पिता सूर्यदेव जब अपने पुत्र शनिदेव की राशि मकर में प्रवेश कर उत्तरायण होते है तो वह दिवस मकर संक्रांति कहलाता है|इस दिन पिता पुत्र का मिलन होता है, इस दिन से देवताओं का ब्रहम मुहूर्त प्रारम्भ होता है एवम सारे शुभ कार्य प्रारम्भ होते हैं|महाभारतकाल में भीष्म पितामह ने इसी दिन को अपना शरीर त्यागने के लिए चुना था|
संक्रांति देश के भिन्न भिन्न इलाकों अलग अलग तरीकों से मनायी जाती है|उत्तर भारत में सभी तीर्थ स्थानों में जैसे प्रयाग,काशी,हरिद्वार इत्यादि जगहों पर गंगा स्नान तत्पश्चात खिचड़ी दान देने की प्रथा है|इस दिन उड़द की दाल की खिचड़ी एवम तिल के लड्डू खाने एवम दान देने की प्रथा सदियों से चली आरही है|इस दिन बहुत स्थानों पर पतंग उड़ाई जाती है|
मकर संक्रांति के दिन दान करने का विशेष महत्व है|इस दिन बहुत लोग कम्बल बंटवाते है, कुछ लोग धार्मिक पुस्तक ,या फिर अनाज दान में देते है|इस वर्ष संक्रांति 14 जनवरी पड़ रही है|
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें