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गुरुवार, 3 दिसंबर 2009

भार्तिहरी के नीति शतक

नीतिशतक के कुछ हिंदी अनुवाद       

बुद्धिमान जन ईर्ष्या से ग्रस्त रहते हैं, अधिकारी जन घमंड में चूर है, अन्य लोग अज्ञान से पीड़ित हैं ऐसे मे ज्ञान की सूक्तियां एवं समझदारी की बातें किससे करे वो तो मन मे ही गल सड़ जाती हैं |


अबोध को आसानी से समझाया जा सकता है; ज्ञानी को इशारा ही काफी है अंशमात्र ज्ञान से ही जो स्वयं को परम ज्ञानी मान बैठा है उस आदमी को ब्रह्मा भी संतुष्ट नहीं कर सकते | 


घड़ियाल के मुख के बीच से मणी को साहस कर के निकाला जा  सकता है, वेगवती लहरों से उफनते समुद्र को भी तैर कर पर कर सकते है, किन्तु दुर्गुणों मे फंसे मूर्ख आदमी के चित्त को सदगुणों की ओर मोड़ना आसन नहीं |


जब मैं थोडा- थोडा समझदार हुआ तो हाथी की तरह घमंड मे चूर रहने लगा. तब मेरा मन भ्रम से लिप्त हो गया की मैं तो सर्वज्ञ हूँ. जब बुद्धिमानों की संगती से थोडा थोडा जानने के योग्य  हुआ तब 'मैं तो निपट मूर्ख हूँ' यह जानकर मेरा सारा दर्प ज्वर के समान उतर गया |


अपनों के साथ सद्व्यवहार करना, सेवको के साथ दया- भाव रखना, बुरों क्र साथ कठोरता, सज्जनों से अनुराग, राज्यद्जिकारियों के साथ न्याय -नीति का व्यवहार, विद्वान् लोगों के साथ निश्चलता, शत्रुओं के साथ बहादुरी, बड़ों  के साथ विनम्रता और महिलाओं के साथ शिष्टता ऐसी कलाओं मे जो भी निपुड है उन्हीं पर संसार टिका हुआ है |

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