक है कि हम ये दिखावा करते है कि जो हमने नहीं किया वो हमारा बच्चा बचपन से कर रहा है|यही बच्चा बड़ा होता है तो बचपन कि बात को तकिया कलाम बना लेता है कि हिंदी तो हमसे झेली नहीं जाती|
जबकि भाषा पर एक समान अधिकार होना चाहिए|इस पर एक कहानी याद अति है कि एक बार अकबर के दरबार में एक सज्जन पुरुष ने आकर दावा किया कि कोई मेरी मातृभाषा बता दे तो मै समझूँ कि वो बहुत बुद्धिमान है|जैसा सभी जानते थे किबीरबल इसका जवाब दे सकते है इसलिए बीरबल को बुलाया गया| अब बीरबल ने बहुत कोशिश किया जानने का किन्तु उसको सारी भाषा का इतना ज्ञान था कि वो सारी भाषाए धाराप्रवाह बोलता एवम लिखता था, बीरबल असमंजस में थे कि क्या करूँ उन्होंने कहा कि ठीक है भैया आप जीते मै हारा| वो बंदा बहुत खुश हो गया भोजन करके रात्री विश्राम करने गया |आधी रात के बाद बीरबल कुछ लोगों को लेकर वहाँ पहुंचे एवम उस पर पानी फेंका, वो घबडा कर अपनी मात्री भाषा बंगाली में बोल उठा 'अरे बाबा के आछे' बीरबल तुरंत बोल पड़े तुम बंगाली हो|वो बीरबल का पांव पकड़ लिया बोला आपने सही पहचना किन्तु ये महान कार्य केवल आप ही कर पाए|बीरबल हंसने लगे और बोले कि अचानक नीद से जागने पर अपनी ही भाषा सबसे पहले आती है इसलिए ही मै रात्रि का इंतजार कर रहा था|कहने का तात्पर्य बस इतना है कि भाषा सीखना अच्छी बात है किन्तु केवल अंग्रेजी को ही क्यों तुल दें|अंग्रेजी सीखो लेकिन समाज में दिखाने या फिर यूँ कहें कि मॉडर्न बनने के लिए नहीं|भाषा ज्ञान बढ़ाने के लिए होती है न कि नुमाइश करने कि कोई वस्तु होती है| अन्यथा दिल यही कहता है कि अंग्रेज़ तो चले गये किन्तु अंग्रेजी विरासत में छोड़ गए.......भाषाएँ सब सीखो इतनी धाराप्रवाह बोलो की कोई आपको पहचान न पाए क्योकि ज्ञान अनंत है|
बिलकुल सहमत हँ आपसे ।
जवाब देंहटाएंसहमत...ज्ञान अनन्त है.
जवाब देंहटाएंगणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ.
यही सीख है कि सीखने के लिये सीखो
जवाब देंहटाएंऔर सन्कल्प लो कि
कोई हिन्दी की कभी हिन्दी न कर पाये
आपसे पूरी तरह सहमत. परन्तु यह एक दिन में नहीं हो गया. इसके लिए हमारे राजनेता, माता-पिता , सूचना तंत्र और समाज सभी बराबर के सहभागी और जिम्मेदार हैं. अंग्रेजी और अंग्रेजियत की भौतिकवादी दौड़ ने जब उन्ही माता-पिता को घर से बेघर कर दिया तो वे अपने बच्चो को दी गयी परवरिश और तरबियत में कमियाँ तलाशते हैरान होकर किस्मत को कोसने लगते हैं. गिरता हुआ बौद्धिक स्तर ओछेपन में तब्दील होता जा रहा है और लोग इसके अपनी प्रगति का पैमाना मान रहे हैं. लानत है.............
जवाब देंहटाएं"अंग्रेजी सीखो लेकिन समाज में दिखाने या फिर यूँ कहें कि मॉडर्न बनने के लिए नहीं|भाषा ज्ञान बढ़ाने के लिए होती है न कि नुमाइश करने कि कोई वस्तु होती है| "
जवाब देंहटाएंपूर्ण सहमत !
आपका कहना सही है लेकिन इस लेख मे भी वर्तनी की अशुद्धियाँ रह गयी हैं, वो न होतीं तो पढ़ने मे कम असुविधा होती।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद।
अच्छी पोस्ट, बधाई।
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