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रविवार, 14 फ़रवरी 2010

आखिर हमारा देश पिछड़े देशों में क्यों है?

ये गौर करने लायक बात है कि हमारा देश सारे  देशों के मुकाबले पिछड़ा क्यों है? इसका एक कारण तो तय है कि हम लोग काम  में कम दूसरों कि  टांग खीचने में वक्त ज्यादा बिताते है|आज जैसे  वेलेंटाइन दिवस है सारे चैनल पर  इसकी ही चर्चा है - कहते है कि हम संस्कृति को बचा रहे हैं| क्या सही मायने में संस्कृति बच पा रही है?नहीं और अराजकता बढती है? ये तो छोटी सी बात थी समाज की, किन्तु  यदि हम सही अर्थ में देखें तो घर, बाहर ,कार्यालय हर जगह लोग  दूसरों के   पीछे ज्यादा वक्त बर्बाद करते है,|
हमारे यहाँ की राजनैतिक पार्टियाँ एक दूसरे की टांग खीचने में लगी रहती हैं,यदि कोई अच्छा कम करना चाहे तो उसे करने नहीं मिलता|सबको अपनी तिजोरी भरनी होती है|कोई सामाजिक गठन यदि कार्य करना भी चाहे तो अगली  पार्टी आकर उसे  कार्य करने को रोक देती है|इस हाय हाय में कोई आगे आना नहीं चाहता |ठीक इसी  प्रकार कार्यालय में भी एक दूसरे के पीछे पड़े रहते है  अधिकारी  मख्न्बाज़ी में विश्वास रखते है साथ ही रिश्वत लेने में  भी,अब बात ये आती है कि जब हम केवल अपनी जेब भरेगे और दूसरे कि बुराई  ही सोचेगे तो अपनी जिम्मेदारी से मुकर कर आज का काम कल पर टालते रहेगे तो आगे हम कैसे बढ़ेगे ?

हम किसी भी समूह  , समुदाय , समाज में खड़े हो जाएँ हमें वहाँ भविष्य में आगे बढ़ने कि बात बहुत कम सुनने को मिलेगी  किसी ना किसी को नीचा दिखा कर स्वयं को सर्वोपरी बताना आम बात हो गयी है|यही विदेशी कम्पनियों  में काम की प्रधानता रहती है |वहीँ सरकारी कार्यालय अपनी आलस्यपन के कारण पूरी तरह बदनाम हो चुके है|यदि ये सरकारी विभाग अपनी  मुस्तैदी से कार्य करे तो देश को तरक्की करने में कितनी आसानी होगी|कष्ट वहाँ आता है जब कोई सरकारी अधिकारी अपने कार्य में सक्षम होता है किन्तु उसे अपने तरीके से कार्य नहीं करने दिया जाता |

अब मै यही सोचती हूँ कि यदि हम सभी भविष्य का सोचें दूसरों के काम में दखलंदाज़ी ना करे तो हम तरक्की पायेगे और अपना देश आगे आएगा|इसमें एक कारण और जुड़ता है जिनका मन मस्तिष्क इसमें नहीं होता वो जानते है कि यहाँ शायद उनका काम उनके मन मुताबिक ना हो पायेगा वो अपने जीवन को सवारने विदेश  चले जाते है, एवम भला विदेश का ही होता है  उधारण सुनीता विलियम्स और कल्पना चावला |यदि हमारी सोच एवम समझ बुरायिओं  से हट कर वास्तविक जीवन पर आजाये तो हम भी ना जाने कितने हीरों को तराश कर कोहिनूर बना सकते है..........

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