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सोमवार, 1 फ़रवरी 2010

पश्चिमीसभ्यता को अपनाने की होड़ में आज की युवा पीढ़ी

वर्तमान समय में युवा पीढ़ी पश्चिमी सभ्यता को भारतीय संस्कृति से ऊँचा मानती है इसीलिए वहाँ का रहन सहन, खानपान,बोलने का तरीका,इत्यादि अपनाती है| युवा लड़के लड़कियां मदिरापान, धुम्रपान, को ही समाजिक जीवन बना लिया है|आखिर ये दिखावा क्यों इतनी तेज़ी से फैल रहा है?
हम ये मानते है की पश्चिमी देशों में लोग ज्यादा तेज़ दिमाग के होते है|इसका कारण है कि वो शुरू से खुले दिमाग के होतें है|वो मेहनत करते है|हमारी युवा पीढ़ी उनकी सकारात्मक सोच को नहीं अपनाती वो सिर्फ उन अवगुणों के पीछे भागती है जिसका हमारे जीवन से कोई सरोकार ही नहीं है|

आज बड़े शहरों कि बुरी हाल है जहाँ सडको पर भी धुम्रपान करते हुए लड़के लड़कियां दिख जाते  है|आज डिस्को का जमाना है वहाँ तो एकदम अंधेर मची है|ये पहले तो नहीं था|ये तो पश्चिमी देश से लाया गया भारत में नया इतिहास है| लड़कियां खुलेआम  शराब पी रहीं है,क्या यही भारतीय संस्कृति है?सिनेमा में लडकियों के कम कपड़ों का तो एकदम प्रचलन हो चुका है वही वेशभूषा बड़े शहरों में भी अपनाया जाने लगा है|क्या घर में लोगों को नहों दीखता?या फिर यूँ समझें कि ऐसा दिखाने के लिए ही पहना जाता है|

हमारी भारतीय सभ्यता में ऐसा क्या कमी है जिसे हमारी युवा पीढ़ी नहीं अपनाना चाहती ?शायद  हमारी सभ्यता में कोई भी कमी नहीं है,  कमी है तो केवल हमारी सोचमें, हम दिखावा में जीते हैं,कहीं हमें कोई कम न समझ ले, और यही मानसिकता अपने आने वाली पीढ़ी में भी हम डाल रहे है, ये हमारी सकीर्ण मानसिकता है शायद मेरे इस विचारधारा से सब सहमत न हो किन्तु यदि ध्यान से सोचा जाये तो ये यथार्थ है|

पश्चिमी सभ्यता का अनुकरण करना बुरा नहीं है, बुरा है तो बुराई को अपनाना जो न तो सेहत के लिए अच्छा है न ही समाज के लिए|पश्चिमी सभ्यता से उन चीज़ों का अनुकरण करो जिससे सबका भला हो,उदाहरन के तौर पर यदि हम उनसे समय की पाबंदी सीखें तो शायद जिंदगी का सफल शुरुआत हो जाएगी|बुरी चीज़ अपनाना जितना आसन है उतना उसे छोड़ना कठिन होता है| हम भारतीय है हमें अपनी सभ्यता पर गर्व होना चाहिए, हमें खिचड़ी बन कर नहीं जीना चाहिए, हमे उस बासमती चावल की तरह बनना चाहिए जिसकी खुशबु कितने लोगों को आप तक खिंच कर लातीहै|

5 टिप्‍पणियां:

  1. nayee peedhi kaa koi dosh nahin haen unko seekhane waale ham hi haen aaj kae maa pitaa apni santaan sae bhi dartey haen so ek darpok peedhi kyaa sanskaar dae saktee haen ??

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  2. मुद्दा आपने बहुत ही महत्वपूर्ण ऊठाया है , हम दूसरो की नकल करते-करते खूद की पहचान भुलते जा रहे है ।

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  3. अपकी बात से पूरी तरह सहमत हूँ। हम लोग बुराई तो अपना लेते हैं मगर पश्चिम की अच्छी बातें नही अपनाते। अपने कानून के प्रति अपने देश के प्रति उन की भावनाओं जैसी हम मे नही है बस फैशन की नकल कर हम आधुनिक कहलाना पसंद करते हैं धन्यवाद इस आलेख के लिये

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  4. aapki rachna sonchne par mazbur karti hay..
    aapne ekdam sahi mudde ko saahi dhang se prastut kiya hay..

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  5. Ekdam sahi kaha aapne....achchi baten/adaten jinse jeevan ka utthaan hota hai,chahe vishv ke kisi bhi sabhyta me ho,unhe behichak apnana chahiye,parantu patan ka marg chunne se kiska bhala hoga....

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