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शनिवार, 12 दिसंबर 2009

झूठा अहंकार

आजकल भाग दौड़ की जिन्दगी में हम अक्सर भूल जाते हैं कि जितना हमें अपने बराबर वालों को या फिर अपने से उच्च वर्ग को हमें  मान सम्मान देते हैं,उतनाही हमें अपने से निम्न वर्ग को भी मान देना चाहिए|  उदाहरण  के तौर पर किसी का घर तैयार  होता है उस महल को बनाने के लिए न जाने कितने मजदुर सर्दी ,गर्मी ,बरसात, प्यास भूख सह कर आलिशान बंगले को तैयार करते हैं किन्तु बाद में उधर से जब वो गुजरते हैं तो वो मजदूर तो  पहचान जाता है कि इस महल के लिए उसने पसीना बहाया था किन्तु मालिक उसे न तो पहचानता  है और न पहचानना चाहता है |इसके लिए चंद शब्द कुछ ऐसे कहे जा सकते हैं जो की एक महिला मजदूर की दशा को बयाँ करती हैं- 


वह थी महिला मजदूर ,काम करने को थी वो मजबूर, 
सुबह से शाम,पीठ पर बच्चे को बांध,
वो सिर पर बालू  गारा ढोती थी,दिन भर पसीना बहाती थी,
 हर रोज़ वही सुबह होती थी, वही कार्य वो दोहराती थी,
क्योकि वो थी भूख से मजबूर ,वो तो थी एक महिला मजदूर |
दिन बीते, महीने बीते, नया घर हो गया तैयार ,
सुन्दर था बड़ा था, दरवाज़े पर नाम लिख था ,
"मधुमती विशाल विहार" 
घर को देख सब वाह-वाह करते थे, घर के मालिक को बधाई  देते थे,
मालिक को हो गया गुरूर ,वो भूल गया कि इसे जिसने बनाया, 
वो सब थे मजबूर ,उसमें वो भी एक थी महिला मजदूर|
एक दिन वही महिला उधर से निकली,घर को देख कर ठिठकी ,
मन में सोच रही थी वो, इसको बनाने में कितना पसीना बहाया, 
तभी दरबान ने उसको धक्का दे कर वहाँ से भगाया ,
उसने घर के पालतू कुत्तों को भी देखा ,
वो पल्लू से पसीना पोछती, आखों के नीर को सूखती, 
 वो वहाँ से चल पडी ,बस मन में सोच रही थी ,
उसकी क्या है पहचान ,वो तो हर तरफ है अंजान, 
वो तो मजबूर थी, क्योकि वो तो केवल एक मजदूर थी...........

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