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गुरुवार, 10 दिसंबर 2009

    जीवन का असली सत्य एवं सुख                     

जीवन और मरण दुनिया का एक ऐसा सत्य है जिसे मिथ्या  कहा नहीं जा सकता किन्तु इस सत्य को कोई अपनाने को तैयार नहीं होता|सभी जानते हैं कि यहाँ से लेकर कुछ नहीं जाना है फिर भी इस माया जाल में इतना उलझते हैं कि रिश्ते नाते,कर्म, फर्ज, माता-पिता, बंधू-बांधव सब भूल जाते हैं| केवल पैसा स्वयं के लिए किसी भी हद तक गिर कर कमाने को तत्पर रहते हैं| लेकिन इन्सान ये क्यों भूल जाता है कि वो मुट्ठी बंद करके जन्म लिया था अर्थात किस्मत अपने साथ लेकर आया था, लेकिन जब वो इस दुनिया से  जाता है तो हाथ खुला होता है अर्थात वो यहाँ से कुछ नहीं लेकर जा रहा है यहाँ तक कि ये शरीर भी छोड़ कर जाता है|
  मेरा ऐसा विश्वास है कि यदि मनुष्य  में ये चेतना आ जाये कि केवल पैसा ही सब कुछ नहीं होता, रिश्ते की अहमियत समझाना, माता-पिता की सेवा करना, दूसरों के दुःख दर्द बाटना, भी उतना जरूरी है जितना कि पैसा कमाना तो मनुष्य सुखी हो जायेगा, उसे कोई कष्ट न होगा,क्योकि मनुष्य जिन्दगी  का असली सत्य समझ लेगा|

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