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मंगलवार, 15 दिसंबर 2009


कर्म ही असली पूजा है

कर्म ही पूजा है ,किन्तु आजके युग में हम ये सोचते हैं कि यदि ईश्वर के आगे बैठ कर हमने पूजा नहीं  की तो ईश्वर हमारी नहीं सुनेगा| लेकिन ये वास्तविकता नहीं हैं| यहाँ हमें निराला जी की कविता याद आती है ,"प्रियतम जिसका अर्थ एवम सार कुछ इस प्रकार था,कि एक बार नारद मुनि हरी का गुणगान करते हुए  क्षीर सागर पहुंचे वहाँ उन्होंने प्रभु से पूछा ,कि आप ये बताइए कि आपका सबसे प्रिय भक्त कौन है ?नारद मुनि को यह आशा थी कि प्रभु उनका नाम लेगें किन्तु हरी ने उत्तर दिया कि धरती  पर रहने वाला एक किसान |नारद मुनि को आश्चर्य हुआ ,तब भगवान   ने कहा कि ठीक है तुम एक तेल से भरा  पात्र लेकर पृथ्वी  की पूरी परिक्रमा कर के आओ ,ध्यान रखना कि तेल का एक बूँद गिरने न पाए |नारद मुनि ने ठीक वैसा ही किया , और परिक्रमा पूरी कर के वापस आये एवम हरी को बताया कि तेल की एक बूँद भी नहीं गिरी अब बताइए कि आप का प्रिय भक्त कौन है ?प्रभु ने फिर वही जवाब दोहराया कि किसान ?अब नारद मुनि से रहा नहीं गया वो बोले कि मैं हरी गान हर वक्त करता हूँ एवम आपने जैसा कहा उसी तरह मैने परिक्रमा भी की फिर भी आप किसान को ही असली भक्त कह रहें है ? जबकि वो केवल आपका दिन में  तीन बार ही नाम लेता हैं |तब प्रभु ने पूछा किजब तुम परिक्रमा कर रहे थे तब तुमने मेरा कितनी बार नाम लिया ,नारद मुनि ने कहा कि प्रभु वो तो मैं आपका ही कार्य कर रहा था | 
अब प्रभु ने कहा किसान जो कार्य करता है ,अपने परिवार की जीविका चलाता है ,वो भी हमारे द्वारा दिया गया कार्य है किन्तु वो उसमें से समय निकाल कर वो मेरा नाम लेता है इसलिए वो मेरा प्रिय भक्त है| "
कहने का तात्पर्य यह है कि यदि हम कार्य को पूजा समझें और ईश्वर में आस्था रक्खें तो ईश्वर भी साथ देगा और कार्य पूर्ण होने से हमारे मन की स्थिति भी अच्छी होगी ,शांति का जीवन होगा|

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